भारतीय ज्योतिष में मंगल सबसे क्रूर ग्रहों में गिना जाता है. जन्म कुंडली में मंगल जातक के पराक्रम, शौर्य, क्रोध, युद्ध, शत्रु, अस्त्र- शस्त्र, दुर्घटना, भूमि, छोटे भाई बहन, गर्भपात इत्यादि का भी कारक है. यह ग्रहों में सेनापति है. आत्मा राजा है, इसकी रक्षा की जम्मेदारी इस सेनापति की है. यदि यह अच्छा न हो तो जातक का लग्न कमजोर हो जाता है. मंगल पैशन है, कमजोर हो तो जातक के भीतर इसकी कमी होती है.
 यदि मंगल कुंडली में खराब घर में गया हो जैसे बारहवें घर में या अष्टम में तो इसका बड़ा बुरा फल होता है. बारहवें मंगल हो तब घोर मंगल दोष होता है. स्त्री की कुंडली में बारहवे मंगल उसका बेड-प्लेजर छीनता है अर्थात उसे पति का सुख नहीं मिलता. अष्टम मंगल भी खराब फल करता है, दुर्घटना, बीमारी, आत्महत्या इत्यादि करवता है. स्त्री की कुंडली में अष्टम मंगल उसके रजोधर्म में रुकावटें डालता है और सन्तान के लिए अशुभ होता है.  
दु:स्थान में स्थित मंगल का उपाय-
 खराब स्थान छठवें, आठवें और बारहवें में बैठे मंगल का राशि के अनुसार उपाय करना चाहिए. यदि वो कुंभ, मेष, वृश्चिक सिंह में हो तो स्वामी कार्तिकेय की षडरस के व्यंजनो से पूजा करनी चाहिए और हर मंगलवार को ब्रह्मण को भोजन और दान करना चाहिए.
यदि सम राशि जैसे वृष, कर्क, तुला  मकर में गया हो तो दुर्गा की षडरस के व्यंजनो से पूजा करे, श्री सूक्त का 108 बार पाठ करे या करवाये और ब्राह्मण भोजन कराएं. 
यदि मंगल द्विस्वभाव राशि मीन, कन्या, धनु, मिथुन में बैठा हो तब विष्णु की पूजा, ब्राह्मण भोज और सन्तान गोपाल का जप करवाये. (ये स्त्री के लिए) पुरुष जातक पुरूष सूक्त का पाठ कराये और हवन करें. 

