श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्य रात्रि में रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. श्री कृष्ण कि जन्म राशि वृष थी. कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा मध्य रात्रि में की जाती है. इस दिन भगवान कृष्ण का व्रत रखते हुए उनकी पूजा की जाती है. जो वैष्णव अनुयायी है वो ठाकुर जी के सामने ही घर या मन्दिर में जन्म करवाने का आयोजन करते हैं. कृष्ण का जन्म खीरा से कराने की परम्परा भी है. लड्डू गोपाल का जन्म कराने के लिए डंठल वाला खीरा लिया जाता है. जन्माष्टमी के इस दिन घरों में महिलाएं लड्डू गोपाल के पास खीरा रख देती हैं और मध्य रात्रि 12 बजे जब जन्म का मुहूर्त आता है तो खीरे को डंठल से अलग करती देती हैं.
उत्तर भारत में मन्दिर और घरो में कृष्ण भगवान का जन्म ज्यादातर खीरे से ही करवाया जाता है. जन्म के समय जिस तरह बच्चे को गर्भनाल काटकर गर्भाशय से अलग किया जाता है उसी तरह खीरे का डंठल काटकर कान्हा का जन्म कराने की परंपरा है. खीरा काटने का सिम्बोलिक अर्थ है इस तरह बाल गोपाल को मां देवकी के गर्भ से अलग किया जाता है. खीरे से डंठल को काटने की प्रक्रिया को नाल छेदन कहा जाता है. कुछ जगहों पर खीरे को बीच से काटकर इसमें कृष्ण का बालगोपाल रूप भी रखा जाता है या सिक्का रख दिया जाता है. लोगो का विश्वास है जिस खीरे से कान्हा का नाल छेदन किया हो, यदि उसे गर्भवती महिला को खीले दें तो उसे अच्छी संतान पैदा होती है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की रात 12 बजे बाल गोपाल का जन्म हुआ था इसलिए आप भी यदि घर में उत्सव मना रहे हैं तो शुभ मुहूर्त खीरे के डंठल को काटकर कान्हा का जन्म कराएं.
इसके बाद शंख बजाकर बाल गोपाल के आने की खुशियां मनाएं और फिर विधिवत भगवान का पंचामृत से अभिषेक करें और पूजा करें. भोग में पंजीरी और चरणामृत के साथ खीरा भी चढ़ाएं. जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण को धनिया पंजीरी का भोग जरूर लगाना चाहिए. धनिया की महक बहुत अच्छी होती है और पंजीरी भी स्वादिष्ट होती है. माखन और मिश्री कृष्ण को बहुत प्रिय है इसलिए इस दिन पूजन में यह आवश्य रखें. श्रीखंड गुजरात की काफी प्रसिद्ध है इसलिए उसका भी भोग लगाया जाता है. इसे दही, चीनी, इलाइची और केसर के साथ बनाया जाता है. भगवान श्रीकृष्ण को खीर काफी प्रिय है ऐसे में स्वादिष्ट खीर भोग में लगाया और इसके आलावा सभी प्रकार के भोग अर्पित कर उत्सव मनाएं. उस भोग को सुबह प्रसाद के रूप में वितरण करे.
मुहूर्त –
सुबह के समय पूजा का शुभ मुहूर्त- प्रात:काल 5 बजकर 55 मिनट से 7 बजकर 36 मिनट तक है. इस दौरान अमृत चौघड़िया रहेगा. शाम के समय पूजा का शुभ मुहूर्त, दोपहर 3 बजकर 35 मिनट से 7 बजे तक है. रात्रि के समय पूजा का शुभ मुहूर्त- रात्रि 12 बजे से 12 बजकर 45 मिनट तक.
अभिजीत मुहूर्त में कृष्ण भगवान का पूजन प्रशस्त है. दिन के समय 11 बजकर 56 मिनट से 12 बजकर 48 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा. रात में 12 बजकर 1 मिनट से 12 बजकर 45 मिनट तक निशीथ काल में पूजन सबसे उत्तम रहेगा. जन्माष्टमी में पूजन के लिए सबसे उत्तम मुहूर्त यही है. भगवान कृष्ण ने अभिजित को अपना स्वरूप भी कहा है.

