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जन्मकुंडली का दूसरा घर या धन भाव और कुटुंब, वाणी, भोजन, शिक्षा इत्यादि से सम्बन्धित है. केतु एक पाप ग्रह है और राहु के विपरीत स्थित रहता है. अशुभ केतु के कारण आकस्मिक दुर्घटना, लडाई-झगड़े, धनहानि, व्यापार में पैसा फंसना, तंत्र प्रयोग, कारावास, मृत्यु, कुष्ठ रोग, चर्म रोग, मस्तिष्क रोग, शरीर में दर्द, कार्य करने पर भी लाभ नहीं होना, असफलता आदि सब केतु की महादशा, अंतरदशा और गोचर में प्रकट होता है. जन्म कुंडली के धन भाव में केतु व्यक्ति की मति को व्यग्र करता है और बन्धु बांधवों से कलह करवाता है. जातक की वाणी दूषित होती है, वह कटु भाषी होता है अर्थात बहुत गंदा बोलता है. यहाँ केतु मुख के रोग देता है, यदि यहाँ स्थित केतु का नक्षत्र स्वामी रेवती में हो तो जातक के दांत खराब हो जाते हैं.

ज्यादातर ज्योतिष के आचार्यों के अनुसार धन भाव में केतु धन नाशक होता है. यहाँ केतु के कारण जातक राजपक्ष से व्यग्र रहता है और डरता है. उसका चित्त अशांत रहता है और अन्न का नाश होता है. उसे अन्न की नित्यप्रति चिंता रहती है. जिस स्थान से आश्रय प्राप्ति की आशा होती है वह आश्रय ही स्थान का ही नाश हो जाता है. उसकी वाणी से विरोध होता है, यदपि की वह सत्य ही बोलता है फिर भी कुटुंब में उसका विरोध होता है. धन भावस्थ केतु विद्या का नाश भी करता है. जातक की विद्या में ब्रेक हो जाता है, वह पूर्ण शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाता है. केतु यदि शुभ ग्रह की राशि में हो तो सुख प्रदान करता है ऐसा कुछ दैवग्यों का कहना है. कुछ ऐसा मानते हैं कि धन भाव में केतु बुद्धिभ्रम पैदा करता है, जातक स्त्री सुख से रहित और विघ्नयुक्त होता है.

दूसरे भाव में केतु हो तो पिता का धन कठिनता से मिलता है अथवा नहीं मिलता है. अक्सर पिता उससे द्वेष करता है. यह जातक सदैव विघ्नयुक्त और दुखी होता रहता है. यह जातक अक्सर दूर देश में रहकर किस्मत वाला बनता है या उसका कुछ अच्छा हो पाता है. केतु यहाँ जातक का धर्म नाश भी करता है, सप्तमेश की महादशा में केतु की अन्तर्दशा काफी मुश्किलों वाली होती है. स्त्री से वियोग और धन नाश दोनों ही साथ साथ होता है. “द्वितीय भवने केतु: धनहानि प्रयच्क्षताम ” पंचमेश और नवमेश द्वारा दृष्ट होने पर यह केतु जातक को प्रतिष्ठा प्रदान करता है. यदि केतु किसी भी तरह अष्टमेश और द्वादशेश से सम्बन्धित हो तो जातक का नुकसान होता है और सामाजिक प्रतिष्ठा का नाश होता है.

उदाहरण कुंडली –

इस जन्म कुंडली में केतु सिंह राशि में है और राशि स्वामी नवम भाव में है. इस जातक को पिता से कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ. इसकी वाणी अत्यंत कटु है और विद्या की प्राप्ति नहीं हुई. शनि अंतर्गत केतु दशा में इसके कुटुंब का भी नाश हो गया था. द्वितीय स्थान का केतु विरोध करता है अर्थात यह जातक जो कुछ भी कहेगा उसका विरोध होगा. द्वितीय स्थान में मेष, मिथुन, कन्या इत्यादि कुछेक राशियों में केतु शुभ फलप्रद बताया गया है, यह निर्भर करता है केतु का कुंडली में अन्य ग्रहों के साथ किस तरह सम्बन्ध निर्मित है.

केतु की शांति के लिए उसका अनुष्ठान आदि के इतर औषधि स्नान भी एक उपाय है –

तिल पत्रिका (रक्त चन्दन, राजन ), मोथा, कस्तुरी, हाथी का मद, जल, भेड़ का मूत्र, करक (अनार) तथा गुरच (गिलोय) को जल में मिलाकर स्नान करने से केतु कृत अनिष्टो से बचाव होता है.

केतु के मन्त्रों का जप मन्त्र –

॥ ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: केतवे नम: ॥
॥ ॐ कें केतवे नम: ॥

स्तोत्र –
केतु: काल: कलयिता धूम्रकेतुर्विवर्णक: ।
लोककेतुर्महाकेतु:    सर्वकेतुर्भयप्रद: ॥1॥
रौद्रो रूद्रप्रियो रूद्र:   क्रूरकर्मा सुगन्धृक् ।
फलाशधूमसंकाशश्चित्रयज्ञोपवीतधृक्  ॥2॥
तारागणविमर्दो च  जैमिनेयो   ग्रहाधिप: ।
पञ्चविंशति नामानि केतुर्य: सततं पठेत् ॥3॥
तस्य नश्यंति बाधाश्च सर्वा:  केतुप्रसादत: ।
धनधान्यपशुनां च भवेद् वृद्धिर्न  संशय: ॥4॥