केतु को ज्योतिष शास्त्र में मंगलवत कहा गया है. पराक्रम, क्रूरता, सेनापतित्व इत्यादि मंगल के गुण इसमें भी बताये जाते हैं क्योंकि मंगल की वृश्चिक राशि इसकी उच्च राशि मानी गई है. केतु के हाथ में ध्वज इसके प्रभुत्वशाली होने का प्रतीक है. कुंडली में अच्छा केतु व्यक्ति को प्रभुत्वशाली बनाता है, जिस क्षेत्र में कार्य करता है वहां उसका झंडा गड़ जाता है. केतु को राहु का अपोजिशन कहा जा सकता है क्योंकि यह सदैव राहु से 180 डिग्री पर रहता है. यह क्रूर ग्रह है परन्तु राहु जितना अशुभ पापी नहीं माना जाता है. सूर्य क्रूर है, शनि पाप ग्रह है इस तरह समझना चाहिए. पुराने ज्योतिष के आचार्यों ने इसका फल नहीं लिखा क्योंकि यह सदैव राहु के सप्तम रहता है. यहाँ संक्षिप्त में केतु का पंचम भाव का फल लिखा जा रहा है. पंचम भाव से प्रमुख रूप से सन्तान, विद्या, भक्ति, वेद ज्ञान, कला इत्यादि को देखा जाता है. पंचम भावगत केतु सन्तान में बाधा देता है अक्सर सन्तति नहीं होती या गर्भ का नाश करता है या पैदा होकर बच्चे मर जाते हैं. यहाँ यह विद्या में भी बाधक होता है लेकिन जातक महत्वाकांक्षी होता है. जातक पेट के रोग और वायु रोग से परेशान होता है. कुछ आचार्य यहाँ तक मानते हैं कि केतु आजीवन रोगी बना कर रखता है. इन जातको को सन्तति होगी तो एक या दो होगी लेकिन सूर्य और पंचमेश की कुछ स्थितियों में सन्तान 5 होती है.. सगे भाइयों को शास्त्राघात से कष्ट होता है. यहाँ केतु हो तो अक्सर जातक पानी से डरता है. “केतौ शठ: सलिलभीरुरती” ठन्डे पानी से स्नान नहीं करता. इसकी सन्तान उसके भाई बहनों को प्यारे होते हैं. पंचमस्थ जातक अक्सर भ्रमणशील होते हैं.
यदि पंचम में केतु हो और पंचमेश अष्टम, द्वादश हो तो जातिका काकबन्ध्या होती है अर्थात उसकी एक सन्तान होकर फिर रुक जाती है. इन जातकों को अक्सर पिसाच पीड़ा होते देखा जाता है. ये जातक खल प्रकृति के और शठ होते हैं, यदि पंचमेश दु:स्थान में हो. इन जातको को मन्त्र विद्या से सिद्धि आसानी से मिल जाती है लेकिन इनके भाईयों को मन्त्र इत्यादि से आघात होता है अर्थात इनके भाइयों को अभिचार इत्यादि से हानि होती है. इन जातकों की शिक्षा में अक्सर ब्रेक होते देखा गया है. यदि केतु का राशि और नक्षत्र स्वांमी बलवान होकर शुभ स्थान और योग में हों तो ये जातक बड़े सफल होते हैं और आश्रम इत्यादि बना लेते हैं. इन्हें अक्सर गिरने का सपना आता है और ये गिरकर चोटिल भी होते हैं. यह जातक वीर होता है परन्तु दास होता है, ऐसा संहिताओं का कहना है. केतु के साथ कोई पाप ग्रह हो या पंचमेश अष्टम में चतुर्थेश के साथ हो तो इनकी माता को अत्यंत कष्ट होता है. ये जातक बहुत धार्मिक और तीर्थ की यात्रा करने वाले दानी स्वभाव के होते हैं. उपासना करने पर इनको ईश्वर का आशीर्वाद शीध्र मिलता है. पंचमस्थ केतु के जातकों को उनका प्रेमी या मित्र ही बड़ा उपदेशक होता है. उनका उपदेश उन्हें प्रभावी होता है.
बृहस्पति इन जातकों का रक्षक होता है. इन्हें गुरु की सेवा से लाभ मिलता है और शांति की प्राप्ति होती है. गुरु बृहस्पति की पूजा, विष्णु की पूजा से लाभ मिलता है. यदि पंचमेश तृतीय या द्वितीय में हो तो जातक को संगीत से लाभ मिलता है और बहुत धन की प्राप्ति होती है.
केतु से चर्म रोग, हड्डियों की पीड़ा, रक्त विकार, वायु रोग, स्वांस रोग, गर्भपात, आपरेशन, शत्रु बाधा, प्रेत बाधा, साधना में विघ्न, फोड़ा फुंसी, हथियार से चोट लगना इत्यादि होते हैं.
केतु के कुछ उपाय –
1-लहसुनियाँ, फिरोजा धारण करें.
2-कस्तुरी, तिल, बकरा, काला वस्त्र, ध्वजा मन्दिर में लगवाये, कम्बल, उड़द, लहसुनिया, सुवर्ण, शस्त्र का मुख्य रूप से तलवार का दान करें
3-अश्वगंधा की जड़ को जिस राशि में केतु हो उस राशि स्वामी के दिन या केतु के तीन नक्षत्रों अश्विनी. मघा और मूल में पूजन कर धारण करें
4-सूअर द्वारा खोदी मिट्टी , बकरी का दूध , पर्वत की मिट्टी, ये सब लोहे में भीगा दे. बुधवार, शनिवार और केतु के राशि स्वामी के दिन स्नान करें .
5- केतु का विधिवत अनुष्ठान करवाए और अंत में बकरा दान करें.

