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नीलकांत वर्णी अका सहजानंद अका स्वामी नारायण एक उत्तर प्रदेश में गरीब ब्राह्मण के घर पैदा हुआ. इसका नाम था धनश्याम पांडे. जब यह बड़ा हुआ तब इसने नाम परिवर्तित कर नीलकांत वर्णी कर लिया.  यह बाद में एक नये रामायण पंथी सम्प्रदाय में दीक्षित हो गया जहाँ इसे सहजानंद नाम मिला. यह वहां धीरे धीरे बड़े पद पर पहुंच गया और सारा कार्यभार सम्भालने लगा. उसके कार्य करने की दक्षता के कारण बाद में इसे नये रामानंदी सम्प्रदाय का मुखिया बनाया गया. यह एक बेहतर ओर्गेनाईजर था और सभी पुराणपंथी धूर्तों की तरह ही रामायण- पुराण कथा कहने वाला एक कथाकार था.

जब यह पूर्ण नवयुवक हुआ तब इसने अपना एक नया सम्प्रदाय बना लिया. जिसे उद्धव सम्प्रदाय नाम दिया गया. यह गुजरात में सेटल हो गया और वहीं अपनी पोप लीला शुरू की. उद्धव को भागवती अपने गपोड़शंख में कृष्ण का पार्षद (Councillor) मानते हैं. पार्षद कई होते हैं, पुराण पोप लीला में इनका अलग अलग फंक्शन होता है. उद्धव को लाईट-कैमरा, टेंट, कार्यक्रम करवाना, उत्सव करवाना इत्यादि का काम मिला था. वृन्दावन में सारे उत्सव उद्धव की देखरेख में होते हैं. पौराणिक गपोड़शंख के धूर्त जो भूलभुलैया (labyrinth) बनाते हैं, उसके तरफ आने वाली हर गली पर पार्षद नियुक्त हैं ताकि अवांक्षित तत्व प्रवेश कर लीला न बिगाड़ सकें.

यह सहजानंद भी पार्षद बन कर टहलने लगा और धीरे धीरे पोप लीला का इसने विस्तार किया और बनियों के काले धन से इसने बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लिया और खुद को कृष्ण बताने लगा.

अब जब खुद ही राजा कृष्ण बन गया तो मरणोंपरान्त इसका साम्राज्य का विस्तार और भी व्यापक स्तर पर होने लगा. काले धन से बने इसके बड़े बड़े मन्दिर इसके साम्राज्य हैं. बाद में यह अपने पार्षद और परिकरी भी बनाने लगा. इसके फॉलोवर्स ने राजा राम के सेवक हनुमान को उसकी सेवा में नियुक्त कर दिया. उन्होंने सोचा राजा राम से बड़ा द्वारका का यही राजा है, तो बलशाली बानर को राम की सेवा छोड़ इसकी सेवा करनी चाहिए. हनुमान का पुराना टीका मिटा कर इन्होने अपना नया टीका लगा दिया और सेवा में तैनात कर दिए. खैर, इसने भी पार्षद और परिकरी बनाये. तो परिकरी कौन होती है ?
परिकरी की रासलीला का वर्णन किसी अन्य लेख में किया जाएगा …