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हिन्दू धर्म में अष्ट योगिनियों का तो तंत्रों में विशेष महत्व है और इनकी अष्ट भैरवों के साथ उपासना की जाती है . तंत्र ज्योतिष में अन्य अष्ट योगिनियों का जिक्र है जिनकी दशा ठीक वैसे ही चलती है जैसे विंशोत्तरी दशा. अष्ट योगिनियों को सत्ताईस नक्षत्रों के अनुसार विभाजित किया गया है और उसी के अनुसार उनकी दशा का निर्धारण किया गया है. योगिनी दशा भोग का एक निश्चित समय निर्धारित है. ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों की तरह योगिनी दशाएं भी अपने समय काल में सुख और दुःख का जातक को उनके कर्मानुसार फल देती है. योगिनी दशाओं कि कुल संख्या 8 है. योगिनी दशाएं भी वास्तव में ग्रह दशाएं ही हैं. इन योगिनियों नाम के अनुसार ही कोई सिद्ध दायिनी है, कोई मंगलकारिणी हैं, कोई कष्टकारी, कोई सफलता प्रदायक हैं. जीवन की सफलता के लिए इनके दशा काल में इनकी साधना साधक के लिए बहुत ही भाग्यशाली सिद्ध होती है.  इन योगिनियों के नाम इस प्रकार से हैं : –

1. मंगला – मंगला देवी की कृपा जिस व्यक्ति पर हो जाती है उसको हर प्रकार के सुखों से सम्पन्न कर देती हैं. यथाभाव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्यक्ति का मंगल होता है.

2. पिंगला – पिंगला देवी की कृपा से सारे विघ्न शांत हो जाते हैं. धन-धान्य और उन्नति के मार्ग प्रशस्त होते हैं.

3.धान्या – धान्या देवी की कृपा से धन-धान्य की कभी क्षति नहीं होती है.

4. भ्रामरी – यदि भ्रामरी दशा में देवी की कृपा हो जाए तो शत्रु पक्ष पर विजय, समाज में मान-सम्मान तथा अनेक लाभ के अवसर आने लगते हैं.

5. भद्रिका – शत्रु का शमन और जीवन में आए समस्त व्यवधान समाप्त होने लगते हैं, यदि देवी की कृपा हो जाए.

6. उल्का – कार्यों में किसी भी प्रकार से यदि व्यवधान आ रहे हैं और अपनी दशा में उल्का देवी की व्यक्ति पर कृपा हो जाए तो तत्काल व्यक्ति के समस्त कार्यों में गति आने लगती है.

7. सिद्धा – सिद्धा दशा में परिवार में सुख-शान्ति, कार्य की सिद्धि, यश, धन लाभ आदि में आश्चर्यजनक रूप से फल मिलने लगते हैं. परन्तु सम्भव यह उस दशा में ही सम्भव है जब देवी की कृपा हो जाए.

8-संकटा – जैसा नाम वैसा ही फल. संकट दशा में यही सक्रिय रहती हैं. रोग, शोक और संकटों के कारण इस दशा का समय काल व्यक्ति को त्रस्त करता है. संकटों से मुक्ति के लिए मातृ रूप में योगिनी की पूजा करें तो देवी की कृपा होने लगती है.

योगिनी दशाओं को अनुकूल बनाने के लिए यथा भाव, सुविधा और समय निम्न प्रकार से साधना करें.

किसी शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि से पूर्णिमा तक प्रत्येक योगिनी दशा के कारक ग्रह के दिन से सम्बन्धित योगिनी दशा के कारक ग्रह के पांच-पांच हजार मंत्र पूरे कर लें. संकटा दशा के कारक ग्रह के लिए रविवार राहु के लिए तथा मंगलवार केतु के लिए चुनें. इसी प्रकार मंगला के कारक ग्रह चन्द्रमा के लिए सोमवार, पिंगला के लिए रविवार, धान्या के कारक ग्रह गुरू के लिए गुरूवार, भ्रामरी के मंगल के लिए मंगलवार, भद्रिका के ग्रह बुध के लिए बुधवार, उल्का के शनि ग्रह के लिए शनिवार और सिद्धा के लिए शुक्रवार चुनें.

योगिनी दशाओं का कुल समय काल 1 वर्ष से आरम्भ होकर क्रमशः 2, 3, 4, 5, 6, 7, और 8 वर्षों का होता है। जितने वर्ष तक योगिनी दशा का समय जन्मपत्री के अनुसार चल रहा है उतने वर्षों में निरन्तर नहीं तो अपनी समय की सुविधानुसार कुछ-कुछ अन्तराल से योगिनी दशाओं के समय काल में उनके मंत्र जप अवश्य करते रहें। साधना वांछित मंत्र जप साधना के लिए पीला आसन तथा गोघृत का दीपक जलाकर बैठें. सम्भव हो तो एक नवग्रह यंत्र अपनी पूजा में ध्यान के लिए स्थापित कर लें. अन्तिम अर्थात् पूर्णिमा को नवग्रह यंत्र अपनी पूजा में स्थाई रूप से स्थापित कर दें. तदन्तर में नित्य एक माला उस योगिनी देवी की करते रहें जिनकी दशा आप भोग रहे हैं.

योगिनियों के जप मंत्र

मंगला –

ऊँ नमों मंगले मंगल कारिणी, मंगल मे कर ते नमः

पिंगला –

ऊँ नमो पिंगले वैरिकारिणी, प्रसीद प्रसीद नमस्तुभ्यं

धान्या –

ऊँ धान्ये मंगलकारिणी, मंगलम मे कुरु ते नमः

भ्रामरी –

ऊँ नमो भ्रामरी जगतानामधीश्वरी भ्रामर्ये नमः

भद्रिका

ऊँ भद्रिके भद्रं देहि देहि, अभद्रं दूरी कुरु ते नमः

उल्का –

ऊँ उल्के विघ्नाशिनी कल्याणं कुरु ते नमः

सिद्धा

ऊँ नमो सिद्धे सिद्धिं देहि नमस्तुभ्यं

संकटा –

ऊँ ह्रीं संकटे मम रोगंनाशय स्वाहा