Spread the love

भारत की धार्मिक राजधानी कही जाने वाली वाराणसी में पिशाच मोचन पितरों को श्राद्ध और ब्रह्महत्या से मुक्ति के लिए सर्वोत्तम तीर्थ माना गया है. यह तीर्थ वाराणसी के कज्जाकपुरा इलाके में स्थित है. कपाल मोचन तीर्थ की उत्पत्ति की पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा और कृतु के विवाद के समय ज्योतिर्निगात्मक शिव का जगत् प्रादुर्भाव हुआ. जब ब्रह्मा जी ने अहंकारवश अपने पांचवें मुख से शिवजी का अपमान किया, तब उनको दंड देने के लिए उसी समय भगवान शिव की आज्ञा से भैरव की उत्पत्ति हुई. भगवान शिव ने भैरव जी को वरदान देकर उन्हें ब्रह्मा जी को दंड देने का आदेश दिया. काल भैरव ने शिव के आदेश से ब्रह्मा जी का पांचवां शीश काट दिया. ब्रह्मा जी के शीश के कटने से उन्हें ब्रह्म हत्या का दोष लगा. सिर कटने के बाद ब्रह्महत्या उनके हाथ पर कपाल के साथ ही चिपक गई. काल भैरव ब्रह्मकपाल और ब्रह्महत्या को लेकर युगों युगों तक घूमते रहे लेकिन उन्हें ब्रह्महत्या से मुक्ति नहीं मिली. हजारों साल बाद भगवान शिव के आशीर्वाद एवं प्रेरणा से काशी के उत्तर दिशा में उनकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हुआ. जब कालभैरव काशी के उत्तर में पहुंचे तो ब्रम्हा हत्या कपाल सहित हाथों से छूट कर वहीं गिर पड़ी. ब्रम्हा जी का शीश भैरव के हाथ से छूट कर जिस स्थान पर गिरा उस स्थान पर एक धारा निकल पड़ी. यह धारा ही कुंड कपाल मोचन तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हो हुई.


काल भैरव शिव की क्रोधाग्नि से उत्पन्न हुए थे. जब काल भैरव को ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिल गई तो भगवान शिव ने उन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त कर दिया. काशी में यम का कोई वश नहीं चलता, यहाँ काल भैरव का दंड चलता है. काल भैरव कोतवाल के रूप में यहाँ पापियों को दंड देते हैं. काशी में कालभैरव की आज्ञा के बगैर कोई निवास नहीं कर सकता है. बनारस में कोई भी पुलिस अधिकार, आइपीएस, आईएएस इत्यादि नियुक्ति के बाद कालभैरव की हाजिरी बजाते हैं. बनारस के काल भैरव का मन्दिर अति प्राचीन है. अकबर के राज्य काल में भी यह मन्दिर बहुत प्रसिद्ध था. वर्तमान मंदिर को साल 1715 में दोबारा बाजीराव पेशवा ने बनवाया था.

मंदिर की बनावट तंत्र शैली के आधार पर किया गया है. यहां गर्भगृह में ऊंचे पीठ पर कालभैरव का आकर्षक विग्रह है, जो चांदी से मढ़ा हुआ है. भगवान भैरव की मूर्ति वात्सल भाव से ओत-प्रोत है. ईशान कोण में तंत्र साधना करने की महत्वपूर्ण स्थली है. काल भैरव के दर्शन मात्र से ही शनि की साढ़े-साती, अढ़ैया जैसे दंडों से मुक्ति मिल जाती है. बाबा को सरसों के तेल का दीप, उड़द की दाल का बड़ा, बेसन के लड्डू चढ़ते हैं. व्यवसाय में तरक्की के लिए चीनी का घोड़ा और मदिरा चढ़ाई जाती है. मदिरा उन्हें बहुत प्रिय है.

कपाल मोचन तीर्थ में लोग ब्रम्हहत्या दोष से मुक्ति के लिए स्नान करने आते हैं, इस कपाल भैरव तीर्थ (मंदिर) के तीर्थ कुंड में स्नान करने से महिलाओं को बांझपन से मुक्ति मिलती है, चर्मरोग से भी निजात के लिए लोग इस कुंड का जल इस्तेमाल करते हैं. यहां स्नान करके लाट भैरव दर्शन-पूजन व दान करने से अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है. कपाल मोचन में दूर दूर से पिंडदान और त्रिपिंडी श्रद्धा करने के लिए आते है. यहां गंगा स्नान, पूजा, जाप, हवन, चन्द्रयान व्रत का भी उल्लेख मिलता है. कपाल मोचन कुंड अति प्राचीन है लेकिन इसकी वर्तमान समय की पक्की सीढियां, घाटों के अलावा सुरक्षित दीवार का जीर्णोद्धार 18वी शताब्दी में रानी भवानी ने कराया था.