धर्म ग्रंथों के अनुसार,जिन्हें इह लोक और परलोक दोनों में सुख की कामना हो उन्हें कार्तिक में गौ पूजन अवश्य करना चाहिए. एक वर्ष में कार्तिक अद्भुत मास होता है , यह अत्यंत शुभ होता है इसलिए गो पूजन करना चाहिए. द्वादशी तिथि विष्णु को समर्पित है. भगवान विष्णु को गायें सर्वाधिक प्रिय हैं. गोपूजन अनेक दुष्कृत्यों का नाश कर पुण्य की वृद्धि करता है. गोपूजन से शनि दोष निवृत्ति होती है. कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को गोवत्स द्वादशी का द्वादशी का पर्व भी मनाया जाता है. इस दिन गाय तथा बछड़ों की पूजा की जाती है और व्रत भी रखा जाता है. ये व्रत सभी कर सकते हैं लेकिन महिलाये प्रमुख रूप से इस व्रत को करती हैं. महिलाएं गाय का प्रतीक हैं. इस बार गोवत्स द्वादशी पर कई शुभ योग हैं, जिसके इसका महत्व और भी बढ़ गया है.
मुहूर्त-
पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि 09 नवंबर, गुरुवार को सुबह 10:42 से 10 नवंबर, शुक्रवार की दोपहर 12:35 तक रहेगी. चूंकि ये पर्व शाम को मनाया जाता है और ये स्थिति 9 नवंबर को है, इसलिए ये पर्व इसी दिन मनाया जाएगा. 9 नवंबर, गुरुवार को मातंग नाम का शुभ योग है. इसके अलावा शुभकर्तरी और उभयचरी नाम के 2 अन्य शुभ योग भी इस दिन रहेंगे. गोवत्स द्वादशी पर गाय-बछड़ों की पूजा प्रदोष काल यानी शाम को करने का विधान है. ये शुभ मुहूर्त शाम 05:31 से रात 08:09 तक रहेगा.
पूजन विधि-
सुरभि त्वं जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थिता।
सर्वदेवमये ग्रासं मया दत्तमिमं ग्रस॥
तत: सर्वमये देवि सर्वदेवैरलड्कृते।
मातर्ममाभिलाषितं सफलं कुरु नन्दिनी॥
– इस तरह गोवत्स द्वादशी पर गाय-बछड़े की पूजा करने से आपकी हर मनोकामना पूरी हो सकती है. मान्यता है कि गोवत्स द्वादशी का व्रत-पूजा करने से योग्य संतान की प्राप्ति होती है.
गायों की गोशाला में गाय को सजाना चाहिए और विधि पूर्वक पूजन करना चाहिए. गायों का अंग पूजन का विधान भी शास्त्र में किया गया है क्योंकि गायों के अंग में देवताओं का वास होता है. उन्हें भोग और कोमल चारा प्रदान करना चाहिए.
इस दिन सौभाग्य वृद्धि के लिए गोतिलक लगायें –
गोरोचनम् गोमूत्रं मुस्तां गोशकृतं  तथा !
दधि चंदनसम्मिश्रं  ललाटे तिलकं न्यसेत् ।
 सौभाग्यारोग्यदं यत स्यात सदा च ललिता प्रियं !
गोरोचन , गोमूत्र , मुश्ता , गोबर ,दही , चन्दन को मिलकर तिलक लगाये.

