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ऐसी शास्त्रीय मान्यता है कि स्त्रियों और पुरुषों में जन्म लेकर जो पाप किया है, वह सब कार्तिक मास में सिर्फ दीप दान से नष्ट हो जाते हैं. हिंदी धर्मशास्त्र के सभी ग्रन्थों में दीपदान की महिमा का वर्णन किया गया है. नारद के अनुसार कार्तिक मास में जप प्रात: स्नान कर आकाश दीप का दान करता है, वह सब लोकों का स्वामी और सब सम्पत्तियों को प्राप्त कर इस लोक में सुख भोगता है और अंत में मोक्ष प्राप्त करता है.

कार्तिक स्नान कर भगवान विष्णु के मन्दिर में या पीपल के नीचे एक मास तक दीपदान करना चाहिए. महाराज सुनंद को एक ब्राह्मण ने व्रतपूर्वक दीप दान का महात्म्य बताया था. राजा सुनंद ब्रह्म मुहूर्त में उठकर आकाशदीप का दान करते थे. प्रात: स्नान कर विष्णु पूजन करते थे. यह नियमानुसार उन्होंने एक महीने किया. मास की समाप्ति पर उन्होंने उद्यापन किया और ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान किया. इस पुण्य के प्रभाव से स्त्री-पुत्र, पुत्र के साथ उन्होंने 120 वर्ष की दिव्य आयु का भोग किया. अंत में उनकी मुक्ति हुई और विष्णु लोक की प्राप्ति हुई. जो कार्तिक में आकाश दीप का दान करते हैं वो यमराज का मुख नहीं देखते.

एकादशी से, तुला राशि के सूर्य से अथवा पूर्णिमा से लक्ष्मी सहित विष्णु की प्रसन्नता के लिए आकाशदीप का दान का प्रारम्भ करना चाहिए.

नम: पितृभ्य: प्रेतेभ्यो नमो धर्माय विष्णवे ।
नमो यमाय रुद्राय कांतारपतये नम : ।।
पितरों को नमस्कार है, प्रेतों को नमस्कार है, धर्म स्वरूप विष्णु को नमस्कार है, यमराज को नमस्कार है तथा दुर्गम पथ में रक्षा करने वाले रूद्र को नमस्कार है.

इस श्लोक का पाठ करते हुए आकाश दीप का दान करने वाले को उत्तम सुख की प्राप्ति होती है. देवालय में, नदी में, चौराहे पर, नींद लेने के जगह अर्थात बेडरम में दीपदान करने वाले को सब तरफ से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है. जो कार्तिक मास में हरिबोधिनी अर्थात देवउठनी एकादशी को गंगा तट पर या देवलय में 108 दीप का दान करता है उसे राज्य की प्राप्ति होती है. देवउठनी एकादशी को जो कर्पुर का दीपक विष्णु को अर्पित करता है, उसका कुल वृद्धि को प्राप्त करता है. पूर्व काल में कोई गोप कार्तिक अमावस्या को दीप दान कर महाधनी बन गया था. आकाशदीप के दान के प्रभाव से राजा धर्मनन्दन का साम्राज्य वृद्धि को प्राप्त हुआ और उन्हें मुक्ति प्राप्त हुई थी.