
काल सर्प दोष एक प्रबल दोष माना जाता है. यदपि की प्राचीन ग्रन्थों में जिक्र नहीं है लेकिन ज्योतिष सतत विकसित होने वाली विद्या है. कालान्तर में ज्योतिष विद्वानों ने अनुभव से इनका नामकरण इस प्रकार किया. काल सर्प दोष 12 प्रकार के होते हैं, जिन्हें ज्योतिष शास्त्र में अलग-अलग नाम दिया गया है. इनमें अनंत, कुलिक, वासुकी, शंखपाल, पद्म, महापद्म, तक्षक, कर्कोटक, शंखचूड़, घातक, विषधर और शेषनाग शामिल हैं. यह दोष कुंडली में राहु और केतु के बीच सभी ग्रहों के होने से बनता है. ये इस प्रकार हैं –
- अनंत कालसर्प दोष:राहु लग्न में और केतु सप्तम भाव में.
- कुलिक कालसर्प दोष:राहु द्वितीय भाव में और केतु अष्टम भाव में.
- वासुकी कालसर्प दोष:राहु तृतीय भाव में और केतु नवम भाव में.
- शंखपाल कालसर्प दोष:राहु चतुर्थ भाव में और केतु दशम भाव में.
- पद्म कालसर्प दोष:राहु पंचम भाव में और केतु एकादश भाव में.
- महापद्म कालसर्प दोष:राहु छठे भाव में और केतु व्यय भाव में.
- तक्षक कालसर्प दोष:राहु सप्तम भाव में और केतु लग्न में.
- कर्कोटक कालसर्प दोष:राहु अष्टम भाव में और केतु द्वितीय भाव में.
- शंखचूड़ कालसर्प दोष:राहु नवम भाव में और केतु तृतीय भाव में.
- घातक कालसर्प दोष:राहु दशम भाव में और केतु चतुर्थ भाव में.
- विषधर कालसर्प दोष:राहु एकादश भाव में और केतु पंचम भाव में.
- शेषनाग कालसर्प दोष:राहु द्वादश भाव में और केतु छठे भाव में.