गाणपत्य सम्प्रदाय सनातन धर्म के पांच प्रमुख सम्प्रदायों में एक है. वैष्णव सम्प्रदाय की एकादशी की तरह चतुर्थी इस सम्प्रदाय की सबसे महत्वपूर्ण तिथि है. गणेश विघ्नहर्ता हैं इनकी प्रथम पूजा करने का विधान है. हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है लेकिन चैत्र महीने की चतुर्थी की विशेष महत्ता है. इस महीने में सृष्टि का प्रारम्भ हुआ था. इस साल 28 मार्च 2024 को चैत्र माह की संकष्टी चतुर्थी पड़ रही है. इस दिन विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश की पूजा-उपासना की महत्ता है. मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन सच्ची श्रद्धा और भक्ति से गणपति की पूजा करने वाले की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. साथ ही सभी दुःख, संकट और क्लेश दूर हो जाते हैं. गणेश जी की पूजा केतु की अशुभ महादशा या बुध की अशुभ महादशा में करने से अत्यंत लाभ होता है.
भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी मुहूर्त –
पंचांग के अनुसार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी 28 मार्च 2024 को शाम 06.56 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 29 मार्च 2024 को रात 08 बजकर 20 मिनट पर इसका समापन होगा. 28 मार्च को चतुर्थी व्रत किया जाएगा. चन्द्रोदय के बाद भालचन्द्र संकष्टी का व्रत तोडा जाएगा. पूजन के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 10.54 से दोपहर 12.26 तक और शाम को पूजन मुहूर्त 05.04 से 06.37 बजे तक रहेगा. चंद्रोदय का समय – रात 09.28 बजे रहेगा.
चतुर्थी पूजन –
इस चतुर्थी में गणपति की विधि पूर्वक पूजा करके उन्हें मोदक सहित अन्यान्य पदार्थो का भोग लगाना चाहिए. व्रत करने वालो को चन्द्र दर्शन करके गणपति को अर्घ्य प्रदान कर पूजन सम्पन्न करना चाहिए. संकष्टी पूजा के दौरान चंद्रमा को जल में दूध और अक्षत मिलाकर अर्घ्य देना चाहिए. किसी भी देवता को अर्घ्य देते समय इस बात का ध्यान रखें कि जल की छींटे पैरों पर नहीं पड़ें. कोई पीढ़ा रख कर उस पर खड़े होकर अर्घ्य देना चाहिए. अर्घ्य स्थल की विधिवत जल से सफाई कर लेनी चाहिए.
किसी भी देवता की पूजा में किसी स्तोत्र का पाठ जरुर करना चाहिए. पार्वती नन्दन गणपति के अनेक स्तोत्र प्रसिद्ध हैं, इस गजानन स्तोत्र का पाठ करना भी फलप्रद होता है –
नमस्ते गजवक्त्राय गजाननसुरूपिणे ।
पराशरसुतायैव वत्सलासूनवे नमः ॥ १॥
व्यासभ्रात्रे शुकस्यैव पितृव्याय नमो नमः ।
अनादिगणनाथाय स्वानन्दवासिने नमः ॥ २॥
रजसा सृष्टिकर्ते ते सत्त्वतः पालकाय वै ।
तमसा सर्वसंहर्त्रे गणेशाय नमो नमः ॥ ३॥
सुकृतेः पुरुषस्यापि रूपिणे परमात्मने ।
बोधाकाराय वै तुभ्यं केवलाय नमो नमः ॥ ४॥
स्वसंवेद्याय देवाय योगाय गणपाय च ।
शान्तिरूपाय तुभ्यं वै नमस्ते ब्रह्मनायक ॥ ५॥
विनायकाय वीराय गजदैत्यस्य शत्रवे ।
मुनिमानसनिष्ठाय मुनीनां पालकाय च ॥ ६॥
देवरक्षकरायैव विघ्नेशाय नमो नमः ।
वक्रतुण्डाय धीराय चैकदन्ताय ते नमः ॥ ७॥
त्वयाऽयं निहतो दैत्यो गजनामा महाबलः ।
ब्रह्माण्डे मृत्यु संहीनो महाश्चर्यं कृतं विभो ॥ ८॥
हते दैत्येऽधुना कृत्स्नं जगत्सन्तोषमेष्यति ।
स्वाहास्वधा युतं पूर्णं स्वधर्मस्थं भविष्यति ॥ ९॥
इति श्रीगजाननस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

