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प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी का व्रत रखा जाता है. इस बार 5 दिसबंर को कालाष्टमी या कालभैरवाष्टमी है. इस दिन भगवान शिव का रौद्र रूप माने जाने वाले बाबा कालभैरव की पूजा की जाती है और कुछ लोग व्रत भी रखते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं इसदिन कुछ विशेष मन्त्रों का निशीथ मुहूर्त अर्थात मोटा मोटा 11:30 बजे के बाद से ब्रह्म मुहूर्त के 1 घंटे पूर्व तक के बीच यदि जप किया जाय तो बड़े से बड़े काम हो सकते हैं. इस पूरे काल में पूजन, बलि इत्यादि के बाद एक निश्चित संख्या का जप संकल्प पूर्वक करने से आवश्य इच्छित मनोकामना पूर्ण होगी. इस बार जो विधि हम बता रहे हैं वही विधि करें, सभी काम बनेंगे.

कालाष्टमी निशीथ मुहूर्त –

23:45 से प्रारम्भ होगा जो रात्री 1:39 तक रहेगा. लेकिन यह नहीं देखना है केवल प्रारम्भ का काल देखें. निशीथ मुहूर्त में प्रारम्भ करना है. अंत ब्रह्म मुहूर्त के 1 घंटे पूर्व. ब्रह्म मुहूर्त इसदिन 5:09 बजे से है.

पूजा विधि –
काल भैरव की मूर्ति, फोटो लगाकर पंचोपचार पूजा करें. उड़द के बड़े का भोग लगायें और गूगल का भोग दें. पूजा में “ॐ नमो भैरवाय स्वाहा” इसी मन्त्र का पूजा में प्रयोग करें. गूगल का भोग देकर एक माला रुद्राक्ष के माले से जप करे. उसके बाद निम्नलिखित मन्त्र का 1000 जप करें और ब्रह्म मुहूर्त से पूर्व खत्म करें.

मन्त्र-
ॐ ह्रीं बटुक भैरव बालक वेश, भगवान वेश,
सब आपद को काल भक्त जनहट को पाल,
करधरे शिरकपाल दूजे करवाल,
त्रिशक्ति देवी को बाल भक्तजन मानस को भाल,
तैंतीस कोटि मन्त्र को जाल,
प्रत्यक्ष बटुक भैरव जानिये मेरी भक्ति गुरु की शक्ति
फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा .

इस मन्त्र का जप पूर्ण कर चार दिशाओं में दोने में मिठाई और उड़द के बड़े बलि के रूप में समर्पित करें.
बलि इस प्रकार दे-

पहले ईशान कोण में त्रिकोण , वृत्त और चतुरस्र से मंडल बनाये. उसके बाद चारों दिशाओं में क्रमश: दोने में धूप-दीप इत्यादि से पूजा करके बलि दें –

गणेश बलि : ईशान में गणेश जी की बलि देन
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं गं गणपतये नम: इमां पूजा बलिं गृहण गृहण स्वाहा
दोने में जल अपिर्त करें और प्रणाम करें.
योगिनी बलि : वायव्य में योगिनी को बलि दें
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं यां योगिनिभ्यो नमः
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं यां योगिनिभ्य: सर्वभूताधिपति वन्दिनीभ्यो शाकिनीभ्य: त्रैलोक्यवासिनीभ्य:  इमां पूजा बलिं गृहण गृहण स्वाहा
दोने में जल अपिर्त करें और प्रणाम करें.
वटुक भैरव बलि : नैऋत्य में  बटुक को बलि दें
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वं वटुकाय नमः
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं देवी पुत्र वटुकनाथ कपिल जटाभारभास्वर पिंगलनेत्र ज्वालामुख इमां पूजां बलिं गृहण गृहण स्वाहा
दोने में जल अपिर्त करें और प्रणाम करें.

क्षेत्रपाल बलि : अग्नि कोण में क्षेत्रपाल को बलि दें
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्षें क्षेत्रपालाय नम:
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्षां क्षीं क्षूं क्षैं क्ष: एहि एहि देवी पुत्र उच्चिस्ट हारिणे मुहुर्मुहु: क्षपणक क्षेत्रपाल सर्वविघ्न नाशय नाशय सर्वोपचारसहित इमां पूजां बलिं गृहण गृहण स्वाहा
दोने में जल अपिर्त करें और प्रणाम करें.

ऐसा करने वाले की समस्त कामनाएं पूर्ण होती हैं. रुके हुए काम बनने लगते हैं. इससे भूतपीड़ा और शनि दोष की निवृति होती है.