
ज्योतिष एक पराविद्या है,इसमें संदेह की कोई जगह नहीं है। वेदांत के अनुसार न्यायत: अंग और अंगी में अविच्छेद्य सम्बन्ध होता है, ज्योतिष वेदों के षडंग में एक अंग है इसलिए ज्योतिष अनुषंगी होने के कारण वेद ही है। यह पराविद्या है। महर्षि वेदव्यास नें श्रीमदभागवत में यह श्लोक लिख कर इसको परिपुष्ट ही किया है –
ज्योतिषामयनं साक्षाद् यत्तज्ज्ञानमतीन्द्रियम् ।
प्रणीतं भवता येन पुमान् वेद परावरम् ॥
जो बात साधारणत: इन्द्रियों की पहुंच के बाहर है अथवा भूत और भविष्य के गर्भ में निहित है, वह भी ज्योतिष शास्त्र द्वारा प्रत्यक्ष जान ली जाती है.
दूसरेअर्थ की तरफ भगवान ने इंगित किया है ..
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन।।
हे अर्जुन ! मेरे जन्म और कर्म दिव्य हैं। इस प्रकार (मेरे जन्म और कर्मको) जो मनुष्य तत्त्वसे जान लेता है अर्थात् दृढ़तापूर्वक मान लेता है, वह शरीरका त्याग करके पुनर्जन्मको प्राप्त नहीं होता, परन्तु मुझे प्राप्त होता है।

जन्म और कर्म को जो तत्वत: जानने और समझने की योग्यता रखता है, वह तत्वज्ञानी होता है। ज्योतिष जातक के जन्म-कर्म को जानने की विद्या है इसलिए यह ब्रह्मविद्या का एक हिस्सा है। ज्योतिष के १८ आचार्यों में गर्गाचार्य, पराशर, वशिष्ठ इत्यादि महर्षि ब्रह्मवेत्ता थे, वेदांत के आचार्य थे साथ में ज्योतिष के भी परम ज्ञानी थे। इसलिए शास्त्रों में उनके द्वारा स्थापित सिद्धांत अकाट्य हैं और उनके द्वारा की गई भविष्यवाणी को हम वर्तमान में भी घटित होते हुए देखते हैं।
ज्योतिषाचार्य समय चक्र को यथावत देखने में सक्षम होता है। काल चक्र समष्टि और व्यष्टि में समान रूप से गतिशील है -कोई इसे समझ कर प्रस्थान कर जाता है, कोई अज्ञानता में फंसकर रोता-बिलखता रह जाता है। गर्गाचार्य ने समय चक्र को समझ कर कृष्ण का अवाहन दुर्गा पूजन और यज्ञ करके किया था। उन्हें पता चल गया था कि युग प्रवर्तन होने वाला है। इससे पहले जब कृष्ण गर्भ में ही थे तो वासुदेव से मिलने जेल में गये थे। उन्हें कृष्ण के आगमन की पूर्व सूचना थी। ऐसा वर्णन भी है कि श्री राम के आगमन की पूर्वसूचना वशिष्ठ, भारद्वाज, गौतम इत्यादि महर्षियों को थी।
भगवान कृष्ण ने युद्ध से पूर्व अर्जुन से कहा –
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो
लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे
येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः।।
मैं सम्पूर्ण लोकोंका क्षय करनेवाला बढ़ा हुआ काल हूँ और इस समय मैं इन सब लोगोंका संहार करनेके लिये यहाँ आया हूँ। तुम्हारे प्रतिपक्षमें जो योद्धालोग खड़े हैं, वे सब तुम्हारे युद्ध किये बिना भी नहीं रहेंगे।
युद्ध के समय अद्भुत बात ये हुई कि शनि भगवान कृष्ण के जन्म नक्षत्र रोहिणी का भेदन कर रहा था जो सहस्रों वर्षों में कभी एक बार करता है। सभी नवग्रह महायुद्ध की चेतावनी दे रहे थे और यह बात दो लोगो को प्रत्यक्ष दिख रही था – वसु के अवतार भीष्म को प्रत्यक्ष दिख रहा था और सूर्य पुत्र कर्ण को स्पष्ट दिख रहा था।
कर्ण ने श्री कृष्ण से कहा –
प्रजापत्यम हि नक्षत्रं ग्रहस्तिक्ष्णो महाद्युति :।
शनैश्चर: पीडयति पीडयन्न प्राणिनोधिकं ।। -उद्योग पर्व
हे मधुसुदन ! भयंकर तीक्ष्ण महाद्युतिमान् शनीच्चर संसार को पीड़ित करने के लिए रोहिणी का भेदन करने की तरफ अग्रसर है, मंगल ज्येष्ठा में वक्री होकर अनुराधा की तरफ बढ़ रहा है जो प्रिय जनों, मित्रों के महाविनाश का द्योतक है।
भीष्म ने धृतराष्ट्र से कहा –
ये चैषा विश्रुता राजस्त्रैलोक्ये साधु सम्मता। अरुंधती तयाप्येष वशिष्ठ: पृष्ठत: कृत: ।।
रोहिणी पीड्यन्नेष स्थिति राजन्नशनैश्चर:। व्यावृतं लक्ष्म सोमस्य भविष्यति महदभ्यम।। -भीष्म पर्व
हे राजन ! शनि रोहिणी शकट की तरफ जा रहा है. चन्द्रमा मृग में अपने निश्चित पथ से मुड़ गया है, यह भविष्य में महान भय का कारण बन रहा है।
दोनों ही ज्योतिष को जानने वाले थे। ज्योतिष समष्टि और व्यष्टि में घटने वाली सभी छोटी बड़ी घटनाओं को सम्यक रूप से देखने में सक्षम है, इसलिए यह वेदों की आँख है। वेद अपना एक कदम भी ज्योतिष के बगैर नहीं बढ़ा सकता। ज्योतिष को सिर्फ ग्रह पिंड के भ्रमण तक सीमित करना अज्ञानता है।
ज्योतिष एस्ट्रोनॉमि नहीं है, इसे ज्योतिष कहा गया क्योंकि यह ज्योति की विद्या है। जो कुछ भी है, वह ज्योति ही है। वैदिक धर्म की श्रुतियों में सिर्फ ज्योति का ही जिक्र है। ज्योतियों का ज्योति, सूर्य-चन्द्र और तारे जिससे प्रकाशित होते हैं, ‘सूर्य द्वारेण ते विरजा प्रयान्ति’ इत्यादि. सूर्य की ज्योति और पुरुष की आँखों की ज्योति का सम्बन्ध है, यह श्रुति कहती है। इसलिए ज्योतिष में सूर्य नेत्र ज्योति का कारक है। आदित्य प्राण है इसलिंए इसे आत्मकारक माना गया है। कोई भौतिक पिंड जिसमे नाभिकीय संलयन की क्रिया हो रही है वो आत्मकारक नहीं हो सकता। ज्योतिष का सम्बन्ध भारतीय आध्यात्म विद्या से है, इसको समझे बिना आप एस्ट्रोनॉमि से ज्योतिष के बारे में कुछ भी नहीं जान सकते, भविष्यवाणी तो बहुत दूर की बात है।