
वैष्णव धर्म में अपरा एकादशी को सर्वोत्तम व्रत माना गया है. अपरा एकादशी को उपवास करके भगवान वामन की पूजा से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है. इसकी कथा सुनने और पढ़ने से सहस्र गोदान का फल मिलता है. पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था. उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था. वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था. उस पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया. इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा. एक दिन धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे. उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया और प्रेत उत्पात का कारण समझ गये. ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा मुक्ति का उपदेश दिया. दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया. इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई. वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया. इस तिथि पर श्री हरि विष्णु की व्रत पूर्वक पूजा की जाती है. यह ज्येष्ठ मास की यह पहली एकादशी है, यह 23 मई, 2025 को पड़ रही है. ऐसी मान्यता है कि जो भक्त इस दिन का उपवास रखते हैं उन्हें धन-दौलत और पद-प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है और उसे मुक्ति मिलती है.
मुहूर्त –
पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का आरंभ 23 मई को रात 1 बजकर 12 मिनट पर होगा. एकादशी तिथि 23 मई को रात 10 बजकर 29 मिनट पर खत्म हो जाएगी. अपरा एकादशी का व्रत 23 मई 2025 को रखा जाएगा.
श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि अपरा एकादशी पुण्य प्रदाता और बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाली है. ब्रह्मा हत्या से दबा हुआ, गोत्र की हत्या करने वाला, गर्भस्थ शिशु को मारने वाला, परनिंदक, परस्त्रीगामी भी अपरा एकादशी का व्रत रखने से पापमुक्त होकर श्री विष्णु लोक में प्रतिष्ठित हो जाता है.