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हिंदू पंचांग की तेरहवीं तिथि को त्रयोदशी कहते हैं. यह तिथि मास में दो बार आती है. शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी का रवि प्रदोष व्रत 5 मई को रखा जाएगा. यह तिथि रविवार को पड़ने से अत्यंत शुभ हो गई है. हरएक वार के अनुसार प्रदोषव्रत का माहात्म्य है. रविवार के दिन प्रदोष व्रत आप रखते हैं तो सदा नीरोग रहेंगे. सोमवार के दिन व्रत करने से आपकी इच्छा फलित होती है. मंगलवार को प्रदोष व्रत रखने से रोग से मुक्ति मिलती है और आप स्वस्थ रहते हैं. बुधवार के दिन इस व्रत का पालन करने से सभी प्रकार की कामना .सिद्ध होती है. बृहस्पतिवार के व्रत से शत्रु का नाश होता है. शुक्र प्रदोष व्रत से सौभाग्य की वृद्धि होती है. शनि प्रदोष व्रत से पुत्र की प्राप्ति होती है.

सूर्य के शिव ही देवता हैं इसलिए जन्म कुंडली में नीच सूर्य हो, सूर्य दु:स्थान में हो और सूर्य की खराब महादशा हो तो इस रवि प्रदोष में शिव पूजन आवश्य करना चाहिए. त्रयोदशी तिथि शैव मतानुयायियों की सबसे महत्वपूर्ण तिथि है और शिव को यह तिथि बहुत प्रिय है. यह तिथि महादेव को समर्पित है. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा आराधना की जाती है. शैव मान्यता है कि प्रदोष व्रत करने से मनोकामना पूर्ण होती और शिव का सदैव आशीर्वाद मिलता है. प्रदोष काल में शिव पूजन की अपनी महत्ता है. इस समय पूजन से धन धन्य की वृद्धि और पुष्टि की प्राप्ति होती है. शिव की प्रशस्त तिथि है त्रयोदशी इसलिए इस तिथि में प्रदोष काल में पूजन सर्वश्रेष्ठ है.

मुहूर्त –

ज्येष्ठ माह की कृष्ण पक्ष की का दूसरा प्रदोष व्रत वैदिक पंचांग के अनुसार 08 जून, 2025 को सुबह 07 बजकर 17 मिनट पर शुरू होगी और 09 जून, 2025 को सुबह 09 बजकर 35 मिनट पर समाप्त होगी. प्रदोष व्रत 8 जून को किया जायेगा. 8 जून को रवि प्रदोष व्रत के दिन पूजा का शुभ समय शाम को 7 बजकर 18 मिनट से रात 9 बजकर 19 मिनट तक रहेगा.

आयु, वृद्धि, स्वास्थ्य लाभ और कल्याण के लिए त्रयोदशी का व्रत करना चाहिए. प्रात: स्नान करके निराहार रहकर, भगवान शिव का ध्यान करें. शिव मंदिर में जाकर या घर पर ही भगवान शंकर की पूजा करें. पूजा से पूर्व त्रिपुण का तिलक अवश्य धारण करें. पूजा में बेल पत्र चढ़ावें, धूप, दीप अक्षत से पूजा करें, ऋतु फल चढ़ावे “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का रुद्राक्ष की माला से जप करें. पूजा के अंत में ब्राह्मण को भोजन कराकर सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा दें. प्रदोष व्रत करने वाला पृथ्वी पर शयन करे, एक बार पारण के समय ही भोजन करें. इससे सभी कार्य सिद्ध होते हैं. यह व्रत सभी सुख, धन, आरोग्यता देने वाला है.