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वैदिक ज्योतिष में हर लग्न के लिए मारक और अशुभ ग्रह निश्चित हैं. मेष लग्न में शुक्र को सबसे बड़ा मारक कहा गया है यदपि की इसकी द्वादश स्थान में स्थिति भोगकारक होती है. मेष और कन्या लग्न के इतर किसी लग्न में द्वितीय हॉउस का स्वामी बारहवे हो तो ज्यादातर शुभ फल नहीं देता  लेकिन मेष लग्न में शुक्र काफी शुभ फल करता है. मेष लग्न में शुक्र बाद इस लग्न के लिए बुध, शनि और नवमेश बृहस्पति अशुभ फल दाई होते हैं. बुध षष्टम लार्ड है इसलिए सिद्धांतत: पापग्रह है, इसकी मंगल से युति घातक हो जाती है. मंगल लग्न स्वामी होता है इसलिए ज्यादातर ज्योतिष विद्वान् इस लग्न में अष्टमेश का दोष नहीं मानते जबकि ऐसा नहीं है, मंगल भी मारक हो जाता है. शनि इस लग्न में सबसे पापी ग्रह है इसलिए इसमें मारकत्व बुध से ज्यादा होता है. यदि बृहस्पति को ले तो यह नवम भाव का स्वामी होकर शुभ ग्रह है लेकिन यह द्वादश लार्ड भी है तो इसका कोई सम्बन्ध पाप ग्रहों से होगा तो साहचर्यत: यह मारक बन जायेगा.

बृहस्पति नवमेश है लेकिन फिर भी मेष लग्न में यह कर्म-धर्माधिपति योग का निर्माण नहीं कर सकता है क्योंकि दशम हॉउस इसकी नीच राशि है और शनि इस लग्न में सबसे बड़ा पाप ग्रह है. दशम भाव में बैठकर यह द्वितीय और षष्टम भाव पर दृष्टि डालेगा जो अनिष्ट परिणाम दे सकता है. इनकी युति पापफल देने वाली होगी.  सिद्धांत के अनुसार दशम भाव और नवमेश में दोनों यदि पाप-मारक ग्रह न हों तभी केंद्र में कर्म-धर्माधिपति योग बन सकता अन्यथा नहीं बन सकता. शनि पापग्रह है और गुरु द्वादश लार्ड होकर मृत्यु खंड में मारक होता है इसलिए इनकी दशा अनिष्टकारी हो सकती है. इन दोनों का युति-दृष्टि सम्बन्ध या समसप्तक सम्बन्ध बहुत अशुभ फल कर सकता है. ज्योतिष में समसप्तक 7-7 सम्बन्ध को अशुभ ही मानना चाहिए क्योंकि सप्तम मारक ही होता है. यह सिद्धात की बात है, कुंडली में योगों, अन्य अन्य ग्रहों के साथ इसकी स्थिति, नक्षत्र, नवांश इत्यादि के अनुसार इसका निर्णय लेना चाहिए.

एक उदाहरण गुलशन कुमार की कुंडली का लेते हैं –
तिथि 5.5.1951, समय-4:59, दिल्ली

Gulshan Kumar Dua died in a shooting outside the Jiteshwar Mahadev Mandir, a Hindu mandir dedicated to Lord Shiva of which he attended daily in Jeet Nagar, Andheri West suburb of Mumbai, on 12 August 1997. He was shot 16 times.
गुलशन कुमार का जन्म अमावस्या में शनिवार को हुआ था. इस तिथि में राहु महाकाल है. लग्न में चन्द्रमा षष्टेश से अश्विनी नक्षत्र में में युत है जो शुभ नहीं है. जन्म कुंडली में चलित चार्ट में राहु द्वादश में बृहस्पति से युत है और षष्टम में शनि-केतु से युत है. 1996 दिसम्बर में राहु की महादशा शुरू हुई. राहु शनि की मूलत्रिकोण राशि में कुम्भ में पूर्वभाद्रपद नक्षत्र में स्थित है और बृहस्पति शनि के उत्तरभाद्रपद में है. मेष की द्रेष्काण कुंडली में राहु सप्तम हॉउस में मारक है. शनि-बृहस्पति का अपोजिशन अशुभ हॉउस 6-12 में है. नवांश कुंडली में शनि अष्टम में है और मारक बृहस्पति द्वारा दृष्ट है. 12 अगस्त 1997 को राहु-राहु-बृहस्पति की दशा में इनकी हत्या हुई.