जीवित्पुत्रिका व्रत यानी कि जितिया या जिउतिया व्रत महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु के लिए रखती हैं. यह व्रत बहुत ही कठिन व्रतों में से एक है. महिलाएं बिना अन्न जल ग्रहण किए इस व्रत को करती हैं और अपनी संतान के बेहतर स्वास्थ्य और सफलता की कामना करती हैं. इस व्रत के बारे में लोक भाषा में कहा गया है “आश्विन अंधरिया दूज रहे, संवत 1917 के साल रे जिउतिया। जिउतिया जे रोपे ले हरिचरण, तुलसी, दमडी, जुगुल, रंगलाल रे जिउतिया। अरे धन भाग रे जिउतिया.” संवत 1917 या ई. सन् 1860 में पौराणिक युग में इस व्रत को वैष्णवों ने प्रचारित किया और यह घर घर पहुंच गया. यह एक जीमूतवाहन नाम के राजा की कहानी पर प्रचारित हुआ. यह राजा जगन्नाथपुरी क्षेत्र में कहीं का एक गायक था जो सामन्त बन गया था. इस साल यह व्रत महिलाएं 25 सितंबर दिन बुधवार को करेंगी. इसमें जिउतिया पहनी जाती है जो सोने या चांदी का चन्द्राकार बनाया जाता है. इस दिन निर्जला व्रत करके भगवान जीमूतवाहन की विधिपूर्वक पूजा की जाती है.
व्रत का महूर्त –
इस बार आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी 24 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 38 मिनट से प्रारंभ होकर 25 सिंतबर को 12 बजकर 10 मिनट तक है. इसलिए जितिया का व्रत 25 सितंबर को रखा जाएगा.
जीमूतवाहन राजा कि कहानी – 18वीं शताब्दी में एक गायन करने वाला गन्धर्व था जो काफी धनी था और एक सामन्त बन गया था. उसके पिता ने राजपाट छोड़कर उसे राजा बना दिया और जंगल चला गया. कुछ साल बाद जीमूतवाहन का भी राजकाज में मन नहीं लगा. वह भी अपने पिता के साथ वन में जाकर रहने लगा. यहां वन में ही उसने मलयवती नामक कन्या से विवाह किया. जीमूतवाहन को एक दिन वन में एक वयोवृद्ध महिला रोती हुई अवस्था में मिली जो सर्पों की माता थी. उसने उस महिला से रोने का कारण पूछा तो उसने बताया कि गरूड़ पक्षी को नागों ने वचन दिया है कि वह पाताल लोक में न प्रवेश करें, इसके लिए वे रोज एक नाग उनके पास आहार के लिए भेज दिया करेंगे. ताकि गरूड़ उस नाग को खाकर अपनी भूख शांत कर सकें. उस वृद्धा ने बताया कि आज गरूड़ के पास जाने की बारी उसके बड़े बेटे शंखचूड़ की है. राजा ने महिला को आश्वासन दिया कि वह उनके बेटे को कुछ नहीं होने देगा. जीमूतवाहन पक्षीराज गरूड़ के पास गया मानो वह कोई विष्णु का पार्षद हो. जीमूतवाहन लाल कपड़े में लिपटकर वहां गया, गरूड़ पक्षी उसको पहचान नहीं पाया और उन्हें नाग समझकर अपने पंजे में दबाकर उड़ गया. जब एक पहाड़ के शिखर पर रुका और जीमूतवाहन से पंजे से निकालकर खाने के लिए आगे बढ़ा तो देखा कि जीमूतवाहन तो एक मनुष्य हैं और दर्द से बुरी तरह से कराह रहा है. गरुण को जीमूतवाहन पर दया आ गई और उसने उसे मुक्त कर दिया. फिर जीमूतवाहन ने सारी बाते बताई और नागों का भक्षण न करने की प्रार्थना की. गरूड़ जीमूतवाहन के साहस और दया को देखकर काफी प्रसन्न हुआ और वचन दिया कि वे अब कभी भी नागों का भक्षण नहीं करेंगा. इस प्रकार राजा जीमूतवाहन ने अपने साहस और सूझबूझ से एक मां के बेटे को जीवनदान दिलाया. तब से राजा जीमूतवाहन भगवान के रूप में पूजे जाने लगा. हिन्दू महिलाये अपनी संतान के लिए जीवित पुत्रिका नामक व्रत रखकर उनकी पूजा करने लगीं. इसमें बेटे के लिए सोने का जिउतिया बनवाना अनिवार्य है, इसके बिना व्रत पूरा नहीं होता.

