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कथा वाचक राजेन्द्र दास जी अक्सर प्रेतों की कथा कहते रहते हैं. लगता है प्रेतों से उनका पुराना नाता है. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की आत्मा अपने पाप कर्मो के कारण मरने के बाद भटकती रही थी. अक्सर वह राजेन्द्र दस जी के गुरु राधा बाबा के यहाँ आ जाती थी. वह बड़ा कष्ट में रहती थी. तब उन्होंने उसकी मुक्ति के लिए भागवत पुराण का परायण करवाया था. यह कथा कुछ धुन्धुकारी से मिलती जुलती है इसलिए धुन्धुकारी की कथा नीचे दी जा रही है और साथ में वीडियो भी ..बाबा को सुनें और समझें.

भागवत पौराणिक कथा के अनुसार, तुंगभद्रा नदी के तट आत्मदेव नामक ब्राह्मण रहता था, जो बड़ा ही विद्वान था. आत्मदेव को सबसे बड़ा दुख यह था कि उसके कोई संतान नहीं थी. एक बार वह जंगल में गया तो उसे एक साधु मिले. उसने साधु को अपनी पीड़ा बताई. तब साधु ने उसे एक फल दिया और कहा कि इसे अपनी पत्नी धुंधली को खिला देना. लेकिन, उसकी पत्नी ने ये फल खुद नहीं खाया और इसे गाय को खिला दिया. कुछ समय बाद गाय ने एक बच्चे को जन्म दिया, जो एक मनुष्य के रूप में था. उसका नाम गोकर्ण रखा गया. धुंधली को उसकी बहन ने अपना एक पुत्र दे दिया, जिसका नाम धुंधकारी रखा गया. दोनों पुत्र में गोकर्ण तो ज्ञानी व पंडित निकला, लेकिन धुंधकारी दुष्ट व पापी निकला. उसने अपने जीवन में चोरी करना शुरू कर दिया. उसने दूसरों को कष्ट पहुंचाना शुरू कर दिया. अंत में उसने अपने पिता की सारी संपत्ति नष्ट कर दी. इससे दुखी होकर पिता आत्मदेव घर छोड़कर वन में चले गए और प्रभु भक्ति में लीन हो गए. उन्होंने धर्म कथाएं सुननी शुरू कर दीं. इधर, मां धुंधली घर पर ही थी. एक दिन धुंधकारी ने मां को मारा पीटा और पूछा कि धन कहां छिपा रखा है. अपनी बेटे की रोज रोज मार से तंग आकर मां धुंधली कुएं में कूद गईं..
कुछ समय बाद धुंधकारी की भी मृत्यु हो गई और वह अपने कुकर्मों के कारण प्रेत बन गया. उसके भाई गोकर्ण ने उसका गयाजी में श्राद्ध व पिंडदान करवाया, ताकि उसे मोक्ष प्राप्त हो सके. लेकिन, मृत्यु के बाद धुंधकारी प्रेत बनकर अपने भाई गोकर्ण को रात में अलग—अलग रूप में नजर आता. एक दिन वह अपने भाई के सामने प्रकट हुआ और रोते हुए बोला कि मैंने अपने ही दोष से अपना ब्राम्हणत्व नष्ट कर दिया. गोकर्ण आश्चर्यचकित थे कि श्राद्ध व पिंडदान करने के बाद भी धुंधकारी प्रेत मुक्त कैसे नहीं हुआ. इसके बाद गोकर्ण ने सूर्यदेव की कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने दर्शन दिए. गोकर्ण ने सूर्यदेव से इसका कारण पूछा तब उन्होंने कहा कि धुंधकारी के कुकर्मों की गिनती नहीं की जा सकती. इसलिए हजार श्राद्ध से भी इसको मुक्ति नहीं मिलेगी. धुंधकारी को केवल श्रीमद्भागवत से मुक्ति प्राप्त होगी. इसके बाद गोकर्ण महाराज जी ने भागवत कथा का आयोजन किया. जिसे सुनकर धुंधकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई और प्रेत योनि से मुक्ति मिली.