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पुराणों के अनुसार पुष्य नक्षत्र के मध्याह्न काल में जब महाराजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे, उसी समय पृथ्वी से एक बालिका का घड़े में प्राकट्य हुआ। जोती हुई भूमि तथा हल के नोक को ‘सीता’ कहा जाता है इसलिए बालिका का नाम ‘सीता’ हुआ। यह तिथि फाल्गुन कृष्ण अष्टमी थी इसलिए यह माता सीता के अवतरण की तिथि माना जाता है जिसे श्री जानकी जयंती कहते हैं। कुछ सीता जन्म को नवमी तिथि में मनाते हैं। सीता माता और राधारानी दोनों का ही जन्म कृष्ण अष्टमी हो हुआ था। 
फाल्गुनस्य च मासस्य कृष्णाष्टम्यां महीपते।
जाता दाशरथे: पत्‍‌नी तस्मिन्नहनि जानकी॥
अर्थात्- फाल्गुन कृष्ण अष्टमी के दिन प्रभु श्री राम की पत्नी जनकनंदिनी प्रकट हुई थीं। इसीलिए इस तिथि को सीता अष्टमी के नाम से जाना जाता है।
माता सीता महालक्ष्मी का अवतार कही जाती हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है एवं राम-सीता का विधि-विधान से पूजन करता है, उसे 16 महान दानों का फल, पृथ्वी दान का फल तथा समस्त तीर्थों के दर्शन का फल मिल जाता है। माता सीता शक्ति स्वरूपिणी जगन्माता हैं, इन्हें सनातन धर्म में एक आदर्श पत्नी माना गया है। माता सीता भगवान श्री राम की श्री शक्ति है। इसीलिए फाल्गुन कृष्ण अष्टमी का व्रत रखकर सुखद दांपत्य जीवन की कामना की जाती है। सुहागिन महिलाओं के लिए यह व्रत बहुत महत्वपूर्ण है। यह व्रत एक आदर्श पत्नी और सीता जैसे गुण हमें भी प्राप्त हो इसी भाव के साथ रखना चाहिए। जानकी जयंती के दिन सीता-राम जी का एक साथ पूजन करके माता सीता की मांग में 7 बार सिंदूर लगाएं और वहीं सिंदूर हर बार अपनी मांग में लगाएं, इससे वैवाहिक जीवन सुखमय हो जाता है। शादी योग्य युवतियां भी यह व्रत कर सकती है, जिससे वह एक आदर्श पत्नी बन सकें।पंचांग मुहूर्त : 
दिन- गुरूवार
तिथि: फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष ,अष्टमी तिथि का प्रारंभ- 23 फरवरी को शाम 04 बजकर 56 मिनट पर होगा जो 24 फरवरी 15 बजकर 3 मिनट पर खत्म होकर नवमी लग जायेगी।
चन्द्र राशि- वृश्चिक, चन्द्र नक्षत्र -अनुराधा  13:31 मिनट तक तत्पश्चात ज्येष्ठा गंडमूल नक्षत्र में होगा ।
सूर्य राशि- कुम्भ, सूर्य नक्षत्र -शतभिषा
योग : सर्वार्थ सिद्धि योग – 06:49 से 13:31 मिनट तक रहेगा
सुबह से 06:49 से 13:31 मिनट तक इस योग में ही समयानुसार शुभ लग्न में माता सीता की श्री राम जी के साथ सभी संभव उपचारों से विधिपूर्वक करें माता को श्रृंगार की चीजें अवश्य अर्पित करें। अंत में आरती अर्चना कर सुख और समृद्धि की कामना करें। साधक अपनी इच्छानुसार दिनभर व्रत कर सकते हैं संध्याकाल में आरती अर्चना के पश्चात फलाहार करें।