
विष्णु सहस्रनाम भगवान विष्णु के हजार नामों का संकलन है. हिन्दू धर्म में सहस्रनाम लिखने का प्रारम्भ विष्णु सहस्रनाम से हुआ. विष्णु सहस्रनाम पर पहला भाष्य आदि शंकराचार्य ने किया और एक एक नाम का अर्थ स्पष्ट किया. धर्म और आध्यात्म के विद्वानों ने ॐकार से इतर जब भगवान के नामों पर चिन्तन किया, जिनमे शुभता हो और जो उनके आध्यात्मिक स्वरूप का वर्णन करने में सक्षम और सिद्धिप्रद हों. वे नाम जिनके स्मरण और चिन्तन से ईश्वर के स्वरूप का साक्षात् हो, ईश्वर की उदात्त छवि मन में प्रकट हो सके! तो इस चिन्तन का परिणाम स्वरूप विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र सामने आया. यह आध्यात्मिक चिन्तन, साधना और लेखन की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है. विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र से बहुत आगे की बात तब घटित हुई जब ललिता सहस्रनाम लिखा गया. ब्रह्मांड पुराण के अनुसार इस सहस्रनाम का उपदेश विष्णु के हयग्रीव अवतार ने शक्ति के महान उपासक महर्षि अगस्त्य को ‘श्रीपुर’ में प्रदान किया. यह श्रीचक्रात्मक श्रीपुर देवी ललिता का महल है और बड़ा रहस्यमय है, इसका कोई लौकिक अस्तित्व नहीं है. यह सृष्टि के मेरु पर स्थित है. दक्षिण भारत में ऐसी मान्यता है कि हयग्रीव ने अगस्त्य को सहस्रनाम की दीक्षा थिरुमियाचूर में स्थित ललिताम्बा मन्दिर में दिया था.

ऋषिअगस्त्य श्री विद्या के महान उपासकों में शरीक हैं. यह सहस्रनाम इस विधा में पराकाष्ठा है, इससे आगे शायद नहीं जाया जा सकता है. यदि नाम को लें तो विष्णुसहस्रनाम बहुत उत्तम कोटि का सहस्रनाम है लेकिन इसमें वो बात नहीं है जो ललितासहस्रनाम में है. यह मन्त्र शास्त्र के अनुसार लिखा गया है, इसके एक एक नाम गुप्त रहस्यों को समाहित किये हुए हैं और मंत्रात्मक हैं. इन नामों के रहस्य को साधना द्वारा ही जाना जा सकता है इसलिए इसे ‘रहस्यनामसाहस्रम’ कहा गया है. मां त्रिपुर सुन्दरी के आदेश से इन नामों का गायन सर्वप्रथम स्वयं वाक् देवी द्वारा किया गया था. ललिता सहस्रनाम के चिन्तन से देवी की अद्भुत छवि हृदय में प्रकट होने लगती है. इसके ध्यान मन्त्र ही बहुत अद्भुत हैं. यह सहस्रनाम सभी देवियों और देवताओं को समाहित करता है और उपसंहार स्वरूप है.
सृष्टिकर्त्री ब्रह्मरूपा गोप्त्री गोविन्दरूपिणी ॥ संहारिणी रुद्ररूपा तिरोधान-करीश्वरी । सदाशिवाऽनुग्रहदा पञ्चकृत्य-परायणा।। ॐ शिवायै नम:, ॐ ब्रह्मरूपायै नम:, रूद्ररूपायै नम:, सदाशिवायै नम:, गोविन्दरूपिणी नम:, ॐ रमायै नम:,ॐ दुर्गायै नम: ॐ भैरव्यै नम: इत्यादि. ये नाम मन्त्र हैं इसलिए इस सहस्रनाम स्तोत्र को माला मन्त्र कहा गया है.
विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र के छपने के बाद सहस्रनामों की होड़ लग गई. हर सम्प्रदाय ने अपने अपने देवताओं के सहस्रनाम लिख डाले, यह कुछ उसी प्रकार है जैसे हनुमान चलीसा. तुलसीदास ने तो हनुमान चलीसा अपने लेखन और अपनी भक्ति के एक विशेष क्षण में हनुमान की अनुकम्पा से लिखा, लेकिन पुजारी-बाबा वर्ग ने सबके चलीसा छाप डाले. सनातन हिन्दू धर्म के पतन, उसकी परजीविता और अधर्म का एक बहुत बड़ा कारण उनके आध्यात्मिक चिन्तन और विमर्श का खत्म हो जाना है. यह परजीविता इस हद तक बढ़ गई कि पुजारियों ने आदि शंकराचार्य जैसे आचार्यों का नाम भी बदनाम किया और उनके नाम पर अनेक वाहियात स्तोत्र रच डाले. उस ज्योतिर्मयी वांग्मयी देवी की उपासना के बगैर न तो अच्छे स्तोत्र लिखे जा सकते हैं, न सहस्रनाम और ना ही भजन लिखे जा सकते हैं.
ऐन्द्रस्येव शरासनस्य दधती मध्ये ललाटं प्रभां शौक्लीं कान्तिमनुष्णगोरिव शिरस्यातन्वती सर्वतः । एषाऽसौ त्रिपुरा हृदि द्युतिरिवोष्णांशोः सदाहःस्थिता छिन्द्यान्नः सहसा पदैस्त्रिभिरघं ज्योतिर्मयी वाङ्मयी ॥
क्या भैरव चलीसा में भक्ति की वही सच्चाई है जो हनुमान चालीसा में हैं? क्या मीरा के पद्यों में जो सच्चाई है वो फ़िल्मी गानों की धुन पर भजन बना कर गाने में है ?
[सात समुन्दर पार
मै तेरे पीछे पीछे आ गयी
मैं तेरे पीछे पीछे आ गयी]
सात समंदर लांघ के हनुमत लंकानगरी आ गए
हनुमत लंकानगरी आ गए
ऐसा किया कमाल देखकर लंकावासी डर गए
सात समंदर लांघ के हनुमत लंकानगरी आ गए
क्रोधित बजरंगी लंका में आग लगाके आ गए
सात समंदर लांघ के हनुमत लंकानगरी आ गए
हनुमत लंकानगरी आ गए
धर्म इतना बड़ा धंधा बन गया है कि कुछ भी करते हैं. आजकल यूट्यूब पर अधिक से अधिक वीडियों बना कर व्यू लेना है, पैसे कमाने हैं इसलिए जो बन जाये वही बना लेते हैं. इनमे धर्मभाव नहीं होता और न धर्म के प्रति इनका कोई सम्मान है. कार्यक्रम करना है, खुद भजन कैसे लिखें, उतना पढ़े लिखे भी नहीं हैं और न उतनी साधना भक्ति है तो फ़िल्मी गानों पर बना कर म्यूजिकल प्रोग्राम कर लेते हैं.
कवि हरिवंशराय बच्चन ने उमर खैय्याम की रुबाईयों से प्रभावित होकर ‘मधुशाला’ लिखी थी और उनकी सच्चाई इस बात में निहित है कि किताब की प्रस्तावना में उमर खैय्याम को याद किया और उन्होंने कुछ ऐसे भाव में लिखा ‘हे ईश्वर मैं अपनी पूजा की थाली में अपने फुल न ला सका परन्तु इस थाली को हमने सजाया हैं, आप इसे स्वीकार करें’ किताब मेरे पास नहीं है लेकिन कुछ इसी भावना में लिखा है. कविता , भजन में सच्चाई होनी चाहिए. अच्छी कविता भी भजन जैसी ही होती है जिसे पढ़ कर मन आनंदित होता है.
ललिता सहस्रनाम स्तोत्र की रचना छलाक्षर सूत्रों के अनुसार किया गया है. इसके 51 श्लोक प्रस्तावना हैं, 181.1/2 श्लोक सहस्रनाम हैं 86.1/2 फलश्रुति है. यह कुल 320 श्लोकों में समाहित है. यह सहस्रनाम महासिद्धिप्रद इसलिए कहा गया है क्योंकि यह मन्त्रमय है और इसका प्रयोजन ‘श्री’ की प्राप्ति है.