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जैन धर्म अणुवाद को मानता है. सभी कर्म पुद्गलात्मक हैं अर्थात कर्मों के सूक्ष्म अणु है जो आत्मा पर चिपक जाते हैं. पुद्गल के पाँच गुण हैं – स्पर्श, दर्शन, रस, श्रवण और गंध अर्थात इन्हें देखा जा सकता है, सुना जा सकता है, चखा जा सकता है, स्पर्श किया जा सकता है. जब तक आत्मा कर्मों के पुद्गल से लिप्त हैं, तब तक वह संसार के जन्म-मरण के द्वंद्व में बंधी हुई हैं. ग्रह भी पंच तत्वात्मक हैं इसलिए ग्रह पंच तत्वात्मक पुद्गलों को प्रभावित करते हैं और तदनुसार प्राणी को शुभाशुभ की प्राप्ति होती है. सुने क्या कह रहे हैं जैन मुनि –