यह मन्त्र शिव का अघोर मन्त्र है अर्थात घोर, दुस्तर मन्त्र नहीं है, बहुत सरल है. इस मन्त्र से शिव का पूजन और जप सर्वसिद्धिप्रद माना गया है. इस मन्त्र के जप में कोई विधिविधान नहीं है, कोई शुद्धि-अशुद्धि नहीं है. सात्विक या तामसिक का भी कोई प्रतिबन्ध नहीं है. कुछ भी खा-पी कर इसका जप किया जा सकता है. इसे किसी भी स्थिति में, कहीं भी जप सकते हैं. इसके जप से अघोरेश्वर भगवान शिव की तुरंत कृपा होती है और उपासक के सारे विघ्न, कष्ट, भय, विरोध, मोह, दरिद्रता का नाश होता है. यह उत्तम संजीवनी मन्त्र माना गया है. अर्ध रात्रि के समय सूने घर में, वटवृक्ष के नीचे, शमशान में, जंगल में अथवा वेश्या के घर में इसका जप प्रशस्त माना गया है. किसी शुभ समय में शिव का पूजन कर दस हजार जप करने से ही विशेष लाभ मिलता है. इस मन्त्र के जप में रुद्राक्ष और स्फटिक दोनों में किसी माला का प्रयोग किया जा सकता है.
मन्त्र का विनियोग पढ़ें –
अस्य श्रीमदघोर मन्त्रस्य श्रीकालाग्निरूद्र महाकाल वामदेव ऋषय: त्रिष्टुप पंक्तिरनुष्टुप छन्दांसि श्रीमदघोरभैरवो देवता अणिमाद्यष्ट सिध्यर्थं अघोर जपे विनियोग:
मन्त्र –
ॐ अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो अघोरघोरेतरेभ्यः । सर्वतः शर्वः सर्वेभ्यो नमस्ते रुद्र रूपेभ्यः
मतान्तर से सम्प्रदाय के अनुसार –
सर्वतः शर्वः सर्वेभ्यो अघोरघोरेतरेभ्यः, अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो नमस्ते रुद्र रूपेभ्यः
उपरोक्त विनियोग नीचे दिए गये मन्त्र के लिए ही दिया गया है.
ध्यान यह पढ़ें –
श्री चन्द्रमंजुलगताम्बुजपीठमध्ये ।
देवं सुधास्रविणमिंदु कलावतंसम ।।
मुद्राक्षसूत्रकलशामृत पदमहस्तं ।
देवं भजामि हृदये भुवनैकनाथम् ।।
इस मन्त्र का कमसे कम सवा लाख जप करना चाहिए. कृत्तिका नक्षत्र के अंतिम चरण में शिव पूजन कर इस मन्त्र का सुने जंगल में 10 हजार जप करके , घी, आटे, नील सूत्र और नील पुष्प से 1000 मन्त्रों से हवन करने से जो इच्छा करे वह पूर्ण होती है.
शनिवार समाप्त हो रहा हो रविवार का प्रारम्भ हो रहा हो उस समय पीपल वृक्ष के नीचे शिव पूजन कर दस हजार मन्त्र जपने और उपरोक्त हवन करने से भी मनोकामना पूर्ण होती है. सुने घर में या उजड़े घर में किसी शिवरात्रि में दस हजार मन्त्र जपं कर इन 9 पशुओं में (मृग, बकरा, भेंड़ा, भैसा, सूअर, मुर्गा, गीध, कछुआ या कबूतर) किसी एक का इच्छानुसार अघोरेश्वर शिव को बलि देने से इच्छित कामना पूर्ण होती है.

