विश्वास करो। जगदम्बा पर निर्भर हो जाओ। वैसा होने पर स्वयं कुछ नहीं करना पड़ेगा। मां दुर्गा ही सब करेंगी। निर्लिप्त, अनासक्त होकर रहो। यह भक्तियोग की शिक्षा है जिसे भगवद्गीता में भी विशेष रूप से दिया किया गया है। भगवद्गीता शुरू ही शरणागति से होती है “शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।”
व्यास देव जमुना पार जा रहे थे, गोपियाँ भी तट पर पहुंच गईं। उनको भी पार जाना है, दही, दूध, मक्खन बेचने जा रही हैं। किन्तु नौका नहीं है, कैसे पार जाएँ? सब चिंता करने लगीं। इसी समय व्यास देव बोले, मुझे बड़ी भूख लगी है।
उस समय गोपियों ने उनको दूध, मलाई, मक्खन -सब कुछ बहुत पेट भरकर खिला दिया। व्यास देव प्राय: सब ही खा गये। तब डकारते हुए उठे और जमुना को सम्बोधन करके बोले – हे जमुने ! मैंने यदि कुछ भी नहीं खाया है, तो फिर तुम्हारा जल दो भाग में हो जायेगा और बीच के रास्ते से हम चले जायेंगे।
गोपियाँ सुन कर आवाक् – ये व्यास देव कितने झूठे हैं, अभी तो सारा दूध, दही और मक्खन खा गये और कहते हैं कुछ खाया नहीं ! व्यास देव के शब्द सुन जमुना प्रकट हो गई और प्रणाम किया, मुस्कुराई.. और उसी पल ठीक वैसा ही हो गया। जमुना दो भाग में हो गई, बीच में उस पार जाने का रास्ता हो गया। उस रास्ते से व्यास देव और गोपियाँ सब पार हो गये।
मैंने खाया नहीं- इसका यही अर्थ है कि मैं शुद्धात्मा हूँ। शुद्धात्मा निर्लिप्त और असंग है – प्रकृति के परे है। उसकी भूख प्यास नहीं। जन्म मृत्यु नहीं। अजर, अमर, सुमेरुवत। जिसका ऐसा ब्रह्म ज्ञान हो गया है, वह जीवन्मुक्त है। वह ठीक ठीक धारणा कर सकता है कि आत्मा अलग है और देह अलग।
भगवान का दर्शन होने पर देहात्मबुद्धि नहीं रहती। जैसे नारियल का जल सूख जाने पर गोला अलग, खोल अलग हो जाता है, वैसे ही।

