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वाल्मीकि रामायण को ही राम कथा के बावत प्रमाणिक माना जाता है. लेकिन एक ही ऐसा सन्दर्भ है इस ग्रन्थ में जो लक्ष्मण के जन्म को तीन महीने बाद सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है. राम और लक्ष्मण के जन्म का प्रसंग देखें –

ततो यज्ञे समाप्ते तु ऋतूनां षट् समत्ययुः |
ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ || १-१८-८
नक्षत्रेऽदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पंचसु |
ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पताविंदुना सह || १-१८-९
यज्ञ-समाप्ति के पश्चात् जब छः ऋतुएं बीत गयीं, तब बारहवें मास में चैत्र के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में कौसल्या देवी ने दिव्य लक्षणों से युक्त, सर्वलोकवन्दित जगदीश्वर श्रीराम को जन्म दिया. उस समय (सूर्य, मंगल, शनि, गुरु और शुक्र) ये पांच ग्रह अपने-अपने उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चन्द्रमा के साथ बृहस्पति विराजमान थे.

“सार्पे जातौ तु सौमित्री कुळीरेऽभ्युदिते रवौ ”  लक्ष्मण के जन्म के समय कर्क लग्न था, चन्द्रमा अश्लेशा नक्षत्र में प्रविष्ट हुआ और सूर्य कर्क लग्न में प्रविष्ट हुआ. उस दिन दशमी तिथि थी. “कुळीरेऽभ्युदिते रवौ” का अर्थ है सूर्य कर्क लग्न में उदित हुआ.
RALPH T. H. GRIFFITH translates – “The sun had reached the Crab at morn
When Queen Sumitrá’s babes were born,
What time the moon had gone to make
His nightly dwelling with the Snake”

गीता प्रेस वाल्मीकि रामायण में इस श्लोक का अनुवाद में लिखा है – उस समय सूर्य अपने उच्च स्थान में विद्यमान था. जबकि श्लोक में ऐसा नहीं कहा गया है.

कभी दशमी तिथि में सूर्य-चन्द्र एक राशि में नहीं हो सकते हैं. उधर राम के जन्म के समय नवमी तिथि है और सभी पांच ग्रह उच्च के हैं अर्थात सूर्य मेष राशि में है. दूसरे दिन ही सूर्य तीन राशि कूद कर कर्क में कैसे पहुंच सकता है? RALPH T. H. GRIFFITH ने वेदों का अनुवाद किया है, ऐसे में उससे यह गलती कैसे हो सकती है ? वह 1877 तक बनारस संस्कृत कॉलेज में प्रिसिपल भी रहे थे.

एक अन्य जगह “कुळीरेऽभ्युदिते रवौ”” के अनुवाद में लिखा है कि उस समय कर्क लग्न था और सूर्य उदित हो रहा था अर्थात सूर्योदय हो रहा था. .