हमने अनेक लेखों में यह जिक्र किया है कि पुराण काल में तंत्र बहुत प्रभावी था और यह लगभग सभी पुराणों में प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष रूप से मौजूद है जिसे वैष्णवों ने जनता से छुपाया और अपनी उत्तर वैष्णव काल की शाकाहारी कट्टरता को लागू किया. पुराणों और महाभारत के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि कृष्ण, अर्जुन आदि भी तंत्र द्वारा देवी की उपासना करते थे. रामायण काल में भी यह बहुत प्रभावी था जिसका उदाहरण परशुराम, राम, रावण, बालि और सहस्रार्जुन ये सभी हैं.
श्री विष्णु पुराण वैष्णव पुराणों में सम्भवत: मत्स्य पुराण के बाद सबसे प्राचीन है. भागवत पुराण, विष्णु पुराण का विस्तार है लेकिन इसमें विष्णु के सफेद और काले केशों से उत्पन्न कृष्ण-बलराम को स्वतंत्र व्यक्तित्व प्रदान किया गया. विष्णु पुराण में देवताओं के कहने पर विष्णु भगवान ने अपने सफेद और काले केश उखाड़ कर पटक दिया था और देवताओं को कहा था इसी शक्ति से कृष्ण बलराम पैदा होंगे और कंस का वध करेंगे. विष्णुपुराण को देखें तो कृष्ण अंशावतार हुए.
इस विष्णुपुराण में स्वयं भगवान विष्णु योगमाया की उपासना मांस-मदिरा द्वारा करने के लिए कहते हैं . मेरे लेखन को कट्टरपंथी वैष्णव झुठला सकते हैं लेकिन इस टैक्स्ट स्निप्पेट को तो नहीं झुठला सकते हैं न ?

मूलभूत रूप से वैष्णव भी छद्म तंत्र की प्रेक्टिस करते रहे हैं और सम्भवत: क्योंकि पुराण ही उनका एकमात्र ग्रन्थ है इसलिए इसमें कही बातों को अक्षरश: फॉलो भी करते ही होंगे? यदि नहीं करेंगे तो पौराणिक कैसे कहे जायेंगे ? भागवत पुराण एक तन्त्र का ग्रन्थ है (पांचरात्र तन्त्र का ) यह मैं लिख चूका हूँ और इसे बार बार कहने की जरूरत है ताकि वैष्णवों की हिपोक्रेसी का लोगों को पता चले. .
पांचरात्र के बारे में शास्त्रों में जिक्र है कि इसका उपदेश असुरों के नाश के लिए किया गया था. किन असुरों का नाश ? इन पौराणिक वैष्णवों का नाश? या कोई और थे असुर ? यह नहीं बताया गया है.
इति


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