
पितृ पक्ष में पूर्वजों के निमित्त पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म करने से जीवन में आने वाली बाधाएं परेशानियां दूर होती हैं और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. सभी शास्त्र कहते हैं कि देवपूजा से पहले जातक को अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए. श्री राम ने भी अनेक तरह से श्राद्ध कर्म किया था. यह मान्यता प्राचीन है कि पितरों के प्रसन्न होने पर देवता भी प्रसन्न होते हैं. पितरों का श्राद्ध में पितरों को पिंड दान दिया जाता है जिसमे जौ के आटे, तिल और चावल से बने गोलाकार पिंड होते हैं. लेकिन आपको यह आश्चर्य होगा कि प्राचीन काल में पितरों को मांस का भी दान दिया जाता था.
भारत में अनेक सम्प्रदाय हैं इसलिए अनेक प्रकार के पुराण भी हैं. पुराणों में तीन तरह का विभाजन है सात्विक, राजसिक और तामसिक पुराण. विष्णु पुराण, मत्यस्य पुराण सात्विक कोटि के पुराण हैं, भागवत पुराण, देवी भागवत आदि राजसिक पुराण हैं और ज्यादातर पुराण तामसिक हैं. क्योंकि उनके लिखने वालों पर कलि का गहरा प्रभाव पड़ चूका था, इनमे लिंग पुराण, शिव पुराण, कालिका पुराण, मार्कण्डेय पुराण आदि तामसिक हैं .
मार्कण्डेय पुराण तंत्र मार्ग का एक तामसिक पुराण है इसलिए यहाँ पितरो को श्राद्ध में विविध मांस प्रदान करने का वर्णन किया गया है. गौरतलब है कि मार्कण्डेय ऋषि एक शैवाचार्य थे, तंत्र के साधक थे और वैष्णव भी माने जाते हैं. महान ऋषियों की गति सब चीज में होती थी, वे विधि-निषेध से परे होते थे.
मांस प्रदान करने का वर्णन बहुत अद्भुत है. कहा गया है कि श्राद्ध करने वालों के पितर विभिन्न योनियों में हो सकते हैं इसलिए तदनुसार उनका पिंड और श्राद्ध किया जाना चाहिए. यहाँ पितरों को मांस अर्पण करने का इस प्रकार से प्रसंग दिया गया है –

यदपि यहाँ पितरों को मांस प्रदान करने का वर्णन किया गया है फिर भी यह कदापि न करें क्योंकि यह एक तामसिक पुराण है. यह प्राचीन काल में प्रचलन में रहा होगा लेकिन उत्तरोत्तर अनुभव में आया कि इससे पितर नाराज हो जाते हैं. पितृ अब मनुष्य नहीं हैं, वे पितृ हो गये हैं जिनका शासन पितृ लोक से अर्यमा करते हैं. पितरों का श्राद्ध सदैव शुद्ध वैदिक रीति से ही सम्पदित करें और करवाएं.
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