
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की समस्त राजनीति धर्म की राजनीति है और इसके द्वारा सत्ता प्राप्त करना है. यह धूर्त क्रिमिनल संगठन हिन्दू धर्म पर विशेष रूप से प्राचीन आचार्यों द्वारा स्थापित परम्पराओं और उनके द्वारा स्थापित मठों और आचार्यों पर हमले कर रहा है. उनके महत्व को खत्म करने का राजनीतिक षड्यंत्र कर रहा है. पिछले एक दशक से यह धूर्त सन्गठन लगातार राजनीतिक रूप से पोषित कालनेमि बाबाओं को उत्पन्न कर रहा है. आरएसएस द्वारा उत्पन्न बाबाओं में बहुसंख्यक क्रिमिनल और बलात्कारी हैं और अनेक जेल भी जा चुके हैं.
हालिया में आरएसएस ने कुम्भ मेले में सनातन धर्म के खिलाफ एक हिमांगी सखी नाम की किन्नर को देश की पहली किन्नर जगतगुरु की उपाधि दिलवाई हैं. हिमांगी सखी एक किन्नर कथा वाचक हैं जिसे किन्नरों के परी अखाड़े ने पट्टाभिषेक किया गया है. भारत में आज कल कुत्ते भी गली गली जगतगुरु बन कर पिसाचवत घूम रहे हैं. सनातन धर्म में जगतगुरु का पद आदि शंकराचार्य को दिया गया था क्योकि उन्होंने सनातन धर्म को पुन: प्रतिष्ठित किया था और सभी सम्प्रदायों में सामजस्य स्थापित किया था. सनातन धर्म में महर्षि वेदव्यास ने वेदों के चार विभाग किये थे, उसी प्रकार आदि शंकराचार्य ब्रह्मसूत्र सहित सभी श्रुतियों का प्रथम भाष्य किया था और वेदों का क्या अर्थ है उसे पारिभाषित किया था. कालान्तर में जितने आचार्य आये वे उनके ही अनुगामी हैं और उनके ही भाष्यों के आधार पर अपने भाष्य किये.
आदि शंकराचार्य ने चार मठ सनातन धर्म की रक्षा और प्रचार के लिए स्थापित किये थे. इनमे पुर्वामनाय गोवर्धन मठ जगन्नाथ पुरी (उड़ीसा), पश्चिमन्नाय द्वारका मठ (गुजरात) , दक्षिणाम्नाय शारदा पीठ श्रृंगेरी (कर्नाटका) और उत्तराम्नाय ज्योतिर्मठ जोशीमठ (उत्तराखंड ) में स्थित हैं. इन पीठों पर उन्होंने अपने दिग्गज चार शिष्यों को स्थापित किया था. उनके बाद से यह परम्परा आज भी सतत जारी है और पीठ के आचार्यों को जगतगुरु कहा जाता है. जगतगुरु पद एक्सक्लूसिव है और यह सिर्फ शंकराचार्य को ही देने की सनातन परम्परा है. इन चार पीठों पर वर्तमान में चार शंकराचार्य है – गोवर्धनमठ पर अधिष्ठित जगतगुरु स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज, द्वारका पीठ पर जगतगुरु स्वामी सदानंद सरस्वती जी , श्रृंगेरी शारदा पीठ पर शंकराचार्य जगद्गुरु भारती तीर्थ जी और ज्योतिर्मठ पर जगतगुरु स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी विराजमान हैं. लेकिन जबसे आरएसएस की राजनीति प्रभावी हुई है वे अपने बाबा कालनेमि की तरह पैदा कर रहे हैं और उनसे राजनीतिक कार्य करवाते हैं. ये बाबा एक गुलाम की तरह कार्यरत हैं जिनमे ज्यादातर क्रिमिनल हैं. आरएसएस-भाजपा ने नकली शंकराचार्य भी बनाये और घुमाये हैं. एक अभी भी प्रपंच करता रहता है. आरएसएस से पूर्व भी राजनीतिक दलों ने नकली शंकराचार्य बना कर घुमाये थे. यह सनातन हिन्दू धर्म के साथ बहुत बड़ा राजनीतिक षड्यंत्र है.
यदि शंकराचार्य की पीठ खत्म कर दिया जाय तो हिन्दुओं की सबसे बड़ी अथारिटी खत्म हो जाएगी और हिन्दुओं को विभाजित करना और उन पर राज करना आसान हो जायेगा. आरएसएस एक देशद्रोही संगठन है यह ध्यान रखना जरूरी है, इनका जन्म देशद्रोही गतिविधियों से हुआ. ये सनातन धर्म की हर चीज से नफरत करते हैं और उसे खत्म करने का कुचक्र चला रहे हैं. इनका एकमात्र उद्देश्य हिन्दू मन्दिरों पर कब्जा करना है जो इन्होने राम मन्दिर पर कब्जा करके दिखाया. इनका उद्देश्य धर्म की राजनीति कर मन्दिरों की सम्पत्ति लूटना है. आरएसएस हिन्दू धर्म की परम्पराओं को खत्म कर एक अराजकता पैदा करना चाहता है इसलिए राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि के लिए हिजड़ों और क्रिमिनल्स को बाबा और धर्मगुरु बना रहे हैं. एकदिन ये वेश्याओं को हिन्दुओं का धर्मगुरु बनायेंगे और कहेंगे हिन्दू उनकी चरणों से मुक्ति प्राप्त करे. हिजड़ा जो पाप की उत्पत्ति है, अपने पूर्व कर्मों से उसे यह अभिशप्त रूप प्राप्त हुआ और जो अपने मृत सगे सम्बन्धी का दाह संस्कार करते समय उसे चप्पल से पीटते हैं, उसे धर्म गुरु बनाकर हिन्दुओं को शिवमन्त्र और गायत्री मन्त्र दिलवाया जाएगा तथा मुक्ति दिलाई जायेगी. यह एक घोर पतन है.

यह ध्यान रखना चाहिए कि हिजड़े Androgynous नहीं हो सकते, ये तो त्रिशंकु की तरह सस्पेंडेड अर्थात बीच में लटक गये है. शिव Androgynous हैं इसलिए उनका अर्धनारीश्वर रूप है. Androgynous या तो पुरुष हो सकता है या स्त्री, नपुंसक हिजड़ा नहीं हो सकता. उसकी मुक्ति इस देह में सम्भव नहीं है क्योकि हिजड़ा शरीर एक अभिशप्त शरीर है. यह शरीर ही मुक्ति का साधन है. ऐसे अभिशप्त मनुष्य को हिन्दू समाज भगवा पहने धर्मगुरु के रूप में कैसे देख सकता है? भारत में आजकल ज्यादातर हिजड़े सेक्स वर्कर हैं, उनकी डिमांड शहरो में बहुत है और वे वेश्याओं की तरह अच्छा खासा चार्ज करते हैं. हिन्दू धर्म में ब्रह्मा जी ने शतरूपा और मनु को उत्पन्न किया था, किसी तीसरे लिंग को उत्पन्न नहीं किया था. ईसाई धर्म के बाईबिल में भी स्वर्ग में एडम और ईव ही थे, कोई तीसरा हिजड़ा नहीं था क्योकि यह कोई लिंग ही नहीं है. सृष्टि कर्म सिर्फ दो लिंग द्वारा ही सम्भव है, स्त्री लिंग और पुलिंग या Androgynous जिसमे कोई एक लिंग प्रकट है लेकिन गुणों के अनुपात में विषमता हो जाने से उसका स्पष्ट पूर्ण प्रकटन नहीं हुआ है. जब समय के अनुसार कर्मानुसार वह प्रकट होता है तो उसकी लोंगिंग उस दूसरे लिंग की तरफ होती है जो वह वास्तव में है. लेकिन यह रूप भी एक विकार के कारण ही होता है और अभिशाप ही है. हिजड़ा रूप एक विशुद्ध विकार है जिसमे हिजड़ा किसी लिंग को प्राप्त नहीं कर पता और बीच में सस्पेंड या लटक गया है. यह कारण है कि हिजड़े स्वयं को अभिशप्त मानते हैं. ऐसे अभिशप्त प्रजाति को धर्मगुरु बना कर सनातन धर्म को भ्रष्ट और नीचे गिराने का काम किया जा रहा है.