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हिन्दू कर्मकांड और पूजा में कुश का विशेष प्रयोग है. कुशा को दर्भ या डाभ भी कहा गया है. मत्स्य पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के वराह अवतार के शरीर से कुशा बनी है. पितृपक्ष में श्राद्ध के दौरान कुशा का विशेष उपयोग होता है. इसके बिना तर्पण अधूरा माना गया है. कुशा की पवित्री किसी भी पूजा अनुष्ठान का आवश्यक अंग है. पूजन में देवताओं को अर्घ्य प्रदान करने में भी कुशा का प्रयोग किया जाता है.  दुर्गाशप्तशती में देवी ब्राह्मणी के अवाहन पर उनका जो स्वरूप प्रकट हुआ उसे ‘ कौशाम्भक्षरिके देवी ” कह कर व्यक्त किया गया है. जिसको कुशाम्भ पढना चाहिए. जब वे प्रकट होती हैं तो असुरो की हानि और देवो की शक्ति की वृद्धि होती है.  कुशाम्भ में कु-वेद है. जो वेदों में शयन करता है वह कुश है. उदाहरण के लिए लव, कुश नाम को लो .. लव समय का सबसे सूक्ष्म आयाम है, तो जो लव में रहता है अर्थात समय के उस सूक्ष्म आयाम को जानता है और उसमे ही रहता है वह लव है, कुश वह है जो वेदों के ऋतं और सत्यं में शयन करता है. वह वेदों का रहस्य जानता है इसलिए वह कुश है. यह देवताओं के लिए अमृत है. यह रहस्य अतिगम्भीर है इसलिए अपनी बिंदुरूपता में कौशाम्भ है. कुश पर जब जल की बुँदे पडती हैं तो बिंदु रूप बन जाती हैं और कुश के अंतिम सिरे से टपक पडती हैं. यह जो ज्ञान की क्षरण रूप किया है वही कुश है. कुश निवृत्ति रूप है.

दूर्वा- दूर्वा के मन्त्र का अर्थ समझने से ही दूर्वा के सिम्बोलिक प्रयोग के अर्थ को जान सकते हैं.
ॐ काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती परुषः परुषस्परि। 
एवा नो दूर्वे प्रतनुसहश्रेण शतेन च।।
यह प्रवृत्तिमार्ग का प्रतीक है इसलिए इस श्लोक में “प्रतनुसहश्रेण शतेन च” हे दूर्वे तुम सहस्रों साखाओं वाली हो, हर शाखा से तुम्हारा विस्तार हो. हिन्दू शादी में दूर्वा स्त्री के आंचल में हल्दी, अक्षत और दक्षिणा के साथ बाँध कर भेजते हैं. दूर्वा बहुत सिम्बोलिक अर्थ रखता है, दूर्वा की एक जड़ शुरू होती है तो उसकी जड़ों का जाल बन जाता है, हर जड़ से एक नई दूर्वा विकसित होने लगती है, उसी प्रकार यह अपेक्षा स्त्री से भी किया जाता है.

दूर्वा का प्रयोग सभी देवताओं के लिए नहीं होता, यह देवी और गणेश पूजन में विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है. दूर्वा को दूब, अमृता, अनंता और महौषधि जैसे अनेकों नामों से जाना जाता है. ऐसा पुराण बाबा मानते हैं कि दूर्वा को गाय को खिलाने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है. आयुर्वेद के अनुसार यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में काफी लाभदायक है. इसका सेवन करने से अनिद्रा की बीमारी से राहत मिलती है. दूब में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-सेप्टिक तत्व पाए जाते है इसलिए इसके प्रयोग से त्वचा में खुजली, चकत्ते आदि से राहत मिलती है. इसका पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाने से भी लाभ मिलता है. अनीमिया जैसी बीमारियों के लिए दूब बहुत उपयोगी मानी जाती है क्योंकि दूब रक्त कोशिकाओं को बढ़ाने के साथ रक्त साफ करने का कार्य करती है.  प्रातःकाल दूब पर नंगे पांव चलने से आंखों की रोशनी बढ़ती है और  को गर्म पानी में उबालकर पीने से मुँह के छाले दूर हो जाते हैं।