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सहजोबाई मध्यकालीन भक्ति आंदोलन की एक प्रसिद्ध भक्त थीं, जो निर्गुण भक्ति धारा से जुड़ी थीं. वह चरणदासी संप्रदाय से संबंधित थी, जो संत चरणदास जी के शिष्य थे. सहजोबाई, मीराबाई के बाद, इस संप्रदाय में सबसे अधिक प्रसिद्ध नाम है. उन्होंने मीरा की तरह ही पद्य लिखे और उसमे अपने मन की भावनाओं को व्यक्त किया. निपढ़ भक्तो की परम्परा में यह सभी में देखा जाता है कि भले ही निरक्षर थे लेकिन कुछ कविता की पोथी अपनी टूटी फूटी भाषा में लिख कर गये. यह कविताओं की पोथी लेकर निरक्षर नानक ने अपनी किताब बना ली जिसे गुरुग्रन्थ कहा जाता है और पन्थ भी बना लिया.
इन निरक्षर भक्त कवियों के मरने के बाद उसके गद्दी पर महंथ भी बैठे और प्रपंच फैलाना जारी रखा. इनका प्रभाव निरक्षर जन समुदाय या जाति विशेष पर देखा जाता है. वर्तमान समय में इस परम्परा के मठाधीश कुछ राज्यों में जाति विशेष में काफी प्रभावी हैं. कुछ कबीर पंथी ठग रामपाल जैसे हैं जो हरियाणा इत्यादि में काफी प्रभाव रखते हैं. पश्चिम जगत में एक से एक कवि विद्वान् हुए जिनकी कविताएँ दीप्त हैं लेकिन वे भगवान को देखने वाले नहीं बताये गये. भारत में ऐसे कवियों की भरमार है जो थे तो निपढ लेकिन निरक्षर भारतीय समाज में वे भगवतप्राप्ति करने वाले बताये गये. भारत में गधे भी अवतार होते हैं. अभी एक मलूक पीठ के महंथ हैं जो गपोड़शंख की कहानी कहते रहते हैं. यही गपोड़शंख उनकी रोजी रोटी है. यही बाद में पुराण बन जाता है.

प्रेम दिवाने जो भये, मन भयो चकना चूर।
छके रहे घूमत रहैं, सहजो देखि हज़ूर॥

जो व्यक्ति प्रेम के दीवाने हो जाते हैं, उनके मन की सांसारिक वासनाएँ-कामनाएँ एकदम चूर-चूर हो जाती हैं. ऐसे लोग सदा आनंद से तृप्त रहते हैं तथा संसार में घूमते हुए परमात्मा का साक्षात्कार कर लेते हैं.

मन में तो आनंद है, तनु बौरा सबअंग।
ना काहू के संग है, सहजो ना कोई संग॥
में भगवत्प्रेम से अनुभूत आनंद छा जाने पर शरीर के सब अंग भाव-मग्न हो जाते हैं.उस दशा में न तो किसी के साथ रहने की ज़रूरत पड़ती है और न कोई संगी-साथी रह पाता है। अर्थात् ईश्वरी प्रेमानन्द में बाहरी साधन व्यर्थ हो जाते हैं.

हरि किरपा जो होइतो, नाहिं होइतो नाहिं।
पै गुरु किरपा दया बिनु, सकल बुद्धि बहि जाहिं॥
इस सांसारिक जीवन में ईश्वर की कृपा हो तो ठीक है, परंतु नहीं हो, तो उतना अहित नहीं होता है लेकिन गुरु की कृपा अवश्य होनी चाहिए. क्योंकि गुरु की कृपा एवं दया के बिना सारी बुद्धि या ज्ञान चेतना नष्ट हो जाती है.