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श्री रामकृष्ण परमहंस अद्वैत वेदांत के गुरु तोताराम से दीक्षित हो चुके थे. रामकृष्ण तीब्र बुद्धि लेकर पैदा हुए थे इसलिए सम्पूर्ण वेदांत की बहुत संक्षिप्त में व्याख्या करने में सक्षम थे. उनकी वेदांत की समझ उपनिषद के ऋषियों की तरह ही थी. उनके उपदेशों को पढकर इसको समझा जा सकता है.

एकदिन रामकृष्ण परमहंस गंगा तट के करीब वट वृक्ष के नीचे रात्रि में ध्यान और चिन्तन कर रहे थे. उस समय ध्यान करते समय एक भैरव भयानक शोर करते हुए और भय का माहौल बनाकर रामकृष्ण के सामने ही पेड़ पर से धप्प से कूदा. रामकृष्ण परमहंस ध्यानस्थ थे. उनका ध्यान टूटा, उन्होंने देखा सामने विकराल भैरव. उन्हीने कहा – आ इधर बैठ, मैं भी भैरव ही हूँ. ध्यान कर मेरी तरह. “नेह नानास्ति किंचन”. रामकृष्ण परमहंस पुन: ध्यानस्थ हो गये.

यह सुनकर भैरव को बड़ा आश्चर्यचकित हुआ, वह जिस प्रकार भयंकर शोर करते हुए आया था वैसे ही गायब हो गया.