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शास्त्रों में दीपदान को भी एक बहुत बड़ा उपाय माना गया है, दीपदान वास्तव में एक याग की तरह है. यह एक सबसे आसान और प्रभावशाली उपाय माना गया है. भगवान शिव ने कहा है “आपत्काले महादेवी दीपदानं समाचरेत” अर्थात आपत्काल में, संकट में, महारोग में दीपदान करना चाहिए, यह शीघ्र फलदायक होता है. दीपदान सदैव संध्या में सूरज छिप जाने के तीन घंटे के भीतर अथवा ब्रह्म महूर्त में सूर्योदय से पूर्व करना चाहिए. संकल्प पूर्वक किसी देवता के समक्ष, दुर्गा जी, शिव जी या भगवान विष्णु के समक्ष, गंगा नदी में, पीपल वृक्षं के नीचे, गोशाला में, तुलसी के सामने, शमी वृक्षं के नीचे, मन्दिर में करना चाहिए. दीप दान घर द्वार पर भी कर सकते हैं परन्तु सबसे अच्छा पीछे बताये स्थान पर ही है.

महीनों में पूरे वैशाख में, कार्तिक, मार्गशीर्ष, माघ पूर्णिमा को, अश्विन महीने में दीपदान करना चाहिए. संकल्प पूर्वक पूर्णिमा से पूर्णिमा तक दीपदान करना चाहिए. हर एक मास में दीप दान कर सकते हैं. विशेष तिथि में विशेष दीपदान करना चाहिए. 7, 11, 21, 31, 41 दिन संकल्प पूर्वक दीपदान करना चाहिए. देवी के दीप दान के लिए ये चीजे आवश्यक हैं –

1- दीपक किसी आधार पर रखना चाहिए. जैसे अक्षत के उपर, या दीप स्टैंड पर .
2-दीपक में रुई की बत्ती लगाना चाहिए. बत्ती का सिरा सिंदूर से रंग लेना चाहिए.
३-मनोरथ के अनुसार दीप संख्या होनी चाहिए. देशी घी सर्वोत्तम होता है लेकिन क्षमता न होने पर तिल का तेल प्रयोग कर सकते हैं.
4-दीपदान सदैव देवता के समक्ष होना चाहिए और दीपदान करते समय देवता का नाम मन्त्र बोलकर “दीपं समर्पयामि” कहना चाहिए.
5-सभी कामनाओं के लिए दीपक का मुख पूर्व दिशा में रखें, शत्रु बाधा के लिए दक्षिण में, रक्षा या बचाव के लिए पश्चिम की तरफ मुख करके दीप दान करे, धन के लिए उत्तर दिशा में दीप दान करें कोई शास्त्र पश्चिम भी कहते हैं. धन प्राप्ति के लिए पश्चिम मुख होकर पूजन और जप करें ऐसा शास्त्र कहते हैं.

6- विघ्न के निवारण के लिए 30 दीपक, रोग शांति के लिए 300 दीपक , महारोग की शान्ति के लिए 88 दीपक, मृत्यु के निवारण के लिए 216 दीपक, सकल मनोरथ के लिए 444 दीपक जलाएं .
ज्यादा दीपक की संख्या हो तो निश्चित दिन में दीपदान पूरा करने के लिए बड़े दीपक का प्रयोग करें और उसमे उसके अनुसार बत्ती लगायें जैसे 108 दीपक जलाने हैं तो एक बड़े दीपक में 9 बत्ती लगा कर 12 दिन में 108 दीपक की संख्या पूरी हो जायेगी.
7-दीपक के साथ भोग भी रखना चाहिए. दुर्गा जी के दीपक के साथ ही भोग भी एक दोने या कटोरे में रखें.
8- दुर्गा जी के लिए मासिक दुर्गा अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी को विशेष दीपदान करें. दुर्गा को 13 दीपक लगाने से मनोरथ पूर्ण होता है. चैत, अषाढ़, पौष, अश्विन या किसी महीने में 13 दीपक लगा सकते हैं. दीप लगा कर उसका पंचोपचार पूजन करना अच्छा रहता है.

दुर्गा के लिए 13 दीपदान करने के लिए सबसे पहले आगे –
1 दीपक
3 दीपक
9 दीपक
इस क्रम से लगायें.

दीपक लगाते समय दुर्गा जी के मन्त्र बोले – ॐ दूं दुर्गायै नम: या चामुंडा मन्त्र बोलें
दीपक लगा कर यह श्लोक पढना चाहिए – “करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापद:” और मन में देवी से अपनी ईच्छा की पूर्ति के लिए निवेदन करना चाहिए.

विशेष दीपदान –
चार इंच ऊँचे और 16 इंच लम्बे पीठ पर कलश स्थापित करें और उसपर देवी माता दुर्गा की प्रतिमा को स्थापित करें या पूजित विग्रह के समक्ष या शक्ति पीठ में करें. दीप को षटकोण बनाकर उस पर अक्षत रख कर तब दीपक स्थापित करें. तेरह मुख वाले तेरह दीपक रखे या तेरह दीपक थाल में सजा कर रखें या कमसे कम एक बड़े दीपक में तेरह बत्ती का दीपक लगायें. तेरह दीपक में 11 -11 बत्ती लगाये तो 143 बत्ती का दीपक हुआ. अब सभी रोग निवारण के लिए संकल्प लें और दीप दान दुर्गा माता को करें . इसके उपरान्त गुरु का ध्यान करके दुर्गा पूजन प्रारम्भ करें. दुर्गा पूजन करके शप्तशती का 9 पाठ करें. यदि शप्तशती पाठ नहीं करने आता तो सिर्फ दुर्गा शप्तश्लोकी का ही 108 पाठ करे. हर पाठ पूरा होने पर एक विल्ब पत्र देवी को अर्पित करें. पाठ हो जाने के बाद देवी को पुष्पांजली प्रदान करें और पायस अर्थात खीर का भोग अर्पित करके आरती करें. देवी को भूमि पर लेट कर प्रणाम करें और अपने रोगनिवृत्ति या कामनापूर्ति के लिए के लिए प्रार्थना करें. इसके बाद कन्या भोजन कराएँ, उन्हें दान देकर संतुष्ट करें.