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हिंदू पंचांग के अनुसार होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इस त्यौहार के साथ ही चैत्र महीना शुरू हो जाता है और हिन्दू नववर्ष का प्रारम्भ इसी महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में होता है. हिन्दू परम्परा में होली के पूर्व होलिका का दहन किया जाता है. होलिका की कथा भागवत पुराण में मिलती है. यह हिरण्यकशिपु की बहन थी. हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती. कथा के अनुसार जब हिरण्यकशिपु किसी भी प्रकार से प्रहलाद को नहीं मार पाया तो उसने होलिका को प्रहलाद को लेकर अग्नि में प्रवेश करने काआदेश दिया. आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया. यह समय फाल्गुन की पूर्णिमा का पूर्वार्ध था. तब से फाल्गुन पूर्णिमा में होली से पूर्व पाप और अधर्मरूपी होलिका का दहन किया जाता है. होली का त्यौहार अति प्राचीन है. विंध्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित ईसा से ३०० वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी इसका उल्लेख किया गया है.

होलिकादहन का मुहूर्त
इस बार पूर्णिमा तिथि 24 मार्च की सुबह 9 बजकर 55 मिनट पर पृथ्वी लोक की अशुभ भद्रा के साथ शुरू हो रही है. भद्रा रात 11:13 तक रहेगी, इसलिए भद्रा समाप्ति के बाद ही होलिका दहन किया जाएगा. पूर्णिमा तिथि के पहले आधे भाग में भद्रा रहती है. फाल्गुन मास में प्रदोषव्यापिनी पूर्णिमा को ही होलिका कहा गया है. शास्त्रों में भद्राकाल में होलिका दहन और पूजन का निषेध किया गया है. व्रत की पूर्णिमा 24 मार्च और स्नान दान पूर्णिमा में 25 मार्च को होगा. होलिका दहन का शुभ मुहूर्त सर्वार्थसिद्धि योग में रात 11:13 से 12:24 के बीच होगा और होलिका पूजन 24 मार्च को दोपहर 2 बजकर 20 मिनट के बाद होगा. होलिका दहन के समय में क्षेत्र के अनुसार हर साल बड़ा अंतर रहता है इसलिए अपने क्षेत्र में जब होलिका दहन हो उस समय पूजन इत्यादि करें.

होलिका दहन के दिन क्या करें ?

होलिका की पूजा में होलिका को फूल, माला, अक्षत, चंदन, साबुत हल्दी, गुलाल, पांच तरह के अनाज, गेहूं की बालियां आदि अर्पित किया जाता है. इन भुने बालियों को घर लाया जाता है. यह वैदिक परम्परा से ही आया. वैदिक काल में इसे नवात्रैष्टि यज्ञ कहा जाता था. उस समय खेत के अधपके अन्न को यज्ञ में अग्नि देव को अर्पित कर प्रसाद लेने का विधान था. अन्न को होला कहते हैं, इसी से इसका नाम होलिकोत्सव भी पड़ा. होलिका की विधिवत पूजा करके कच्चा सूत लपेटते हुए होलिका के चारों ओर परिक्रमा की जाती है.
होलिका का मंत्र ‘असृक्पाभयसंत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिषै:। अतस्तवां पूजायिष्यामि भूते भूतिप्रदा भव।।’ का पाठ कर तीन परिक्रमा करना चाहिए. कहीं कहीं होलिका दहन खत्म होने के बाद बुझी राख माथे को माथे पर और शरीर मलने की परम्परा भी है. अनेक क्षेत्रों में होलिकादहन में महिलाओ का सम्मिलित होना वर्जित होता है क्योंकि यह दहन कर्म है. होलिकादहन के अवसर पर जगह जगह होली के गीतों का गायन किया जाता है. चांदनी रात में यह एक अद्भुत आनंद का विषय होता है. होलिकादहन की सुबह से होली का प्रारम्भ हो जाता है.