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मध्य प्रदेश की राजधानी से 35 किमी दूर स्थित ग्राम तरावली में हरसिद्धि का अति प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर में मां जगदंबा हरसिद्धि के रूप में विराजमान होकर हजारों साल से पूजित हैं. यह देवी राजा विक्रमादित्य द्वारा आराधित है. कथा के अनुसार विक्रमादित्य ने देवी को 12 बार अपने सिर की बलि दी थी. मन्दिर के कोने में चढ़ा हुआ सिंदूर सिर रखा हुआ है, उसे ही विक्रमादित्य का सिर कहा जाता है. उन्होंने यहाँ पहली बार उल्टी परिक्रमा की थी. कहा जाता है कि देवी की उपासना से उन्हें अखण्ड साम्राज्य प्राप्त हुआ था और उन्होंने 135 साल राज किया था. तब यहाँ सीधे नहीं उल्टे परिक्रमा लगाने से माता प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों की कामना पूरी करती हैं. तरावली स्थित मां के हरसिद्धि धाम में श्रद्धालु कामना की पूर्ति के लिए उल्टी परिक्रमा लगाकर माता के दरबार में अर्जी लगाते हैं. नवरात्र के दौरान यहां बहुत भीड़ लग रही है. ऐसी मान्यता है कि देवी के चरण की पूजा वाराणसी में सिर की पूजा उज्जैन में और धड़ की पूजा भोपाल में होती है.

हरसिद्धि सन्तान प्रदान करती हैं –
बहुत से भक्त संतान की कामना को लेकर भी माता के दरबार में पहुंचते हैं. प्राचीन काल से यह विश्वास है कि देवी निःसंतानों को सन्तान आवश्य प्रदान करती हैं. यहां आने पर महिलाएं मंदिर के पीछे स्थित नदी में स्नान करती हैं और इसके बाद माता की आराधना करती हैं और संतान की कामना करती हैं.