कलियुग में हनुमान जी सिद्धि प्रदान करने वाले देवता हैं. रामायण सम्प्रदाय में हनुमान जी गुरु और रुद्रावतार मान्य हैं. हनुमान जी को नौ आध्यात्निक निधियों और नौ अणिमादि सिद्धियों का आशीर्वाद शक्ति स्वरूपिणी सीता जी से प्राप्त है. हनुमान जी का तंत्र बहुत विशाल है और उसका में कलियुग बहुत प्रयोग होता है. भूत, प्रेत, पिसाच और दुरात्माओं से मुक्ति के लिए तो हनुमान ही सबसे ज्यादा पूजे जाते हैं. उत्तर भारत में ऐसा कोई दूसरा देवता नहीं है. यहाँ दिया गया मन्त्र अत्यंत प्रभावशाली और सिद्ध है. इसका प्रयोग मंगलवार को पंचमुखी हनुमान के समक्ष करना चाहिए.
विनियोगः – अस्य श्रीहनुमत्पञ्चकूट मन्त्रस्य रामचन्द्रऋषिः गायत्रीछन्दः कपीश्वरो देवता आत्मनोऽभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ॥
षडङ्गन्यासः – ह्स्फ्रें हनुमते हृदयाये नमः ॥ ख्फ्रें रामदूताय शिरसे स्वाहा ॥ ह्स्रौं लक्षमणप्राणदात्रे शिखायै वषट् ॥ ह्स्ख्फ्रें अञ्जनासुताय कवचाय हुं ॥ ह्सौं सीताशोकविनाशाय नेत्रत्रयाय वौषट् ॥ ह्स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं लङ्काप्रासादभञ्जनाय अस्त्राय फट् ॥
ध्यान- पंचमुखी हनुमान का ध्यान करें.
एकादशाक्षर रुद्रार्णोऽभीष्ट सिद्धिदायक मन्त्रः – ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं ॥
श्रीहनुमन्माला मन्त्रः –
ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं हौं ह्स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं ॐ नमो हनुमते प्रकटपराक्रम आक्रान्तदिङ्मण्डलयशोवितान धवलीकृतजगत्त्रितय वज्रदेह ज्वलदग्नि सूर्यकोटिसमप्रभनूरुह रुद्रावतार लङ्कापुरिदहनोदधिलङ्घन दशग्रीवशिरःकृतान्तक सीताश्वासन वायुसुत अञ्जनागर्भसम्भूत श्रीरामलक्ष्मणानन्दकर कपिसैन्यप्राकार सुग्रीवसख्यकारण बालिनिबर्हकारण द्रोणपर्वतोत्पाटन अशोकवनविदारण अक्षकुमारच्छेदन वनरक्षाकरसमूहविभञ्जन ब्रह्मास्त्रब्रह्मशक्तिग्रसन लक्ष्मणशक्तिभेदनिवारण विशल्यौषधिसमानयन बालोदितभानुमण्डलग्रसन मेघनादहोमविध्वंसन इन्द्रजिद्वधकारण सीतारक्षक राक्षसीसङ्घविदारण कुम्भकरणादिवधपरायण श्रीरामभक्तितत्पर समुद्रव्योमद्रुमल्लङ्घन महासामर्थ्य महातेजःपुञ्जविराजमान स्वामिवचनसम्पादित अर्जुनसंयुगसहाय कुमारब्रह्मचारिन् गम्भीरशब्दोदय दक्षिणाशामार्त्तण्ड मेरुपर्वतपीठिकार्चन सकलमन्त्रागमाचार्य मम सर्वग्रहविनाशन सर्वज्वरोच्चाटन सर्वविषविनाशन सर्वापत्तिनिवारण सर्वदुष्टनिबर्हण सर्वव्याघ्रादिभयनिवारण सर्वशत्रुच्छेदन मम परस्य च त्रिभुवन पुंस्त्रीनपुंसात्मकसर्वजीवजातं वशय वशय ममाज्ञाकारकं सम्पादय सम्पादय नानानामधेयान् सर्वान् राज्ञः सपरिवारान् मम सेवकान् कुरु कुरु सर्वशास्त्रास्त्रविषाणि विध्वंसय विध्वंसय ह्रां ह्रीं ह्रूं हां हां हां एहि एहि ह्सौं ह्स्ख्फ्रें ह्स्रौं ख्फ्रें ह्स्फ्रें सर्वशत्रून् हन हन परदलानि परसैन्यानि क्षोभय क्षोभय मम सर्वकार्यजातं साधय साधय सर्वदुष्टदुर्जनमुखानि कीलय कीलय घे घे घे हा हा हा हुं हुं हुं फट् फट् फट् स्वाहा ॥

