लोक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था. महिलाएं इस व्रत को अपनी संतान की लंबी उम्र और समृद्धि की कामना के लिए करती हैं. बलराम को भगवान विष्णु के अवतार कृष्ण के भ्राता रूप में जाना जाता है. बलराम की जयंती को हल षष्ठी या ललही छठ के रूप में भी मनाया जाता है. बलराम भगवान कृष्ण के बड़े भाई थे. भगवान बलराम को आदिशेष के अवतार के रूप में भी पूजा जाता है. शेषनाग को आदिश के नाम से भी जाना जाता है. बलराम को बलदेव, बलभद्र और हलुध के नाम से भी जाना जाता है.
इस पर्व को उत्तर भारत में हरछठ व्रत कथा और ललही छठ के रूप में भी जाना जाता है. क्षेत्रीय स्तर पर कई कहानियां सुनाई जाती हैं, लेकिन यह कहानी विशेष रूप से लोकप्रिय है. एक ग्वालिन थी जो दूध और दही बेचकर अपना जीवन यापन करती थी. एक बार वह गर्भवती थी और दूध बेचने जा रही थी कि रास्ते में उसे प्रसव पीड़ा होने लगी. इस पर वह एक पेड़ के नीचे बैठ गई और वहां एक पुत्र को जन्म दिया. ग्वालिन को दूध खराब होने की चिंता थी, इसलिए उसने अपने बेटे को एक पेड़ के नीचे सुला दिया और पास के एक गाँव में दूध बेचने चली गई. उस दिन हर छठ व्रत था और सभी को भैंस का दूध चाहिए था, लेकिन ग्वालिन ने गाय के दूध को भैंस का दूध बताकर सभी को दूध बेच दिया. इससे छठ माता नाराज हो गईं और उन्होंने अपने बेटे की जान ले ली. जब ग्वालिन वापस आई, तो वह रोने लगी और उसे अपनी गलती का एहसास हुआ. इसके बाद उन्होंने सबके सामने अपना गुनाह कबूल करते हुए पैर पकड़कर माफी मांगी. इसके बाद हर छठ माता ने प्रसन्न होकर अपने पुत्र को जीवित कर दिया. इसी वजह से इस दिन पुत्र की लंबी उम्र के लिए हर छठ व्रत और पूजा की जाती है.
हलछठ पूजा की विधि
इस शुभ दिन दीवार पर गाय के गोबर से हरछठ का चित्र भी बनाया जाता है. इसमें गणेश-लक्ष्मी, शिव-पार्वती, सूर्य-चंद्रमा, गंगा-जमुना आदि के चित्र बनाए जाते हैं. इसके बाद हरछठ के पास कमल के फूल और हल्दी से रंगा हुआ कपड़ा रखते हैं. इस पूजा में सात प्रकार के भुने हुए अनाज का भोग लगाया जाता है. इसमें भुना हुआ गेहूं, चना, मटर, मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर आदि शामिल होते हैं. इसके बाद कथा सुनते हुए व्रत को पूण किया जाता है.

