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हिन्दू धर्म में माँ दुर्गा की साधना के लिए नवरात्रि पर्व का विशेष महत्व है. नवरात्रि शक्ति साधना का पर्व है. इस दौरान साधक विभिन्न साधनो द्वारा माँ भगवती की विशेष पूजा सम्पादित करते हैं. गुप्त नवरात्रि के ही समय में कुछ देवी भक्त तंत्र साधना करते हैं, इन साधनाओ की गुप्त प्रकृति के कारण ही इसे गुप्त नवरात्रि के नाम से जाना जाता है. गुप्त नवरात्रि तंत्र साधना के लिए अति श्रेष्ठ समय होता है, इस समय में साधक अपनी एकनिष्ठ पूजा से माँ भगवती को प्रसन्न कर सकते हैं. देवी भागवत पुराण के अनुसार जिस तरह वर्ष में 4 बार नवरात्रि आती है और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के 9 रूपों की पूजा होती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्रि में 10 महाविद्याओं की साधना की जाती है. गुप्त नवरात्रि विशेष कर तंत्र मार्ग के साधकों के लिए विशेष महत्व रखती है.

इस नवरात्रि के दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और गुप्त साधना करते हैं. इन नौ दिनों में देवी की अनुकम्पा से दुर्लभ शक्तियों को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं. जो देवी भक्त तंत्र साधना को नहीं जानते वो भी इसमें कुछ विशेष छोटी साधनाओं को करके विशेष लाभ ले सकते हैं. इन नौ दिनों में सिर्फ रात्रि सूक्त द्वारा ही देवी की उपासना करने वाला देवी को प्रसन्न कर सकता है. किसी स्तोत्र के पाठ का भी अनुष्ठान लाभप्रद होता है. गुप्त नवरात्रि में भी प्रमुख नवरात्रि की तरह ही अष्टमी या नवमी के दिन कन्या-पूजन के साथ नवरात्रि व्रत का उद्यापन किया जाता है.

इस बार गुप्त नवरात्रि की शुरुआत शनिवार को धनिष्ठा नक्षत्र में शुरू हो रही है. यदपि की पंचक रहेगा लेकिन पर्व के कारण पंचक मान्य नहीं होगा. इस दिन वर्धमान योग रहेगा मतान्तर से सिद्धि योग भी रहेगा. गुप्त नवरात्रि आषाढ़ और माघ मास के शुक्ल पक्ष में मनाई जाती हैं. गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला की उपासना प्रशस्त है.

गुप्त नवरात्र की एक पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है कि ऋषि श्रंगी अपने आश्रम में भक्तों को प्रवचन दे रहे थे. उस समय भीड़ में से एक स्त्री हाथ जोड़कर ऋषि से बोली कि गुरुवर मेरे पति दुर्व्यसनों से घिरे हैं जिसके कारण मैं किसी भी प्रकार के धार्मिक कार्य व्रत उपवास अनुष्ठान आदि नहीं कर पाती हूँ. मैं मां दुर्गा की शरण लेना चाहती हूं लेकिन मेरे पति के पापाचारों से मां की कृपा नहीं हो रही है, मेरा मार्गदर्शन करें. तब ऋषि बोले वासंतिक और शारदीय नवरात्र में तो हर कोई पूजा करता है सभी इससे परिचित हैं. लेकिन इनके अलावा वर्ष में दो बार गुप्त नवरात्रि भी आती है, इनमें 9 देवियों की बजाय 10 महाविद्याओं की उपासना की जाती है. यदि तुम विधिवत इस नवरात्री में देवी का पूजन करो तो मां दुर्गा की कृपा से तुम्हारे कष्टों की निवृत्ति होगी और तुम्हारा जीवन खुशियों से भर जाएगा. उस स्त्री ने गुप्त नवरात्र में ऋषि के बताये अनुसार ही मां दुर्गा की व्रत पूर्वक कठोर साधना को सम्पन्न किया. इस स्त्री की श्रद्धा व भक्ति से मां प्रसन्न हुई और कुमार्ग पर चलने वाला उसका पति सुमार्ग की ओर अग्रसर हुआ उसका घर खुशियों से संपन्न हो गया.

मुहूर्त-
हिन्दू पंचांग के अनुसार, साल 2024 में माघ गुप्त नवरात्रि की शुरुआत 10 फरवरी, शनिवार के दिन से हो रही है. इसका समापन 18 फरवरी, रविवार के दिन होगा.
माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 10 फरवरी 2024 को सुबह 04 बजकर 28 मिनट पर शुरू हो रही है, जो 11 फरवरी रात्रि 12 बजकर 47 मिनट पर समाप्त होगी.
माघ गुप्त नवरात्र के घट स्थापना का मुहूर्त –

घट स्थापना का मुहूर्त – 10 फरवरी, सुबह 08 बजकर 45 मिनट से सुबह 10 बजकर 10 मिनट तक रहेगा. जो लोग इसमें घट स्थापित नहीं कर सकते उनके लिए अभिजित मुहूर्त का समय रहेगा.
अभिजित मुहूर्त 10 फरवरी, दोपहर 12 बजकर 13 मिनट से 12 बजकर 58 मिनट तक रहेगा.
देवी की उपासना में सदैव द्विस्वभाव लग्न को वरीयता देनी चाहिए ऐसा श्रुतियों में कहा गया है.

10 फरवरी (शनिवार) ,2024 :  घट स्थापन एवं माँ शैलपुत्री पूजा

11 फरवरी (रविवार) ,2024 :  माँ ब्रह्मचारिणी पूजा

12 फरवरी (सोमवार) ,2024 : माँ चंद्रघंटा पूजा

13 फरवरी (मंगलवार) ,2024:  माँ कुष्मांडा पूजा 

14 फरवरी (बुधवार) ,2024 :  माँ स्कंदमाता पूजा 

15 फरवरी (बृहस्पतिवार) ,2024 : माँ कात्यायनी पूजा

16 फरवरी (शुक्रवार) ,2024:  माँ कालरात्रि पूजा 

17 फरवरी (शनिवार) ,2024 : माँ महागौरी पूजा, दुर्गा अष्टमी 

18 फरवरी (रविवार) ,2024: माँ सिद्धिदात्री,  नवरात्री पारण

उपासना विधि

उपासना की विधि दोनों तरह की तांत्रिक और वैदिक नियमों के अनुरूप अपना सकते हैं. स्नानादि से निवृत्त होकर आसन बिछाकर पूर्व को मुख करके बैठें. देवी की कोई प्रतिमा या चित्र किसी स्थिर स्थान पर स्वच्छ आसन पर कामनाओं के अनुसार दिशाओं में प्रतिष्ठित करना चाहिए. पूर्व दिशा देव दिशा मान्य है. यह इंद्र की दिशा है इसलिए सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली दिशा कही गई है. उस प्रतिमा के सम्मुख ही पवित्र आसन पर बैठें. संकल्प पूर्व कलश स्थापन आदि कार्य करें. वैदिक या तांत्रिक सन्ध्यावन्दन करें. धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य, पुष्प, फल, चन्दन, दूर्वा, सुपारी आदि पूजा की जो मांगलिक वस्तुएं उपलब्ध हों उनसे देवी का पंचोपचार पूजन करें. इस तरह आत्म शुद्धि और देव पूजन के बाद जप आरंभ हो जाता है. जप के साथ-साथ देवता के ध्यान द्वारा एकत्व स्थापित करना चाहिए.

जो महिलाएं मासिक धर्म में हैं उन्हें नहा धो कर करमाला से 108 मन्त्र का जप कर लेना चाहिए. मां दुर्गा का बीज मन्त्र या इन मन्त्रों  का मानसिक जप कर लें .

गुप्त नवरात्रि में सभी यह छोटा तांत्रिक प्रयोग कर सकते हैं. इसके लिए कुछ भी जरूरत नहीं है. नवरात्रि की तरह कलश स्थापित कर पूजन पूर्वक इस मन्त्र का प्रयोग कर सकते हैं.

दुर्गेस्मृता मन्त्र प्रयोग

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमsतीव शुभां ददासि।
दारिद्रय-दु:ख-भयहारिणी का त्वदन्या,
सर्वोपकार करणाय सदाऽर्द्रचित्ता:।।

विनियोग : ॐ अस्य दुर्गे स्मृता इति मंत्रस्य हिरण्यगर्भ ऋषि: उष्णिक छंद: श्री महामाया देवता शाकम्भरी शक्ति: दुर्गाबीजं श्रीं वायुस्तत्वं मम चतुर्विध पुरुषार्थ सिद्धये जपे विनियोग:
न्यास :
करन्यास –
१-ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो अंगुष्ठाभ्याम नम: 
 २-स्वस्थै: स्मृता मतिमsतीव शुभां ददासि। तर्जनिभ्याँ नम:
 ३-यदन्ति यच्च दूरके भयं विन्दति मामिह मध्यमाभ्याम नम: 
 ४- पवमान वितज्जहि अनामिकाभ्याम नम:
 ५-दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या कनिष्ठिकाभ्याम नम:
 ६-सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता करतलकर पृष्ठाभ्याम नम:

हृदयादि न्यास-

१-ॐ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो हृदयाय नम:
२-स्वस्थै: स्मृता मतिमsतीव शुभां ददासि। शिरसे स्वाहा
३-यदन्ति यच्च दूरके भयं विन्दति मामिह शिखायै वषट
 ४- पवमान वितज्जहि अनामिकयो: कवचाय हुम्
 ५-दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या नेत्रत्रयाय वौषट
 ६-सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता अस्त्राय फट

॥ध्यानम्॥
ॐ सिंहस्था शशिशेखरा मरकतप्रख्यैश्‍चतुर्भिर्भुजैः
शङ्खं चक्रधनुःशरांश्चर दधती नेत्रैस्त्रिभिः शोभिता।
आमुक्ताङ्गदहारकङ्कणरणत्काञ्चीरणन्नूपुरा
दुर्गा दुर्गतिहारिणी भवतु नो रत्‍‌नोल्लसत्कुण्डला॥

जो सिंह की पीठपर विरजमान हैं , जिनके मस्तक पर चन्द्रमा का मुकुट है , जो मस्तक मणि के समान कान्तिवाली अपनी चार भुजाओं में शंख , चक्र , धनुष और बाण धारण करती हैं , तीन नेत्रों से सुशोभित होती हैं , जिनके भिन्न – भिन्न अंग बाँधे हुए बाजूबंद हार , कंकण , खनखनाती हुई करधनी और रुनझुन करते हुए नूपुरों से विभूषित हैं तथा जिनके कानों में रत्नजटित कुण्डल झिलमिलाते रहते हैं , वे भगवती दुर्गा हमारी दुर्गति दूर करनेवाली हों ।


माला मन्त्र :

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे, ह्रीं श्रीं क्लीं कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥ ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं॥ ॐ ह्रीं श्रीं क्लींदुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:। स्वस्थै स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।। यदन्ति यच्च दूरके भयं विन्दति मामिह । पवमान वितज्जहि ॥द्रारिद्र दु:ख भयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकार करणाय सदार्द्रचित्ता॥ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं॥ ॐ ह्रीं श्रीं क्लींकां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे॥

दुर्गा की प्रीति के लिए इन सात श्लोकों का पाठ करें –

ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हिसा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति॥

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः।
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।।

दारिद्र्‌यदुःखभयहारिणि त्वदन्या।
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता॥

सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते॥

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते॥

रोगानशोषानपहंसि तुष्टा रूष्टा तु कामान्‌ सकलानभीष्टान्‌।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति॥

सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्यद्वैरिविनाशनम्‌॥

अथवा इस श्लोक का ही पाठ करें
केनोपमा भवतु तेऽस्य पराक्रमस्य रूपं च शत्रुभयकार्यतिहारि कुत्र ।
 चित्ते कृपा समरनिष्ठुरता च दृष्टा त्वय्येव देवि वरदे भुवनत्रयेऽपि ॥

जप संख्या : 9 दिन 18 हजार जप से सभी कार्य सिद्ध होते हैं
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