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केरल के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है गुरुवायूर का गुरुवायुरप्पन कृष्ण मन्दिर. यह केरल का प्रमुख तीर्थस्थल है और सभी मन्दिरों में विशेष मन्दिर है. इस अद्भुत मंदिर में बालगोपालन विराजमान हैं अर्थात भगवान कृष्ण यहां बालरूप में स्थित हैं. ऐसी मान्यता है कि इस बाल विग्रह की पूजा वासुदेव और देवकी ने की थी. इस कृष्ण मन्दिर में बड़े बड़े ब्राह्मण भक्त हुए हैं. भगवान गुरुवायुरप्पन के इस विश्व विख्यात मंदिर को दक्षिण की द्वारका भी कहा जाता है. यह मंदिर केरल के त्रिशूर जिले के गांव गुरुवायुर में स्थित है. गुरुवायुर मंदिर कलियुग के प्रारम्भ में स्थापित हुआ था इसलिए करीब 5 हजार साल पुराना माना जाता है.

मलयालम शब्द गुरुवायुर (गुरु+वायुर) अर्थात जिसकी गुरु और वायु ने स्थापना की. एक पौराणिक कथा के अनुसार कलियुग के प्रारंभिक काल में वायुदेव और देवगुरु बृहस्पति को कृष्णजी की एक काले पत्थरों की मूर्ति समुद्र में तैरती मिली थी. यह मूर्ति द्वापर युग की बताई जाती है. कहा जाता है कि द्वारका के समुद्र में समा जाने के बाद कृष्ण गुरुवायुर में स्थापित हुए.

नारद पुराण के अनुसार वायु देव और देव गुरु ने इस मन्दिर की स्थापना की थी इसलिए इस मन्दिर को गुरुवायुरप्पन कहा गया. मंदिर में भगवान गुरुवायुरप्पन बालरूप में विराजित हैं यानि यहां बाल गोपाल की पूजा की जाती है. बालगोपालन की मूर्तिं के चार हाथ हैं जिसमें एक हाथ में शंख, दूसरे हाथ में सुदर्शन चक्र, तीसरे हाथ में कमल पुष्प और चौथे हाथ में गदा है. गुरुवायुर मंदिर को भूलोक वैकुंठम भी कहा जाता है.

गुरुवायुर मंदिरका 17 वीं शताब्दी में पुननिर्माण किया गया. मन्दिर के इतिहास और मान्यता के मुताबिक देवगुरु बृहस्पति के आग्रह पर मंदिर का निर्माण खुद विश्वकर्मा ने किया था. जगन्नाथपुरी की तरह गुरुवायुर मंदिर में दूसरे धर्मों के लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित है. यहां हिंदुओं के अलावा और कोई नहीं जा सकता. पूर्व में दलित जातियों का प्रवेश भी वर्जित था लेकिन स्वतन्त्रता के बाद सरकार ने उन्हें प्रवेश करवाया. गुरुवायूर मन्दिर विवाह के लिए प्रसिद्ध है, यहाँ प्रतिदिन सैकड़ों जोड़ों का विवाह किया जाता है.

विख्यात शास्त्रीय नृत्य कला कृष्णनट्टम कली के लिए प्रसिद्ध है. यह नृत्य कला प्रसिद्ध नाट्य-नृत्य कथकली के प्रारंभिक विकास में सहायक रही थी. कृष्णनट्टम का गुरुयावूर में काफी प्रचलन है, मंदिर प्रशासन (गुरुयावूर देवास्वोम) इसके प्रमुख संस्थान कृष्णट्टम संस्थान का संचालन करता है. गुरुयावूर मंदिर नारायणीयम के लिए विख्यात है. इसके लेखक मेल्पथूर नारायण भट्टाथिरी थे जिन्होंने भागवत पुराण को सुंदर तरीके से पुन: लिखा.

गुरुवायूर दक्षिण भारतीय शास्त्रीय कर्नाटकीय संगीत का एक प्रमुख स्थल है. यहां के शुभ एकादशी का दिन सुविख्यात गायक भक्त चेम्बाई वैद्यनाथ भगावतार की स्मृति में मनाया जाता है. मंदिर का वार्षिक समारोह (उल्सवम) कुम्भ के मलयाली महीने (फरवरी-मार्च) में पड़ता है इसके दौरान यह शास्त्रीय नृत्य जैसे कथकली, कूडियट्टम, पंचवाद्यम, थायाम्बका और पंचारिमेलम आदि का आयोजन किया जाता है. इस मन्दिर के 60 से ज्यादा हाथी हैं.