
बारह ज्योतिर्लिंगों में अन्तिम माना जाता है घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग. यह मंदिर महाराष्ट्र में औरंगाबाद के नजदीक दौलताबाद से 11 किलोमीटर दूर एलोरा की गुफाओं के पास स्थित है. शिव पुराण के अनुसार, घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही भक्त पापों से मुक्त हो जाते हैं और सर्व सिद्धियों की प्राप्ति करते हैं. घृष्णेश्वर मंदिर की शयन आरती का महत्व काफी अधिक है. मंदिर में 101 शिवलिंग बनाकर पूजा की जाती है और यहां आने वाले भक्त 101 परिक्रमाएं भी करते हैं. इस 101 से सम्बन्धित है इस ज्योतिर्लिंग की कथा. मंदिर के पास ही एक प्राचीन सरोवर जिसका भक्त दर्शन करते हैं. यहां एक अद्भुत लक्ष्य विनायक नाम का प्राचीन गणेश मंदिर भी है. ये मंदिर 21 गणेश पीठों में से एक गिना जाता है.

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में इस क्षेत्र में एक ब्राह्मण सुधर्मा और उसकी पत्नी सुदेहा रहा करते थे. इनकी कोई संतान नहीं थी. इसलिए सुदेहा ने अपनी छोटी बहन घुश्मा का विवाह अपने पति सुधर्मा से करवा दिया.
सुदेहा की बहन घुश्मा महादेव की परम भक्त थी. वह हमेशा शिव पूजा में लगी रहती थी. उसके मन में किसी के लिए कोई ईर्ष्या, लालच, क्रोध जैसी बुराइयां नहीं थीं. विवाह के बाद घुश्मा और सुदेहा के यहां पुत्र संतान का जन्म हुआ.
अपनी बहन घुश्मा के यहां पुत्र होने से सुदेहा को ईर्ष्या होने लगी. सुदेहा के मन में जलन की भावना इतनी बढ़ गई कि एक दिन उसने अपनी ही बहन के बेटे की हत्या कर दी. हत्या के बाद बालक का शव एक कुंड में डाल दिया.
जब ये बात घुश्मा को मालूम हुई तो वह न ही भयभीत हुई और ना ही निराश ही हुई. उसने शांति से शिव जी की आराधना करनी शुरू कर दी. वह प्रतिदिन 101 पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजन करती थी और सरोवर में विसर्जित कर देती थी. घुश्मा की भक्ति से शिव प्रसन्न हो गए और उन्होंने घुश्मा को साक्षात् दर्शन दिया.

अन्तर्यामी भगवान घुश्मा की मनोकामना जानते थे अत: उन्होंने प्रसन्न हो उसके पुत्र को जीवन दान दे दिया. घुश्मा का पुत्र लौट आया. घुश्मा ने शिव जी से प्रार्थना की थी कि अब से वे यहीं विराजमान रहें, ताकि यहां भक्त दर्शन कर सकें और उनकी समस्त कामनाएं पूरी हों.
भक्त की इच्छा पूरी करने के लिए महादेव भगवान शिव यहां ज्योति रूप में विराजित हो गए. घुश्मा के नाम से ही इस ज्योतिर्लिंग का नाम घुश्मेश्वर पड़ा है.