गोवत्स द्वादशी एक महत्वपूर्ण पर्हैव. यह त्योहार कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनाया जाता है, जो धनतेरस से एक दिन पहले होता है. इस दिन गाय और उनके बछड़ों की पूजा की जाती है. वैष्णव पुराण के अनुसार गोवत्स द्वादशी को सबसे पहले राजा उत्तानपाद ( स्वायंभुव मनु के पुत्र ) और उनकी पत्नी सुनीति ने उपवास के साथ मनाया था. उनकी प्रार्थना और उपवास के कारण, उन्हें ध्रुव के रूप में पुत्र प्राप्त हुआ था. वैष्णव पुराणों में गोपूजा सभी वैष्णव अवतार करते दिखाए गये हैं. गोवत्स द्वादशी को शैव धर्म में नंदिनी व्रत के रूप में मनाया जाता है. नंदिनी और नंदी दोनों को शैव परंपरा में पवित्र माना जाता है. गोमाता में समस्त कष्टों को हरने की असीम शक्ति है क्योंकि गोमाता के दिव्य शरीर में ३३ करोड़ देवताओं का वास है. गौ को अपने प्राणों के समान समझे, उसके शरीर को अपने ही शरीर के तुल्य माने, जो गौ के शरीर में सफ़ेद और रंग-बिरंगी रचना करके, काजल, पुष्प, और तेल के द्वारा उनकी पूजा करते है, वह अक्षय स्वर्ग का सुख भोगते हैं. जो प्रतिदिन दूसरे की गाय को मुठ्ठीभर घास देता है, उसके समस्त पापों का नाश हो जाता है जैसे ब्राहमण का महत्व है, वैसे ही गौ का महत्व है, दोनों की पूजा का फल समानहै. भगवान के मुख से अग्नि, ब्राह्मण, देवता और गौ – ये चारो उत्पन्न हुए इसलिए ये चारो ही इस जगत के जन्मदाता हैं.
इस दिन गायों और बछड़ों को नहलाया जाता है, उन्हें सजाया जाता है और फूलों की माला पहनाई जाती है. उनके माथे पर सिंदूर/हल्दी का पाउडर लगाया जाता है. उनकी पूजा और आरती की जाती है. इस दिन गायों को गेहूँ के उत्पाद, चना और मूंग की दाल खिलाई जाती है. नंदिनी और सुरभि गायों में श्रेष्ठ मानी गई और इन्हीं के सभी गाय वंश हैं.
“ घृतक्षीरप्रदा गावो घृतयोन्यो घृतोद्भवा:.
घृतनघो घ्रातावर्त्तास्ता में सन्तु सदा गृहे ” ..
जो गौ की एक बार भी प्रदक्षिणा करके उसे प्रणाम करता है वह सभी पापों से मुक्त होकर अक्षय स्वर्ग का सुख भोगता है.
जन्म कुंडली में अनेक नक्षत्र दोषों में गोदान एक बड़ा उपाय बताया गया है. गुरु और पितृदोष में गोदान और गो सेवा करने से कष्टों की निवृत्ति होती है.
गोवत्स द्वादशी मुहूर्त-
पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि 28 सितंबर को सुबह 7 बजकर 52 मिनट से आरंभ हो रही है और इसका समापन अगले दिन 29 अक्तूबर को दिन 10 बजकर 31 पर होगा. गोवत्स द्वादशी 28 अक्तूबर को मनाई जायेगी. गोवत्स द्वादशी के दिन पूजा गोधूलि बेला में यानी शाम के समय सूर्यास्त होने से पहले ही कर लेनी चाहिए.

