
गोरक्ष (गोरख ) यानि जो गो (गाय) का रखवाला हो अर्थात गाय को रखता हो और उसकी रक्षा करता हो. गोरखनाथ संप्रदाय में “गो” का अर्थ और भी है, जो वैदिक धर्म से ग्रहण किया गया है. “गो” का अर्थ- इन्द्रिय , गमन, सुरभि , प्राण , सूर्य किरण, वाणी , दिशा , नेत्र , जल , बैल, गाय इत्यादि भी हैं. गोरखनाथ बाबा एक क्वांरी कन्या से पैदा हुए थे, कन्या ने लोक लाज से भय से बच्चे को गोबर के घूरे पर रख दिया था. गोबर के घूरे पर मिले इसलिए इनका नाम गोरख पड़ गया.
गोरखनाथ द्वारा स्थापित पन्थ को नाथपंथ कहते हैं. नाथपन्थ एक योग-तन्त्र से सम्बन्धित सम्प्रदाय है. इस सम्प्रदाय के योगियों को कनफटा योगी भी कहते हैं क्योंकि ये कान छेदवाते हैं और उसमे बाला पहनते हैं. गोरखनाथ बड़े गोरक्षकों में एक माने जाते हैं.
नाथपन्थ में गौ शिष्य को भी कहते हैं. जब नाथपन्थ में कोई नया चेला लिया जाता है तो उसका क्रम कुछ इस तरह होता है-
गुरु के दरबार में प्रवेश करते समय-
चेला ठेलुआ पूछता है “हुकुम धनी का “
अंदर से गुरु पूछता है “कौन ?”
चेला उत्तर देता है ” गुरु प्यासी गौ आती है !” यहाँ गौ चेला है जो गुरु के पास आकर और भी प्यासा होना चाहता है.
गुरु जी पुनः पूछते हैं “यहां का जल खरा है ?”
बाहर से गौ बोलती है “पी लुंगी ” अर्थात मुझे नाथ परम्परा में चेला बनना मान्य है !
गुरु जी फिर पूछते हैं “संतों की सेवा करनी पड़ेगी !” चेला अर्थात गौ जबाब देती है “करूंगी “.
गुरु जी फिर पूछते हैं ” पाप पुण्य से न्यारा रहना पड़ेगा “
गौ कहती है “रहूंगी “
फिर ठेलुआ बोलता है ” हुकुम “
तो गुरु कहते हैं “हुकम धनि का “
ठलुआ बोलता है “गुरु जी आज्ञा “
गुरु जी आज्ञा देते है “ईश्वराज्ञा “
फिर शिष्य के आँख में पट्टी बांध दी जाती है, और सम्प्रदाय के देवता के पास ले जाते हैं.
देवता के सामने गुरु पूछता है “गौ किसकी सेवा करेगी? “
शिष्य जिसकी तरफ इशारा करता है वह उसकी पट्टी खोलता है दीक्षा प्रदान करता है.
नोट: हुकुम का अर्थ मालिक और आदेश दोनों होता है. अभी आधुनिक समय में इनकी भी बहुत सारी चीजें बदल गई है. चेला बनाने की विधि भी थोड़ी सोफिस्टीकेट हो गई है. यह पंथ पहले पढ़े लिखों का पन्थ नहीं था. इस पन्थ में जाहिल-गंवार ये ही शामिल होते थे और धोकरी , सरंगी लेकर गाँव गाँव घूमते थे.