
महाभारत भीष्म पर्व में जिस प्रदेश को गोमन्त कहा गया है अर्थात जो गायों का क्षेत्र है, उसे ही आज गोवा कहा जाता है. इस राज्य का इस तरह का कोई ऐतिहासिक विवरण महाभारत के इतर कहीं और उपलब्ध नहीं है. कुछ पुराने संस्कृत ग्रन्थों में गोवा को गोपकपुरी और गोपकपट्टन भी कहा गया है. यदि पुराणों को इतिहास का एक हिस्सा माना जाय तो इसमें भी स्कद पुराण में गोवा का जिक्र है, जिसे भगवान परशुराम नें अपने फरसे से निर्मित किया था. पुराण के अनुसार भगवान परशुराम नें गोवा में दस ऋषियों को यज्ञ में नियुक्त किया था.
इससे जुड़ा दूसरा पौराणिक इतिहास हरिवंश पुराण के अनुसार यह है कि भगवान श्री कृष्ण नें गोवा के गोमांचल पर्वत पर ज़रासंध का वध किया था. इससे जुडी अनेक पौराणिक गाथाये हैं. एक अन्य गाथा के अनुसार सप्तऋषियों ने यहीं पर घोर तप कर के शिव से आशीर्वाद प्राप्त कर सप्तकोटेश्वर उपमा धारण किया था. हिन्दू धर्म के पौराणिक परम्परा का ग्रन्थ सुतसंहिता के अनुसार गोवापुरी अर्थात गोवा स्पर्श मात्र से पवित्र करने वाला प्रदेश है. यह पूर्व जन्मों के पाप को वैसे ही भस्म कर सकने में सक्षम है जैसे सूर्योदय अन्धकार को समाप्त कर देता है. स्कन्द पुराण के सह्याद्रि खंड में गोवापुरी का इस तरह जिक्र मिलता है-
गोकर्णादुत्तरे भागे सप्तयोजनविस्तृतं
तत्र गोवापुरी नाम नगरी पापनाशिनी
यह क्षेत्र सात योजन में फैला हुआ है और इसकी उपस्थिति गोकर्ण क्षेत्र के उत्तर में बतलाई गई है जो एक सटीक बैठता है !
गोवा को परशुराम क्षेत्र कहा जाता है. गौरतलब है कि दक्षिणाम्नाय में परशुराम एक बड़े गुरु के रूप में पूजित हैं. ये श्रीविद्या परम्परा के परम आचार्य माने गये हैं. भगवान परशुराम द्वारा उपदेशित सूत्र परशुराम कल्प में संरक्षित हैं. ये संहिता ग्रन्थों में रावण के गुरु बताये गये हैं.
पुराण और गोवा की कथाओं के अनुसार विष्णु के छठें अवतार श्री परशुराम नें एक बार एक उन क्षेत्रों का त्याग कर दिया जिनको उन्होंने कभी विजित किया था. तदन्तर एक दिन उन्होंने अपने वैष्णव धनुष से सात तीर सह्यद्रि पर्वत शृंखलाओं से समुद्र की तरफ छोड़े जिसके कारण समुद्र से एक भू-खण्ड ऊपर आ गया, जिसे समुद्र देवता ने उन्हें समर्पित किया. इसका आकर सूप जैसा था इसलिये प्रारम्भ में इसका नाम सूपरक पड़ा जो कालांतर में गोवा हुआ. बाण द्वारा इसकी रचना होने से इसको वाणावली, वाणस्थली भी कहते हैं. पौराणिक आख्यान में परशुराम द्वारा इसकी रचना होने से क्षेत्र का नाम परशुराम क्षेत्र पड़ा. सह्याद्रि खंड यह भी बतलाता है कि परशुराम महाराज ने दक्षिण से ब्राह्मणों को बुला कर गोवा में बसाया था. गोवा में उच्च कोटि के ब्राह्मण पाये जाते हैं.
परशुराम का इतिहास के साक्ष्य भी भूगर्भ वैज्ञानिको को सटीक लगता है. उंनका मानना है की गोवा के भूभाग का जल से उत्थान कमोवेश ईशा पूर्व 12,000 के आसपास हुआ होगा जिसके साक्ष्य जीवाश्म अवशेष में प्राप्त हुए हैं. गोवा के सुरल गाँव में मिले जीवाश्म अवशेष के साक्ष्य का समय सह्याद्रि पर्वत से मिले फॉसिल के साक्ष्य का समय से मिलता जुलता है. इस दृष्टि से त्रेता के भगवान राम के पूर्व अवतरित श्री परशुराम द्वारा प्रकट किये गया इस द्वीप का काल कमोवेश ठीक ही बैठता है. आधुनिक इतिहास के अनुसार गोआ में आर्य 2400 ईसा पूर्व आये जो कि परशुराम का पौराणिक इतिहास से उलट है. भारत का इतिहास महाभारत, संहिताओं और पुराणों में बिखरा हुआ है. इन ग्रन्थों में इतिहास तथ्यात्मक नहीं है, यही इसकी सबसे बड़ी कमी है.