देवी दुर्गा सभी देवों का समष्टिगत रूप है जैसा की श्रुति में वे स्वयं कहती हैं “सैषा अष्ट वसव:, सैषैकादश रुद्राः । सैषा द्वादशादित्याः” इसलिए दुर्गादेवी का प्राकट्य त्रिदेवों से हुआ. समष्टिगत रूप से वे देवताओं का पुंजीभूत रूप हैं इसलिए देवताओं के तेज से उनके सभी अंगों का भी निर्माण हुआ. देवताओं ने ही उन्हें अपने अस्त्र भी दिए जिसे उन्होंने महिषासुरादि राक्षसों का बध करने के लिए अपने आठों हाथों में धारण किया. सभी अस्त्र चिन्मय मन्त्र स्वरूप हैं. शप्तशती के अनुसार माता दुर्गा को किस देवता से कौन सा अस्त्र प्राप्त हुआ? यहाँ दिया जाता है, ध्यान में यह स्मरण रखना चाहिए.
भगवान शंकर: महादेव ने माता को अपना त्रिशूल भेंट दिया. महिषासुर पर अंतिम प्रहार माता ने इसी त्रिशूल से किया था. इसके अतिरिक्त उन्होंने एक महानाग भी माता को प्रदान किया था.
भगवान विष्णु: नारायण रूप विष्णु जी ने अपना सुदर्शन चक्र माता को भेंट किया था.
ब्रह्मा जी: परमपिता ने माता को अपना कमंडल भेंट किया.
इंद्रदेव: देवराज ने माता को अपना वज्र प्रदान किया. इसके अतिरिक्त उन्होंने ऐरावत के गले से उतार कर एक दिव्य घंटा भी माता को भेंट किया. बड़े साधकों को देवी के आगमन पर घंटा निनाद सुनाई पड़ता है.
सूर्य देव: सूर्यनारायण ने माता को अपना तेज प्रदान किया. “सूर्यकोटि समप्रभ:”
वरुण देव: जल के अधिपति वरुण देव ने अपना शंख माता को दिया जिससे भीषण शंखनाद से शत्रु का बल आधा हो जाता था.
अग्निदेव: अग्निदेव ने माता को शक्ति नामक भाला प्रदान किया.
पवनदेव: इन्होने माता को अपना अमोघ धनुष और अक्षय तूणीर में भरे हुए बाण दिए.
विश्वकर्मा: देवशिल्पी विश्वकर्मा ने माता को एक अमोघ परशु प्रदान किया.
यमराज: धर्मराज ने माता को अपना काल दंड प्रदान किया जो मृत्यु को भी वश में रखता था. देवी पूजा में काल की भी पूजा होती है.
कुबेर: यक्षराज कुबेर ने मधुपात्र माता को दिया. चण्डिका ने महिषासुर बध के समय इस मधुपात्र से मधुपान किया था.
प्रजापति दक्ष: ब्रह्मा पुत्र दक्ष ने माता को स्फटिक माला दी.
गणेश: श्रीगणेश ने माता दुर्गा को खड्ग प्रदान किया.
समुद्र: समुद्र तो रत्नों और शक्तियों का भंडार ही माना जाता है. समुद्र देव ने माता को उज्जवल हार, दो दिव्य वस्त्र, दिव्य चूड़ामणि, दो कुंडल, कड़े, अर्धचंद्र, सुंदर हंसली और अंगुलियों में पहनने के लिए रत्नों की अंगूठियां भेंट कीं.
हिमालय: पर्वतराज ने मां दुर्गा को सवारी करने के लिए शक्तिशाली सिंह भेंट किया.
सरोवर: सरोवरों ने उन्हें कभी न मुरझाने वाली कमल की माला अर्पित की.
दुर्गा शप्तशती में अष्टभुजा के इतर अष्टादश भुजा वाली महालक्ष्मी रूप माता दुर्गा के अस्त्र-शस्त्रों के बारे में भी वर्णन हैं. नीचे दिया गया शप्तशती ध्यान महालक्ष्मी रूप दुर्गा का ध्यान है-

ॐ अक्षस्त्रक्परशुं गदेशुकुलिशं पद्मं धनुषकुण्डिकां
दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम्।
शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तै: प्रसन्नाननां
सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थितां।।
मैं कमल के आसन पर बैठी हुई प्रसन्न मुख वाली महिषासुरमर्दिनी भगवती महा लक्ष्मी का ध्यान करता हूं, जो अपने हाथों में (१) अक्षमाला (२) फरसा (३) गदा (४) बाण (५) वज्र (६) पद्म (७) धनुष (८) कुण्डिका (९) दण्ड (१०) शक्ति (११) खड्ग (१२) ढाल (१३) शंख (१४) घंटा (१५) मधुपात्र (१६) शूल (१७) पाश एवं (१८) चक्र धारण करती है.

