गायत्री सत्वप्रधान हैं. इन्हें वेदमाता कहा गया है. इनकी उपासना करने से मनुष्य कलियुग के कुप्रभाव से बच सकता है. गायत्री एकमात्र विद्या हैं जिनकी उपासना पूर्ण सत्वगुणी मनुष्य ही कर सकता है. श्रीविद्या की तरह इनकी उपासना करने वाले को त्रिकाल संध्या करनी होती है. यदि कोई भी दृढ़ प्रतिज्ञा व्यक्ति गुरु द्वारा प्राप्त गायत्री की शरण लेता है तो उसे सब कुछ प्राप्त हो जाता है. गायत्री माता साधक के लिए कामधेनु के समान हैं. निम्नलिखित कथा इसका एक उदाहरण है –
व्यासजी ने जनमेजय से कहा-एक बार पंद्रह वर्षों तक वर्षा नहीं हुई इस अनावृष्टि के कारण भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा. असंख्य प्राणी भूख से तड़प कर मर गये. उनकी लाशें घरों में सड़ने लगी.
तब सज्जनों ने इकट्ठे होकर विचार किया कि गायत्री के परम उपासक तपोनिष्ठ गौतम ऋषि के पास चलना चाहिए, वे इस विपत्ति को दूर सकेंगे. वे तब सब मिलाकर गौतम ऋषि के पास गये और कष्ट सुनाया.
आगन्तुकों को सम्मानपूर्वक आश्वासन देकर गौतम ऋषि ने सर्व शक्तिमान गायत्री से उस संकट के निवारण के लिए प्रार्थना की.
जगन्माता गायत्री ने प्रसन्न होकर गौतम ऋषि को समस्त प्राणियों का पोषण कर सकने में समर्थ एक पूर्ण पात्र दिया और कहा-इससे तुम्हारी समस्त अभीष्ट कामनाएँ पूर्ण हो जाया करेंगी. यह कहकर वेदमाता अन्तर्ज्ञान हो गयी और उस पात्र की कृपा से अन्न के पर्वतों जैसे ढेर लगे गये.
ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्

