
वैष्णवों ने जिस प्रकार का प्रोपगेंडा किया है वैसा भारत के इतिहास में किसी ने नहीं किया है. उत्तर वैष्णव मूलभूत रूप से पांचरात्री और तांत्रिक वैष्णव हैं और वे राहु द्वारा शासित हैं इसलिए उनके प्रपंच भी आसुरी प्रकृति के प्रपंच है, जिसमे सत्य नहीं, एक छल है. भागवत पुराण इस तन्त्र का साक्षी है जिसमे रासलीला अध्याय तन्त्र साधना से सम्बन्धित है . राजा परीक्षित ने तंत्र से सम्बन्धित ही सवाल पूछा –

परीक्षित ने कहा कि रासलीला में जो शादीशुदा और क्वांरी आई महिलाएं थीं वे तो काम से पीड़ित थी, वे भक्त नहीं थीं और कृष्ण को भगवान भी नहीं मानती थीं. ऐसे में उनकी मुक्ति किस प्रकार हुई ?
इसका उत्तर शुक देव तंत्र सिद्धांत के अनुसार दिया और कहा कि जितने महान पापी कंस, रावण, हिरण्यकश्यप इत्यादि हुये वे अपनी नैसर्गिक काम, द्वेष, क्रोध आदि वासनाओं द्वारा ही मुक्त हो गये थे क्योकि द्वेष आदि करते हुए भी उनका मन भगवान में ही लगा हुआ था.
कामं क्रोधं भयं स्नेहमैक्यं सौहृदमेव च । नित्यं हरौ विदधतो यान्ति तन्मयतां हि ते ॥ भागवत-10-29- 15 ॥
ऐसे में उन यादवों कि महिलाओं की मुक्ति क्यों नहीं हो सकती ? काम भाव कमसे कम द्वेष आदि से तो अच्छा ही है. यदि सेक्स करते हुए भगवान में ही मन नियुक्त रहे तो मुक्ति हो जाती है.
यह वैष्णवों का सिद्धांत अवैदिक है. यह मूलभूत रूप से तन्त्र का दर्शन है. यह वेदांत का दर्शन नहीं है, वेदांत में ये वृत्तियाँ घोर और पाप उत्पन्न करने वाला मानी गई हैं और इसे आध्यात्म मार्ग में दुश्मन समझना चाहिए. भगवद्गीता यही कहती है -महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम्।।3.37।। भागवत इस प्रकार एक गुप्त सेक्स तन्त्र का ग्रन्थ है जिसमे छद्म भक्ति के द्वारा तंत्र का प्रवर्तन किया गया है. ऐसे ही गर्ग संहिता जैसे वैष्णवों के अनेक प्रपंच ग्रन्थ हैं. वैष्णवों के ज्यादातर संहिता ग्रन्थ प्रपंच ग्रन्थ ही हैं.
भगवती वैष्णवों ने प्रपंच के लिए ही अनेक संहिता लिखी और कुछ संहिताओं में यह भी लिखा है कि जो वेद लोक में प्रचलित है वह नकली है,असली वेद इनके पास है. इन धूर्त वैष्णवों ने ही भागवत मत के प्रचार के लिए फेक गर्ग संहिता फैलाई है. यदि कोई भी विद्वान् उसे पढ़े तो यह उसे एक घटिया पल्प उपन्यास ज्यादा नहीं लगेगा. यह संहिता कई तरह के प्रपंच के मद्देनजर लिखी गई. इसी संहिता में वर्णन है कि ब्रह्मा जी ने राधा की शादी गुप्त रूप में करा दी थी. भगवान अनैतिक कैसे हो सकते हैं? भगवान जो भी करते हैं वह मनुस्मृति के अनुसार ही करते हैं. परस्त्रीगमन भी करते हैं तो उसमे कोई नियम रहता है, कोई प्राचीन कर्म विपाक गुप्त रूप से छिपा रहता है. एक वेदांत के आचार्य की मेधा बहुत उन्नत होती है, वह फैंटेसी में नहीं जीती है और न ही परवर्ट ही होती है. गर्ग संहिता में जो कुछ लिखा हुआ है वह एक भगवती प्रपंच है और यह एक विकृत चित्त से उत्पन्न होता है.
महर्षि गर्ग ऋग्वेद की इस ऋचा 6:47 सूक्त के रचयिता है और द्रष्टा हैं. इसकी यह ऋचा देखें –
रू॒पंरू॑पं॒ प्रति॑रूपो बभूव॒ तद॑स्य रू॒पं प्र॑ति॒चक्ष॑णाय।
इन्द्रो॑ मा॒याभिः॑ पुरु॒रूप॑ ईयते यु॒क्ता ह्य॑स्य॒ हर॑यः श॒ता दश॑ ॥१८॥
इस ऋचा पर ही वैष्णव वेदांत का सम्पूर्ण अवतारवाद आधारित है और यह ऋचा वेदांत के केंद्र में स्थित है. ईश्वर की माया का सम्पूर्ण दर्शन भी इसी ऋचा पर आधारित है. ऐसे आचार्य से गर्गसंहिता जैसी घटिया किताब लिखने की उम्मीद नहीं की जा सकती है, यह उनकी ईश्वरीय मेधा का अपमान होगा.
गर्गाचार्य का वर्णन महाभारत में मिलता है जिसमें उन्होंने कहा है कि वे शिव के उपासक हैं और प्राचीन सरस्वती नहीं के तट पर साधना के बाद उन्हें शिव10 हजार साल की अमितायु मिली थी. कब ये वैष्णव बने ये तो प्रपंचवादी जानें? गर्गाचार्य को ज्योतिष का आद्य गुरु भी माना जाता है. शिवपुराण में गर्गाचार्य सती के यज्ञ में भी उपस्थित थे. गर्गाचार्य महर्षि भारद्वाज पुत्र हैं जिनकी उत्पत्ति क्षत्रिय कन्या से हुई थी इसलिए गर्गाचार्यका वंश भी राजकुल का संस्थापक हुआ. महर्षि भारद्वाज बृहस्पति के पुत्र हैं लेकिन ऋग्वेद में इन्हें प्रजापति और वरुण देव के वीर्य से उत्पन्न माना गया है. महर्षि भारद्वाज से ही महाराज भरत का वंश चला. गर्गाचार्य के वंश के बारे में इस प्रकार भागवत पुराण में लिखा गया है –
गर्गाच्छिनिस्ततो गार्ग्य: क्षत्राद् ब्रह्म ह्यवर्तत ।
दुरितक्षयो महावीर्यात् तस्य त्रय्यारुणि: कवि: ॥ १९ ॥
पुष्करारुणिरित्यत्र ये ब्राह्मणगतिं गता: ।
बृहत्क्षत्रस्य पुत्रोऽभूद्धस्ती यद्धस्तिनापुरम् ॥ २० ॥
गर्ग से शिनि नामक पुत्र उत्पन्न हुआ और उसका पुत्र गार्ग्य था. यद्यपि गार्ग्य क्षत्रिय थे, फिर भी उनसे ब्राह्मणों की एक पीढ़ी उत्पन्न हुई. महावीर से दुरितक्षय नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिनके पुत्र त्रैय्यारुणि, कवि और पुष्करुणि थे. हालाँकि दुरितक्षय के इन पुत्रों ने क्षत्रियों के वंश में जन्म लिया, फिर भी उन्होंने ब्राह्मण का पद प्राप्त किया. बृहत्क्षत्र का हस्ति नाम का एक पुत्र था, जिसने हस्तिनापुर [अब नई दिल्ली] शहर की स्थापना की.
गर्गाचार्य एक ब्रह्मवेत्ता ऋषि थे और ब्राह्मण-क्षत्रिय दोनों स्वभाव उनमे था. ऐसे ऋषि से गर्गसंहिता जैसे प्रपंच की अपेक्षा नहीं की जा सकती है. गर्ग संहिता की तरह ही अनेक ग्रन्थ जैसे रावण संहिता, भृगु संहिता प्राप्त हैं जिनका उनसे कोई सम्बन्ध नहीं है. यह लालची धूर्त बाबाओ और पुजारियों का प्रपंच है, इसमें सत्य का कोई अंश नहीं है..