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हिंदू धर्म में मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है. चतुर्थी तिथि गणेश जी को समर्पित है इसलिए पंचदेवोपासना करने वालो के लिए इस दिन गणेशजी की विशेष पूजा करने का विधान है. गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत-पूजन से गणेश जी प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी कामनाएं पूरी करते हैं. 

गणाधिप संकष्टी चतुर्थी पर गणेशजी की पूजा-अराधना के साथ उन्हें प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजन का आयोजन करना चाहिए. इस माह में गणेश पूजन से सभी दुख दूर होते हैं और गणेशजी हमेशा अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते रहते हैं. इस शुभ दिन गणेश जी के साथ चंद्रदेव की पूजा और अर्घ्य का महत्व है. गणेशजी को दूर्वा बहुत प्रिय है. गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश जी को सिर्फ दूर्वा अर्पित करने से अनेक बाधाओं और कष्टों की निवृत्ति होती है. इस दिन गणेश पूजन कर चंद्रमा को जल अर्पित करने से सभी दुख दूर हो जाते हैं. साथ ही पाप का नाश और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है.

शुभ मुहर्त –

पंचांग के अनुसार,मार्गशीर्ष माह शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 30 नवंबर को दोपहर 2 बजकर 44 मिनट पर होगी और  1 दिसंबर  2023 को  दोपहर 3 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगी. इसलिए 30 नंवबर 2023 को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी मनाई जाएगी. गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्रदेव  को जल अर्घ्य दिए बिना व्रत अधूरा माना जाता है.

गणाधिप संकष्टी चतुर्थी कथा-

पौराणिक कथा के अनुसार पूर्व काल में नल नामक राजा हुए थे. नल बहुत धर्मधर और राजाओं में श्रेष्ठ राजा के रूप में प्रसिद्ध थे. उसकी पत्नी दमयंती बहुत ही रूपवती थी. नल-दमयन्ती दोनों में बहुत प्रेम था. राजा नल एक बार जुआ में राज्य सहित सब कुछ हार गए. उन्हें अपना सारा राज्यपाठ हार कर रानी के साथ वनगमन करना पड़ा. राजा को एक श्राप के कारण अपनी पत्नी का वियोग भी सहना पड़ा.

वनवास के समय वियोग से पीड़ित दमयन्ती को वन में शरभंग महर्षि के दर्शन हुए. दमयन्ती ने मुनि से हाथ जोड़ कर प्रार्थना किया और पति से पुनः मिलन के लिए उपाय पूछा. शरभंग मुनि ने चतुर्थी पर गणेश जी की पूजा और व्रत करने को कहा और बोले कि श्रद्धापूर्वक गणेश जी का व्रत करने से तुम्हें तुम्हारे पति दुबारा मिल जाएंगे. तब दमयन्ती ने मुनि के कहे अनुसार ऐसा ही किया और इस व्रत के प्रभाव से दमयन्ती ने अपने पति को प्राप्त किया. साथ ही इस व्रत के प्रभाव से नल ने अपना राजपाठ भी प्राप्त कर लिया.