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कर्मणा गहनों गति: -भगवद्गीता

यथापि पुप्फ रासरासिम्हा, कयिरा मालागुणे बहूएवं जातेन मच्चेन, कत्तब्बं कुसलं बहुं.
जैसे फूलों के ढेर से
अनेक मालाएँ बनाई जा सकती हैं,
उसी प्रकार एक जन्मधारी प्राणी को
अनेक अच्छे कर्म करने चाहिए। -धम्मपद

“मैं तुम से सच कहता हूँ कि जो कुछ तुम पृथ्वी पर बाँधोगे, वह स्वर्ग में भी बंधेगा; और जो कुछ तुम पृथ्वी पर खोलोगे, वह स्वर्ग में भी खुलेगा। फिर मैं तुम से सच कहता हूँ कि यदि तुम में से दो जन पृथ्वी पर किसी बात के लिये एक मन होकर माँगें, तो वह मेरे स्वर्गीय पिता की ओर से तुम्हारे लिये हो जाएगी” -बाईबिल

एक बार एक व्यक्ति ने अपना सर्वस्व परोपकार में लगातार संन्यास ग्रहण किया. वह सभी प्रकार से ईश्वर में शरणागत हो गया इसके कारण उसके योग क्षेम का भार स्वयं उठाने के लिए भगवान को सहर्ष बाध्य होना पड़ा. उसके लिए एक देवदूत एक थाली में बड़े सुस्वादु भोजन लाता था. और उसे कराकर लौट जाता था. यह देख एक अन्य व्यक्ति भी अपना सब कारोबार लड़कों को सौंपकर, गेरुए वस्त्र पहनकर उसी के निकट तप करने लगा. अब देवदूत दो थाली लाने लगा, एक में सूखी रोटी तथा दूसरी में वही सुस्वाद भोजन. दूसरे व्यक्ति ने लगातार सूखी रोटी आते देख कहा- मुझे ही क्यों सूखी रोटी मिल रही हैं.

देवदूत ने उत्तर दिया-भगवान्! यह फल तो संचित पुण्य के अनुसार मिल रहा है. उसने पुण्य में सर्वस्व लगा दिया और अपने जीवन भर में केवल एक बार बड़े अहंकार से एक व्यक्ति को सूखी रोटी दी थी. उसी के ब्याज स्वरूप यह रोटियाँ मिल रही हैं. अब आपकी सूखी रोटी भी समाप्त होने को हैं, फिर कुछ न मिलेगा. अब इस व्यक्ति को चेतना हुई और उसने अपनी बाकी बची रोटी देवदूत से मँगाकर दान कर दी और आप भूखा रहा. दूसरे दिन जब देवदूत भोजन लेकर आया तो दोनों थाली सुस्वादु पकवानों से भरी थीं.