 
									यजुर्वेद के मन्त्र “आयुर्यज्ञेन कल्पताम” का अर्थ है कि यदि आयु की वृद्धि करनी हो तो धर्म (पुण्य) की वृद्धि करो। ज्योतिष में और वेदों में भी आयु की वृद्धि का साधन यही बताया गया है। आयु की वृद्धि के लिए जन्म कुंडली के नवम भाव को बलवान करने का उपाय करना चाहिए। धर्म की वृद्धि यज्ञ,अनुष्ठान, व्रत, दान और लोकोपकारी कर्म इत्यादि से होती है। भगवद्गीता के अनुसार सबसे बड़ा धर्म लोकहितार्थ कर्म है। आरोग्य की इच्छा हो तो जन्म कुंडली के अनुसार पूजा करें और करवायें और इसके साथ प्रमुख रूप से सूर्य की पूजा और अनुष्ठान करें या करवायें। भगवान सूर्य आत्मकारक हैं, सम्पूर्ण जगत की आत्मा हैं। 
सूर्य के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती , सूर्य की सप्त अग्नियों में एक अग्नि जल का कारण होती है।  जल ही सृष्टि में जीवन को उत्पन्न करता है। भगवदगीता में भगवान ने कहा है – यज्ञाद्भवति पर्जन्यो ।  यह कॉस्मिक यज्ञ देवताओं द्वारा किया जाता है जिससे वृष्टि होती है, अप या जल उत्पन्न होता है, और जल से अन्न उत्पन्न होता है। सूर्य आत्मकारक है इसलिए प्राणात्मा होने के कारण यह आयुष्य का कारक बन जाते हैं।  रोग वास्तव में होते ही क्यों हैं ? रोग इत्यादि तभी होते हैं जब देह में स्थित दस प्रकार के प्राण में किसी एक का सामंजस्य बिगड़ जाता है और वो कमजोर हो जाता है। ये दस प्राण वेदों में प्रसिद्ध हैं  – प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कूर्म, कृकिल, देवदत्त और धनंजय। 

मसलन आपान वायु के क्षीण होने से मल-मूत्र की समस्या जन्म लेती है, वेवजह पाद निकलता रहता है, ठीक से लैट्रिन ही नहीं होती, घंटो बैठे रहते हैं तब मल नीचे उतरता है। सभी प्राण शरीर में अलग अलग कर्मों को करने के लिए प्रवाहित होते हैं। सूर्य समस्त जीवों के प्राण का कारक है इसलिए आत्मकारक कहा गया है । आरोग्यता सूर्य से प्राप्त होती है।
मत्स्य पुराण में कहा गया है –
आरोग्यं भास्करादिच्छेत् धनमिच्छेत् हुताशनात् ।
ज्ञान च शंकरादिच्छेत् मुक्ति मिच्छेत जनार्दनात्॥
आरोग्य की इच्छा सूर्य से करें, धन के लिए अग्नि की पूजा करें, ज्ञान के लिए ईशान शिव की और मोक्ष के लिए भगवान विष्णु की पूजा करें। सूर्य की पूजा से आयु की वृद्धि होती है इसमें कोई संशय नहीं है – यजुर्वेद का यह मन्त्र भी एक साक्ष्य है – ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत् । पश्येम शरद: शतं जीवेम शरद: शत (गूं) श्रृणुयाम शरद: शतं प्रब्रवाम शरद: शतमदीना: स्याम शरद: शतं भूयश्च शरद: शतात् ।
भगवान सूर्य से प्राप्त चाक्षुषी विद्या का जिक्र वेदों में है जिससे नेत्रों के समस्त रोग नष्ट होते हैं। चाक्षुषी विद्या दो प्रकार की प्रसिद्ध है एक  सांकृति कृत स्तोत्र है और दूसरी कृष्णयजुर्वेदीय विद्या है। यहाँ हम दूसरी विद्या का प्रयोग दे रहे हैं। इस मालामन्त्र के जप और पुरश्चरण से नेत्र सम्बन्धी रोगों का नाश होता है। नित्य जप करने वाले की नेत्र ज्योति कभी लुप्त नहीं होती और उसके कुल में कोई अँधा नहीं होता। इस मन्त्र का जप प्रातः काल सूर्य के समक्ष उनकी पंचोपचार पूजा करके, अर्घ्य प्रदान करके करें। मन्त्र में कहा गया है कि आठ ब्राह्मणों को यह मन्त्र प्रदान करने से यह मन्त्र सिद्ध होता है।
 ॐ अथातश्चाक्षुषीं पठितसिद्धविद्यां चक्षूरोगहरां व्याख्यास्यामः । यच्चक्षूरोगाः सर्वतो नश्यन्ति । चक्षुषी दीप्तिर्भविष्यतीति ।
विनियोग : ॐ अस्याश्चाक्षुषीविद्याया अहिर्बुध्न्य ऋषिर्गायत्री छन्दः सूर्यो देवता चक्षुरोग निवृत्तये विनियोगः |
मन्त्र: ॐ चक्षुश्चक्षुश्चक्षुश्तेजस्थिरोभव । मां पाहि पाहि । त्वरितम् चक्षूरोगान्त्वरितम् चक्षूरोगान् शमय चक्षूरोगान् शमय । मम जातरूपं तेजो दर्शय दर्शय । यथाऽहमन्धो न स्यां तथा कल्पय कल्पय । कल्याणं कुरु कुरु । यानि मम पूर्वजन्मोपार्जितानि चक्षुःप्रतिरोधकदुष्कृतानि सर्वाणि निर्मूलय निर्मूलय । ॐ नमश्चक्षुस्तेजोदात्रे दिव्याय भास्कराय । ॐ नमः करुणाकरायामृताय । ॐ नमः सूर्याय । ॐ नमो भगवते सूर्यायाक्षितेजसे नमः । खेचराय नमः । महते नमः । रजसे नमः । तमसे नमः । असतो मा सद्गमय । तमसो मा ज्योतिर्गमय । मृत्योर्मा अमृतं गमय । उष्णो भगवाञ्छुचिरूपः । हंसो भगवान् शुचिप्रतिरूपःभगवान् शुचिप्रतिरूपः । य इमां चाक्षुष्मतीविद्यां ब्राह्मणो नित्यमधीयते न तस्याक्षिरोगो भवति । न तस्य कुले अन्धो भवति । अष्टौ ब्राह्मणान् ग्राहयित्वा ब्राह्मणान् विद्यासिद्धिर्भवति । ॐ वयः सुपर्णा उपसेदुरिन्द्रं प्रियमेधा ऋषयो नाधमानाः। अप ध्वान्तमूर्णुहि पूर्धि- चक्षुम् उग्ध्यस्मान्निधयेव बद्धान्।। ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः। ॐ पुष्करेक्षणाय नमः। ॐ कमलेक्षणाय नमः। ॐ विश्वरूपाय नमः। ॐ श्रीमहाविष्णवे नमः। ॐ सूर्यनारायणाय नमः।। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।। य इमां चाक्षुष्मतीं विद्यां ब्राह्मणो नित्यम् अधीयते न तस्य अक्षिरोगो भवति। न तस्य कुले अंधो भवति। न तस्य कुले अंधो भवति। अष्टौ ब्राह्मणान् ग्राहयित्वा विद्यासिद्धिः भवति। विश्वरूपं घृणिनं जातवेदसं हिरण्मयं पुरुषं ज्योतिरूपमं तपतं सहस्त्र रश्मिः। शतधावर्तमानः पुरः प्रजानाम् उदयत्येष सूर्यः। ॐ नमो भगवते आदित्याय।।
विद्या के इस मन्त्र का जप करने से भी श्रेष्ठ लाभ प्राप्त होता है-
।। ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत् हूं फट् ।।
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