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वर्तमान में चार जो शंकराचार्य सनातन धर्म की रक्षा के लिए कार्यरत हैं उनमें पुरी शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द जी महाराज निःसंदेह सबसे विद्वान् हैं और संत हैं. मैं उन्हें भलीभांति जानता हूँ. उनमें नैसर्गिक प्रतिभा है और शास्त्र प्रणयन करने वाले कुछ एक शंकराचायों में शरीक हैं. वैदिक गणित पर उनकी किताब हो या उपनिषदों के भाष्य हों, सब में उनकी विद्वता स्पष्ट रूप से दिखती है. उनकी भाषा बहुत ही संस्कृतनिष्ठ है इसलिए आम जनता उनकी बातें कम ही समझ पाती है. जहाँ तक सनातन धर्म की रक्षा का सवाल हैं वहां वो समझौता नहीं करते और निर्भयता उनमे जन्मजात है. धर्म शास्त्र से बाहर रह कर मनमानी नहीं करते, जो शास्त्र में कहा गया है और जो परम्परा में मान्य है वही कहते हैं. सत्ताधारी उन्हें भयभीत नहीं कर सकता क्योंकि वे सत्ता के चाटुकार नहीं हैं. जो उन्हें बोलना होता है वो डंके की चोट पर बोलते हैं. गुरु तत्व में उदारता भी एक प्रमुख तत्व है, ये धर्म के बावत थोड़े उदार नहीं है. पुराण को 5000 साल पुराना बताते हैं जो वे निःसंदेह सिद्ध नहीं कर सकते. आदि शंकराचार्य ने जो भाष्य किये उनमें सिर्फ दो पुराणों मत्स्य पुराण और विष्णु पुराण (विष्णु धर्मोत्तर ) का जिक्र है जबकि 18 पुराण हैं. आदि शंकराचार्य के समय यदि भागवत पुराण होता तो वे उसको ज्यादा उधृत करते क्योंकि वेदांत का उद्धरण के लिए इस पुराण से बेहतर कोई पुराण नहीं है. बनिस्बत इसके कि स्वामी जी ज्यादा रुढ़िवादी हैं फिर भी उनमें साधुता है, तप और साधना है. वेदांत में परम निष्ठा है और सत्य से नहीं डिगते.

शंकराचार्य द्वारा स्थापित परम्परा का अब तक उन्होंने बखूबी निर्वाह किया है और अब तक गोवर्धन मठ पर कोई दाग नहीं लगा पाया है जबकि उड़ीसा के मुख्यमंत्री ने, पूर्व में कांग्रेस ने और भाजपा ने भी उठा नहीं छोड़ा. आरएसएस भाजपा के पास तो बाबा पैदा करने की फैक्ट्री विश्वहिन्दू परिषद है तो भी इन्होने अपना शंकराचार्य बनाने में कसर नहीं छोड़ी. हिन्दू धर्म के दुश्मनों में ये संघी फासिस्ट भी शरीक हैं और समय समय पर अपना चेहरा दिखा ही देते हैं. आरएसएस मूलभूत रूप से एक satan सन्गठन है जो नास्तिक है लेकिन सत्ता के लिए धर्म की आस्था का राजनीतिक दुरूपयोग करता है. पुरी शंकराचार्य ने ही यह कहा था –

आरएसएस और विश्वहिन्दू परिषद ने तो अपना मिशन ही बना लिया है कि ज्यादा से ज्यादा हिन्दू मन्दिरों पर कब्जा कर लो, आश्रमों की जमीन हड्पो और उन्होंने रामजन्मभूमि को हड़प ही लिया. रामजन्म भूमि वैष्णवों की विरासत है, उस जमीन पर अनादिकाल से वैष्णवों का ही अधिकार रहा है. लेकिन वर्तमान में विश्वहिन्दू परिषद के तलुए चाटने वाले बाबाओं ने एक शब्द नहीं कहा कि अरे धूर्तों तेरे सन्गठन का जन्म हुए पचास साल नहीं हुआ और तुमने वैष्णव मठों की न केवल जमीन हड़पी बल्कि मन्दिर ही हड़प लिया. इनका बस चले तो सारे आश्रमों पर कब्जा करके अपने आतंकवादी बैठा दें. इन्होने देश में जो अनाचार फैलाया है उसके लिए उत्तरदायी बाबाओं का एक वर्ग है जो धर्म से ज्यादा पाप कर्म ही करता है.

पुरी शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द जी निश्छल चित्त के विद्वान् और प्रज्ञ आत्मा हैं लेकिन वे शायद फासिस्टों की राजनीति से थोड़ा अनभिज्ञ हैं. प्रारम्भ में ये भी झांसे में आ गये थे और योगी इत्यादि के कसीदे पढ़ गये थे लेकिन बाद में उन्हें चेत हुआ और धर्म रक्षा का जो रास्ता आदि शंकराचार्य ने दिखाया था उस पर चल पड़े. मोहन भागवत, मोदी को इन्होने अनेकों बार लताड़ा है. भागवत भी फासिस्ट्स की परम्परा पर चलता है, यह भी एक बहुरुपिया है, रूप बदलता रहता है. कभी नास्तिक बन जाता है, कभी आस्तिक, कभी मुस्लिम प्रेमी बन जाता है, कभी ईसाई प्रेमी. इसके अनेकों रूप हैं और यह कोई नई बात नहीं है. दुनिया के सभी फसिस्ट्स बहुरुपिया होते हैं. निश्चलानन्द जी की शरण में जाना उसकी मजबूरी बन गई तो आ गया. पुरी शंकराचार्य थोड़े कट्टर हैं इसलिए आरएसएस वाले सोचते हैं कि उनके जैसा ही ये भी हैं लेकिन जब लताड़ते हैं तब इनको लगता है कि ये कुछ और ही मिट्टी के बने हैं. शंकराचार्य जी को सर्तक रहना चाहिए,,पिछले प्रयास में नासने का प्रयत्न कर चुके हैं.