Spread the love

पुराणों में फेमिनिज्म का चरित्र अलग अलग कथाओं में अलग अलग है. देवी भागवत में बृहस्पति की पत्नी की एडल्ट्री (परपरुष गमन ) पर जो घमासान देव लोक में हुआ वह वस्तुत: सांसारिक ही है. यहाँ बृहस्पति ब्राह्मण प्रिस्ट या कथावाचक हैं और चन्द्रमा उनका यजमान है. यह कथा ऐतिहासिक है और पुजारी वर्ग की पत्नियों के परपुरुष गमन की कथा है. किसी काल में ब्राह्मणों की पत्नियों का उपभोग धनी यजमान करते रहे होंगे. Story has certain dimension of feminism promoted by high priests but tis story of adultery of wives of poor Brahmins also .. Every women wants good life and a good man.

ब्राह्मण प्रिस्ट से ऊबी हुई कामार्द्र तारा एकदिन किसी कारण वश यजमान के यहाँ जाती है और उससे फंस जाती है. यजमान भी कामार्द्र तारा को देख होश खो बैठता है. तारा के साथ चन्द्रमा कई दिनों तक सम्भोगरत रहता है. इधर घर न लौटने पर बृहस्पति किसी शिष्य को तारा को बुलाने भेजते हैं. लेकिन बार बार बुलाने पर भी चन्द्रमा तारा को नहीं जाने देता और तारा भी स्वयं नहीं जाती. यह देख स्वयं बृहस्पति यजमान चन्द्रमा के घर जाते हैं और कहते हैं कि तुमने मेरी पत्नी का भोग क्यों किया और उसे क्यों रोक रखा है. मैं तुम्हारा गुरु हूँ, क्या नहीं जानते गुरु पत्नी का भोग करना पंच महापातकों में एक है ? हे दुष्ट ! मैं तुझे गुरु पत्नी का अपहरणकर्ता और दुराचारी करार देता हूँ.


यह सुन कर चन्द्रमा ब्रहस्पति की खिल्ली उड़ाते हुए कहता है. ‘हे दरिद्र ब्राह्मण ! अपना पेट देखो. तुम कुरुप हो, तुम्हारे घर में ऐसी सुन्दरी का क्या काम ? तुम कोई अन्य अपने जैसी ही कुरूप स्त्री खोज लो. तारा यहाँ कुछ दिन मस्ती करके चली जाएगी, इसमें तुम्हारी क्या हानि है ? और आपने ही धर्म शास्त्र में यह कहा है कि रजस्वला होने उपरांत यदि कोई स्त्री पर-पुरुषगामी होती है तो उसमे दोष नहीं लगता. स्त्री दूषित नहीं मानी जाती, वह सर्वथा पवित्र कही जाएगी.

चन्द्रमा के ऐसा कहने से देव गुरु दुखी होकर लौट गये .. इसके पश्चात देवताओं ने बृहस्पति के कहने पर चन्द्रमा पर चढाई कर दी . तब तक उसको एक पुत्र हो चूका था. पुत्र के बावत भी विमर्श अत्याधुनिक है.