अपराजिता, पुनर्नवा और शरपुंखी जिसे शरफोंका भी कहते हैं, तन्त्र और आयुर्वेद में बहुत काम की औषधि मानी गई है. अपराजिता का उपयोग काली पूजा और नवदुर्गा पूजा में विशेषरूप में किया जाता है. जहां काली का स्थान बनाया जाता है वहां पर इसकी बेल को जरूर लगाया जाता है.
यदि अपराजिता का पौधा पुष्य नक्षत्र में उखाड़ कर कंठ या भुजा में धारण किया जाय तो यह व्यक्ति की भूत, प्रेत, यक्ष, असुर, प्रेत से देह रक्षा करती है. इससे न केवल दुश्मन के वार से देह की रक्षा होती है बल्कि एक्सीडेंट इत्यादि में भी यह बचा देती है.यह प्रेत-बाधा में बहुत कारगर बताया गया है. जब चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में 8 डिग्री से 10 डिग्री के बीच हो तब इसको उखाड़ना चाहिए. यदि तिथि अष्टमी, तृतीया या चतुर्थी या दशमी हो तो अति उत्तम और शनिवार और बृहस्पतिवार भी इस तिथि में हो तो सोने पर सुहागा.
उक्त समय पर उखाड़ कर घर ले आये. और उसे गंगा जल से स्नान कर कर निम्नलिखित मन्त्र से 108 बार अभिमंत्रित करे. हर बार पढ़ते समय उस पर तिल मिश्रित चावल को फेंकें .

मन्त्र-
ॐ नमो भगवति अपराजिते हं हं, ॐ भक्ष भक्ष, ॐ खाद, ॐ अरे रक्तं पिब कपालिने रक्ताक्षी रक्तपटे भस्मांगी भस्मलिप्तशरीरे वज्रायुधे वज्रप्राकारनिचिते पूर्वां दिशं बंध बंध, ॐ दक्षिणा दिशं बंध बंध, ॐ पश्चिमां दिशं बंध बंध, ॐ उत्तरां दिशं बंध बंध,, ॐ नागान् बंध बंध, नागपत्निरबंध, ॐ असुरान् बंध बंध, ॐ यक्षराक्षसपिशाचान् बंध बंध, ॐ प्रेतभूतगंधर्वादयो ये केचिदुपद्रवास्तेभ्यो रक्ष रक्ष, ॐ ऊर्ध्वं रक्ष रक्ष, ॐ अधो रक्ष रक्ष, ॐ क्षुरिकं बंध बंध, ॐ ज्वल महाबले. घटि घटि,ॐ मोटि मोटि, सटावलिवज्राग्नि वज्रप्रकारे हूँ फट, ह्रीं ह्रूं श्रीं फट ह्रीं ह: फूं फें फ: सर्वग्रहेभ्यः सर्वव्याधिभ्य: सर्वदुष्टोपद्रवेभ्यो ह्रीं अशेषेभ्यो रक्ष रक्ष !
नीचे फोटो शरपुंखी का पौधा का है. इसे सरफोंक sarphonk, शरपुंखा, बन नील , बियानी इत्यादि नामों से जानते हैं.


